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उप राष्ट्रपति ने कहा- शिक्षा नीति पर जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने की बजाय उसका अध्ययन करें

हिंदी भाषा का विरोध नहीं है लेकिन केंद्र सरकार को उत्तर भारत में भी दक्षिण भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 03 Jun 2019 01:25 AM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2019 08:21 AM (IST)
उप राष्ट्रपति ने कहा- शिक्षा नीति पर जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने की बजाय उसका अध्ययन करें
उप राष्ट्रपति ने कहा- शिक्षा नीति पर जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने की बजाय उसका अध्ययन करें

नई दिल्ली, एएनआइ/प्रेट्र। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में प्रस्तावित तीन भाषा फार्मूले को लेकर मचे सियासी घमासान के बीच उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने सभी पक्षों से कहा है कि वो जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देने की बजाय मसौदा नीति का गंभीरता से अध्ययन करें। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी इस मसले पर सरकार का बचाव किया है। वहीं, कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि इस फार्मूले को लागू किया गया तो क्षेत्रीय भाषाएं खत्म हो जाएंगी। माकपा का कहना है कि इससे भाषायी दुराग्रह को बल मिलेगा। तीन भाषा फार्मूले में आठवीं कक्षा तक ¨हदी को अनिवार्य बनाने की सिफारिश की गई है।

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उप राष्ट्रपति नायडू ने विशाखापत्तनम में एक कार्यक्रम में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे का विरोध करने वाले लोगों को अंतिम नतीजे पर पहुंचने से पहले उसका गंभीरता से अध्ययन, बहस और विश्लेषण करना चाहिए, ताकि सरकार उस पर चर्चा कराने के बाद आगे की कार्रवाई कर सके। तमिलनाडु के राजनीतिक दलों के विरोध का उल्लेख करते उन्होंने कहा कि हमारे देश में कुछ लोगों की आदत है कि राजनीतिक या अन्य कारणों से वो अखबारों की हेडलाइन देखते ही विरोध शुरू कर देते हैं।

वहीं, विदेश मंत्री जयशंकर ने भी रविवार को ट्वीट कर कहा, 'मानव संसाधन विकास मंत्री को सौंपी गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक मसौदा रिपोर्ट है। इस पर आम लोगों की राय ली जाएगी। राज्य सरकारों से परामर्श किया जाएगा। इसके बाद ही कोई फैसला किया जाएगा। भारत सरकार सभी भाषाओं का सम्मान करती है। कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी।'

जबकि, चेन्नई में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीटर अल्फोंसे ने कहा कि अगर केंद्र सरकार द्वारा तीन भाषा फार्मूले को लागू किया जाता है तो ज्यादातर गैर-हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय भाषाएं दम तोड़ देंगी। उन्होंने कहा कि सरकार इसके जरिए भाजपा के एजेंडे को लागू करने का प्रयास कर रही है।

मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने एक बयान में कहा कि तीन भाषा फार्मूले को जबरन लागू करने से भाषाई दुराग्रह को बल मिलेगा, जो देश की एकता के लिए सही नहीं होगा। माकपा ने इसे तुरंत वापस लेने और नई शिक्षा नीति तैयार करने की मांग की है।

बता दें कि मशहूर वैज्ञानिक और इसरो के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन की अगुआई वाली कमेटी ने देश भर में तीन भाषा फार्मूले को लागू करने का सुझाव दिया है। कमेटी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे को शुक्रवार को सरकार को सौंपा था।

एक भाषा थोपना ठीक नहीं : कुमारस्वामी

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा है कि दूसरों पर कोई एक भाषा नहीं थोपी जानी चाहिए।

कुमारस्वामी ने ट्वीट कर कहा कि मुझे पता है कि मसौदा शिक्षा नीति में हिंदी को लागू करने पर जोर दिया गया है। तीन भाषा फार्मूला के नाम पर एक भाषा को दूसरों पर नहीं थोपना चाहिए।

एआइएनआरसी ने भी किया विरोध

एआइएनआरसी नेता आर राधाकृष्णन ने भी तीन भाषा फार्मूले का विरोध करते हुए इसे गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी भाषा को थोपने की कोशिश करार दिया है।

राधाकृष्णन ने कहा कि अगर हिंदी भाषा को थोपा जाता है तो यह राज्यों के अधिकारों के लिए गंभीर खतरा होगा। पुडुचेरी दो भाषा नीति को जारी रखने पर अडिग है।

तेलंगाना-आंध्र भी आशंकित

तीन भाषा फार्मूले को लेकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तमिलनाडु की तरह विरोध तो नहीं हो रहा है, लेकिन इन दोनों ही राज्यों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे को लेकर पैदा हुई आशंका को दूर करने की मांग की है।

तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस ने कहा है कि केंद्र सरकार मसौदा नीति सभी पक्षों को मुहैया कराए और उनकी सलाह व उनकी आशंकाओं को दूर करने के बाद ही इस पर आगे कोई कदम बढ़ाए।

वहीं, आंध्र प्रदेश के पूर्व विधायक और शिक्षाविद् के नागेश्वर ने कहा कि हिंदी भाषा का विरोध नहीं है, लेकिन केंद्र सरकार को उत्तर भारत में भी दक्षिण भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहिए।

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