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उपचुनाव के नतीजों के बाद 'गन्ना' और 'जिन्ना' की इतनी चर्चा क्यों हो रही है

इससे पहले जयंत चौधरी ने भाजपा पर हमला करते हुए कहा था कि यहां (कैराना उप-चुनाव) जिन्ना मुद्दा नहीं, गन्ना मुद्दा है।

By Vikas JangraEdited By: Published: Thu, 31 May 2018 06:34 PM (IST)Updated: Thu, 31 May 2018 07:00 PM (IST)
उपचुनाव के नतीजों के बाद 'गन्ना' और 'जिन्ना' की इतनी चर्चा क्यों हो रही है
उपचुनाव के नतीजों के बाद 'गन्ना' और 'जिन्ना' की इतनी चर्चा क्यों हो रही है

नई दिल्ली (जागरण स्पेशल)। राजनीतिक रूप से अहम और 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए लिटमस टेस्ट कहे जा रहे यूपी के कैराना में हुए उपचुनावों में भाजपा की हार हुई है। नतीजों के बाद जयंत चौधरी ने कहा- ‘जिन्ना हारा, गन्ना जीता’। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई जिन्ना नहीं गन्ना चुनावी मुद्दा था, जिसे भाजपा समझने में चूक गई ?.  दरअसल, चुनाव से पहले जब राजनीतिक योद्धा एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के तीर छोड़ रहे थे तो कैराना में ‘जिन्ना और गन्ना’ का नाम कई बार सामने आया। 

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जिन्ना बनाम गन्ना विवाद

गौरतलब है कि कैराना में भाजपा की प्रत्याशी मृगांका सिंह के पक्ष में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि गन्ना किसानों के लिए हम काम करेंगे, गन्ना हमारा मुद्दा है, लेकिन हम जिन्ना की फोटो भी नहीं लगने देंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हम कभी ऐसी स्थिति पैदा नहीं होने देंगे, जिससे दंगाई तत्व जागें और समाज को बांटने का काम करें। 

इससे पहले जयंत चौधरी ने भाजपा पर हमला करते हुए कहा था कि यहां (कैराना उप-चुनाव) जिन्ना मुद्दा नहीं, गन्ना मुद्दा है। दरअसल, चीनी मिलों की ओर से किसानों को गन्ने का भुगतान ना किए जाने को चुनावी मुद्दा बनाया गया।  

 

कैराना में जिन्ना कहां से आया ?

जिस वक्त कैराना में चुनावी जमीन तैयार हो रही थी, उसी वक्त कर्नाटक की सियासी रणभूमि में जोर आजमाइश हो रही थी। इसी बीच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लगी जिन्ना की तस्वीर को लेकर विवाद उठ गया। इसे हटाने को लेकर मांग उठने लगी। धीरे-धीरे यह विवाद इतना बढ़ गया की चुनावी सभाओं के भाषणों का हिस्सा बन गया। विपक्ष ने आरोप लगाया कि भाजपा जिन्ना के नाम पर चुनाव में ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है। कर्नाटक के चुनाव परिणाम आए और भाजपा बहुमत के जादुई आंकड़े से चूक गई। फिर यूपी में कैराना और नूरपुर उपचुनाव के लिए सियासी युद्ध शुरू हुआ, राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी ने जिन्ना नहीं गन्ना मुद्दा का नारा उछाला। उपचुनाव हुए और आज परिणाम के बाद साफ हो गया कि इस बार भाजपा की रणनीति काम नहीं आई। 

तो क्या अकेले जिन्ना ने हराया चुनाव?

