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जदयू में रहकर ही नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ाते रहेंगे कुशवाहा, लव-कुश समीकरण आ रहा कार्रवाई की राह में आड़े

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की धारा से अलग चल रहे उपेंद्र कुशवाहा जदयू के गले की हड्डी बने हुए हैं। पार्टी न तो उन्हें निकालने की हिम्मत जुटा रही है और न ही स्वयं से वह नाता तोड़ने जा रहे हैं। फाइल फोटो।

By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaPublished: Mon, 06 Feb 2023 08:08 PM (IST)Updated: Mon, 06 Feb 2023 08:08 PM (IST)
जदयू में रहकर ही नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ाते रहेंगे कुशवाहा

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की धारा से अलग चल रहे उपेंद्र कुशवाहा जदयू के गले की हड्डी बने हुए हैं। पार्टी न तो उन्हें निकालने की हिम्मत जुटा रही है और न ही स्वयं से वह नाता तोड़ने जा रहे हैं। यहां पर महत्वपूर्ण कुशवाहा का कद-पद और प्रभाव नहीं है, बल्कि उनके समुदाय (कोईरी) का छह से सात प्रतिशत वोट है, जिसे छिटक जाने का डर है। इसी वोट बैंक के आधार पर नीतीश कुमार कभी लव-कुश (कुर्मी-कोईरी) का समीकरण बनाकर बिहार की राजनीति के शीर्ष पर पहुंच सके थे।

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नरेन्द्र मोदी की पहली सरकार में बनाए गए थे मंत्री

उपेंद्र कुशवाहा भी बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से आगे बढ़ते हुए केंद्र की नरेन्द्र मोदी की पहली सरकार में मंत्री तक बन पाए थे। यही कारण है कि जदयू समेत बिहार के सभी बड़े दलों ने चुनाव से बहुत पहले ही इस समुदाय को अपना बनाने-बताने का उपक्रम तेज कर दिया है। बिहार में अंतिम बार त्रिकोणीय संघर्ष वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में हुई था। 2014 के लोकसभा चुनाव को अगर अपवाद मान लें तो उसके बाद के सभी चुनावों में दो गठबंधनों के बीच आमने-सामने की ही टक्कर होती रही है। ऐसे में एक-एक प्रतिशत वोटों के लिए पहले से ही रणनीति बनाकर काफी मशक्कत करनी पड़ती है।

कुशवाहा के अगले पैतरे पर टिकी हुई है सबकी नजर

चिराग पासवान के भाजपा के पाले में चले जाने के बाद से कुशवाहा का महत्व बढ़ गया है। कुशवाहा अभी मील के उस पत्थर के पास खड़े हैं, जहां जदयू से उनकी दूरी साफ-साफ दिख रही है। ऐसे में उनके पास विकल्प के रूप में सिर्फ भाजपा का खेमा ही बचता है। समय बताएगा कि भाजपा उन्हें किस रूप में अपनाती है और वह भी उससे किस रूप में जुड़ते हैं। अभी सबकी नजर कुशवाहा के अगरे पैतरे पर टिकी हुई है। उन्होंने जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष की हैसियत से 18-19 फरवरी को अपने दल के नेताओं की बैठक बुलाई है। तर्क दिया है कि कमजोर होते जदयू को बचाने पर मंथन किया जाएगा।

कुशवाहा दे सकते हैं अगली रणनीति का संकेत

माना जा रहा है कि उसी दिन कुशवाहा अपनी अगली रणनीति का संकेत दे सकते हैं, लेकिन तब तक साफ है कि वह जदयू में रहकर ही शीर्ष नेतृत्व के निर्णयों की आलोचना करते रहेंगे। जदयू में कुशवाहा पर कार्रवाई को लेकर अनिर्णय की स्थिति है। हालांकि उनकी बगावत से होने वाली संभावित क्षति की भरपाई करने का प्रयास भी जारी है।

जदयू की तरफ से कार्रवाई का नहीं जारी हुआ कोई आदेश

उच्चस्तर पर सावधानी भी बरती जा रही है कि उपेंद्र कुशवाहा पर कार्रवाई के बाद लव-कुश समीकरण पर कोई उल्टा असर न पड़े। यही कारण है कि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने बयान दिया है कि कुशवाहा जदयू में किसी पद पर नहीं हैं। किंतु सच्चाई यह भी है कि अभी तक जदयू की तरफ से कुशवाहा पर कार्रवाई को लेकर कोई पत्र या आदेश जारी नहीं किया गया है। शीर्ष स्तर पर कुशवाहा के रहने और नहीं रहने के असर का आकलन किया जा रहा है। फिलहाल जदयू और कुशवाहा के अगले कदम का बिहार को इंतजार है।

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