उत्तर प्रदेश सरकार ने मुस्लिम पक्ष पर मामला लटकाने का लगाया आरोप
अयोध्या जन्मभूमि मालिकाना हक के मामले की अपीलें सुनवाई के लिए पूरी तरह तैयार हैं लेकिन ये लोग उसे लटकाने का प्रयास कर रहे हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। उत्तर प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष पर अयोध्या राम जन्मभूमि मालिकाना हक मामले की अपीलों की सुनवाई लटकाने का आरोप लगाया। प्रदेश सरकार की ओर से पेश एडीशनल सालिसिटर जनरल (एएसजी) तुषार मेहता ने 1994 के इस्माइल फारुखी फैसले में मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा न मानने के अंश को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजने की मुस्लिम पक्ष की मांग का विरोध किया। मेहता ने कहा कि इतने दिन बाद इस तरह की मांग उठाना ठीक नहीं है इससे इन लोगों की मंशा पता चलती है। अयोध्या जन्मभूमि मालिकाना हक के मामले की अपीलें सुनवाई के लिए पूरी तरह तैयार हैं लेकिन ये लोग उसे लटकाने का प्रयास कर रहे हैं।
हलांकि मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है और इस्माइल फारुखी फैसले में की गई टिप्पणी गलत है इसलिए उस फैसले को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए।
अयोध्या रामजन्मभूमि मालिकाना हक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कुल 13 अपीलें 2010 से सुप्रीम कोर्ट मे लंबित है लेकिन औपचारिक रूप से अभी तक मुख्य अपीलों पर सुनवाई शुरू नहीं हुई है। जमीयत उलेमा ए हिन्द के वकील राजीव धवन ने शुरूआत में ही इस्माइल फारुखी फैसले के पैराग्राफ 82 के अंश को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग कर दी थी। जिस पर आजकल सुनवाई हो रही है। उस फैसले में संविधान पीठ ने अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को सही ठहराया था और कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है नमाज बाहर भी की जा सकती है। इसी अंश पर मुस्लिम पक्षों का विरोध है, उनका कहना है कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है कि नहीं ये बात पहले तय होनी चाहिए क्योंकि इसका मुख्य मुकदमें की सुनवाई पर असर पड़ेगा।
उत्तर प्रदेश के वकील तुषार मेहता ने कहा कि इस्माइल फारुखी केस पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है उसमें दी गई व्यवस्था बिल्कुल ठीक है। उन्होंने मुस्लिम पक्ष पर ये मुद्दा उठाकर सुनवाई में देरी करने का आरोप लगाते हुए कहा कि 1994 का फैसला है इससे पहले कभी भी इन लोगों ने इस पर सवाल नहीं उठाया। यहां तक कि हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान और सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करते समय भी ये मुद्दा नहीं उठाया था। अब जबकि अपील पर फाइनल सुनवाई होनी है तो उसे लटकाने के लिए ये मुद्दा उठाया गया है। इनकी मांग खारिज होनी चाहिए। कोर्ट ने राजीव धवन को इन दलीलों का जवाब देने के लिए समय देते हुए सुनवाई 13 जुलाई तक के लिए टाल दी।
इससे पहले राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने धवन की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि इस्माइल फारुखी फैसला सही है। हसीदों में कहा गया है कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, नमाज बाहर भी की जा सकती है। इस पर धवन ने कहा कि अगर ऐसा है तो फिर शुक्रवार को लोग मस्जिद में नमाज के लिए क्यों एकत्र होते हैं। रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा फारुखी मामले को पुनर्विचार के लिए भेजने की जरूरत नहीं है क्योंकि मुख्य मुकदमें की सुनवाई में इस फैसले का कोई महत्व नहीं है। निर्मोही अखाड़े का भी कहना था कि 1994 के फैसले पर अब सवाल नहीं उठाया जा सकता वह फैसला फाइनल हो चुका है और सब पर लागू है।