'जिन्ना बनाम गन्ना' का नारा उन किसानों के लिए जरूर भाजपा के खिलाफ वोट करने में काम आया होगा। लेकिन चुनाव में कोई एक फैक्टर नहीं होता। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि इससे पहले भाजपा के सांसद हुकुम सिंह ने 2014 के लोकसभा चुनावों में 50 फीसदी से भी ज्यादा वोट हासिल किए थे। जबकि आज जीत का जश्न मना रही रालोद को मात्र 3.81 फीसदी वोट मिले थे। बसपा औऱ सपा को क्रमशः 14.33 और 29.39 फीसदी वोट मिले थे। उस हिसाब से देखें तो सबका वोट प्रतिशत मिलकर भी भाजपा को नहीं हरा सकता था। 

गन्ना और जिन्ना के अलावा भी कई ऐसे मुद्दे हैं और जो कि भाजपा की हार की ओर इशारा करते हैं। जैसे की विपक्ष ये संदेश पहुंचाने में कामयाब रहा कि भाजपा ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है। इसके अलावा नोटबंदी, जीएसटी और किसानों की कर्जमाफी को भी विपक्ष ने मुद्दा बनाया। एक और बात ये कि इस बार मैदान में कैराना के दो बड़े राजनीतिक परिवार आमने-सामने थे। सबसे अहम वजह जो भाजपा की हार में गिनी जा सकती है वो ये कि विपक्षी दल एकजुटता दिखाते हुए एक मंच पर आ गए। 

इस सबमें गन्ना किसानों की नाराजगी कितनी भारी पड़ी ?

गन्ना विवाद ने भाजपा के वोटों में कितनी सेंध लगाई इसके लिए कुछ बातें जानना जरूरी है। दरअसल, कैराना लोकसभा सीट पश्चिमी यूपी का हिस्सा है। इस इलाके में ज्यादातर किसान गन्ने की खेती करते हैं। ये किसान सालभर की मेहनत चीनी मिलों को बेचते हैं। वहीं, चीनी मिल किसानों को वक्त पर भुगतान नहीं करते। इससे किसानों की आर्थिक हालत गड़बड़ा जाती है। इस तरह गन्ने का मुद्दा किसानों और जनता से सीधे तौर पर जुड़ता है। आंकड़ों की मानें तो अक्तूबर, 2017 से चालू हुए पिराई सीजन (2017-18) में अभी तक चीनी मिलों पर किसानों की बकाया राशि करीब 19 हजार करोड़ के करीब पहुंच चुकी है। इसमें सबसे ज्यादा बकाया यूपी की चीनी मिलों पर है। यूपी की चीनी मिलों ने चालू पिराई सीजन में 27 अप्रैल तक राज्य के किसानों से 32,512 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है। लेकिन अभी तक पूरा भुगतान नहीं हुआ है। राज्य की चीनी मिलों पर किसानों के बकाया की राशि बढ़कर 12,526 करोड़ रुपये हो गई है। बता दें कि मिलों को गन्ना खरीदने के 14 दिन के अंदर किसानों को भुगतान करना होता है।

ऐसे में भाजपा को कुछ हद तक नुकसान होना तय था। लेकिन ज्यादा नुकसान इस वजह से हुआ कि लोकसभा चुनावों के बाद 26 मई को जब नई सरकार ने शपथ ली थी, तब ये कहा गया था कि वे किसानों के बकाए का भुगतान जल्द से जल्द करेंगे लेकिन इस दिशा में कोई कारगर उपाय नहीं किए गए। हार की ये एक बड़ी वजह रही। 

जयंत सिंह की जीत के समीकरण

दरअसल, इस इलाके में जाट समुदाय का दबदबा है। ज्यादातर जाटों का समर्थन राष्ट्रीय लोकदल को है। अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी ने इसी का फायदा लिया। इलाके में दूसरा बड़ा तबका मुस्लिम हैं। जयंत ने चुनाव में तबस्सुम हसन को टिकट देकर उन्हें भी साधने का काम किया। इसके अलावा जयंत सिंह को परोक्ष रूप से कांग्रेस, बसपा और सपा का भी समर्थन मिला। जिससे कि उनका वोट भी जयंत के उम्मीदवार को ट्रांसफर हुआ। इस तरह मुस्लिम-यादव-जाट एकता समीकरण तैयार हुआ। इस समीकरण को गन्ना और जिन्ना विवाद ने और ज्यादा अच्छे से मजबूती दी। इस बड़ी जीत के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश ने कहा कि उन्होंने भाजपा से ही जीत की ट्रिक सीखी है। इस तरह भाजपा को कैराना के सियासी मैदान में पटखनी दी गई। 


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