येद्दयुरप्पा के साथ गए कांग्रेस- जेडीएस के कुछ विधायक तो क्या होगा? जानिए- क्या कहता है कानून
भारतीय राजनीति में दल-बदल नया नहीं है। एक समय में दल-बदल का चलन इतना ज्यादा बढ़ गया कि 1985 में संसद को दल-बदल विरोधी कानून बनाना पड़ा।
जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 104 सीटों पर जीत दर्ज कर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है। लेकिन, बहुमत से वह आठ विधायक दूर है। वहीं, कांग्रेस और जदएस नतीजों के बाद गठबंधन कर 116 के आंकड़े पर पहुंच गए हैं। हालांकि, भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट और उसके बाहर भी सदन में बहुमत साबित कर देने का दावा किया है। इस दावे का यही मतलब निकलता है कि भाजपा कांग्रेस या जदएस या दोनों पार्टियों के नवनिर्वाचित सदस्यों से दल-बदल की उम्मीद कर रही है।
भारतीय राजनीति में दल-बदल नया नहीं है। एक समय में दल-बदल का चलन इतना ज्यादा बढ़ गया कि 1985 में संसद को दल-बदल विरोधी कानून बनाना पड़ा। हालांकि, इसके बाद भी जब दल-बदल पर पूरी तरह नकेल नहीं कस पाई तो इसमें संशोधन किए गए।
2003 में तय किया गया कि सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं, अगर सामूहिक रूप से भी दल बदला जाता है, तो उसे भी असंवैधानिक करार दिया जाएगा। इसी संशोधन में धारा 3 को भी खत्म कर दिया गया, जिसके तहत एक तिहाई पार्टी सदस्यों को लेकर दल बदला जा सकता था। अब ऐसा करने के लिए दो तिहाई सदस्यों की सहमति जरूरी है। इस तरह अगर कांग्रेस या जदएस का कोई विधायक फ्लोर टेस्ट में भाजपा सरकार के पक्ष में वोट करता है या फिर समर्थन पत्र देता है, तो उसे भी दल-बदल माना जाएगा।
इन मामलों में लागू होता है कानून
-दसवीं अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य करार दिए जाने का आधार बताया गया है।
-यदि कोई विधायक स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता त्याग दे।
-अगर वह पार्टी व्हिप के खिलाफ वोट करे या वोटिंग से दूर रहे।
-निर्दलीय विधायक को अयोग्य करार दिया जाएगा, अगर वह किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो जाए।
क्या ऑपरेशन लोटस फिर से पार लगाएगा भाजपा की नैया
कर्नाटक में ऑपरेशन लोटस अचानक से चर्चा का विषय बन गया है। 2008 में भाजपा ऐसी ही परिस्थिति में फंस गई थी। उस चुनाव में भी पार्टी बहुमत से दूर थी। उस समय इसकी रणनीति को ऑपरेशन लोटस कहा गया था। कर्नाटक विधानसभा में बहुमत परीक्षण से पहले जदएस और कांग्रेस के छह विधायकों ने अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
बाद में हुए उपचुनाव में उन विधायकों ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के शासन में कथित तौर पर वोक्कलिगा समुदाय की अनदेखी से जदएस को दल-बदल का डर सता रहा है। भाजपा की उम्मीद जदएस के कांग्रेस विरोधी विधायकों पर टिकी हुई है। दूसरी तरफ, कांग्रेस के कुछ लिंगायत समर्थक विधायक भी भाजपा की मदद के लिए तैयार बताए जा रहे हैं।