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अंदरूनी विवादों को लेकर दो और न्यायाधीशों ने की सीजेआई से फुल कोर्ट मीटिंग बुलाने की मांग

विपक्षी दलों की ओर से महाभियोग की कवायद से राहत मिल गई है, लेकिन न्यायपालिका के अंदर की चुनौतियां खत्म नहीं हो रही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 25 Apr 2018 07:55 PM (IST)Updated: Wed, 25 Apr 2018 07:55 PM (IST)
अंदरूनी विवादों को लेकर दो और न्यायाधीशों ने की सीजेआई से फुल कोर्ट मीटिंग बुलाने की मांग
अंदरूनी विवादों को लेकर दो और न्यायाधीशों ने की सीजेआई से फुल कोर्ट मीटिंग बुलाने की मांग

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विपक्षी दलों की ओर से महाभियोग की कवायद से भले ही मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा को राहत मिल गई है, लेकिन न्यायपालिका के अंदर की चुनौतियां खत्म नहीं हो रही है। दो वरिष्ठ जजों ने फिर पत्र लिख कर मुख्य न्यायाधीश से फुल कोर्ट मीटिंग बुलाने को कहा है जिसमें न्यायपालिका की छवि और गरिमा बनाए रखने के मुद्दे पर विचार विमर्श हो। माना जा रहा है कि मुख्य न्यायाधीश ने अंदरुनी विवादों को साधने के प्रयास शुरू कर दिये हैं। उन्होंने चार न्यायाधीशों की एक अनौपचारिक कमेटी बनाई है जो इस मामले में अन्य न्यायाधीशों के सुझाव एकत्र करेगी। न्यायपालिका की बेहतरी के सुझाव एकत्र होने के बाद उन पर अनौपचारिक मीटिंग में विचार विमर्श और चर्चा करके निस्तारित किया जा सकता है।

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- जस्टिस गोगोई और जस्टिस लोकुर ने 22 अप्रैल को मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में की मांग

- मुख्य न्यायाधीश ने अनौपचारिक बातचीत के जरिये मतभेद सुलझाने के दिये संकेत

रविवार को जब राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू जस्टिस मिश्रा के खिलाफ दिये गए महाभियोग नोटिस पर कानूनविदों से राय मशविरा कर रहे थे, उसी दिन 22 अप्रैल को जस्टिस रंजन गोगोई व जस्टिस मदन बी लोकुर ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को एक संक्षिप्त पत्र लिख कर न्यायपालिका की छवि और गरिमा कायम रखने के मुद्दे पर विचार विमर्श के लिए फुल कोर्ट मीटिंग बुलाने की मांग की।

सूत्रों का कहना है कि इस पत्र की जानकारी दूसरे दिन सोमवार को तब हुई जब वेंकैया नायडू के महाभियोग नोटिस अस्वीकार कर देने की खबर आने के बाद जजों की रोजाना होने वाली दस मिनट की चाय की बैठक लंबी खिंच गई। सूत्रों का कहना है कि उस बैठक में जस्टिस गोगोई ने कहा कि जो पीछे हो गया उसे छोड़ो लेकिन संस्था की साख ऊपर उठाने के लिए आगे प्रयास किये जाने चाहिए। उनकी इस बात पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कौन से चिंतनीय मुद्दे हैं बताये जाएं। उन मुद्दों का हल निकाला जाएगा।

हालांकि मुख्य न्यायाधीश ने फुल कोर्ट मीटिंग की हामी नहीं भरी। उन्होंने कहा कि मामले को अनौपचारिक मीटिंग में चर्चा करके भी निपटाया जा सकता है। इस पर जस्टिस लोकुर ने जजों की नियुक्ति की कोलीजियम की सिफारिशें दबा कर बैठने का मुद्दा उठाया और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने गत 9 अप्रैल के पत्र का हवाला दिया। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वे अपनी ओर से इस बारे में प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से कहा है और सरकार ने नियुक्ति प्रक्रिया तेज करने का भरोसा दिया है।

मामले को आगे बढ़ने से रोकने के लिए मुख्य न्यायाधीश ने अन्य जजों की सहमति से चार जजों की एक अनौपचारिक कमेटी बना दी जो कि सभी के सुझाव एकत्र करेगी और एकत्रित सुझावों पर बाद में चर्चा की जाएगी। सूत्र बताते हैं कि चार जजों की कमेटी में जस्टिस एके सीकरी, यूयू ललित, डीवाई चंद्रचूड़ और एसके कौल हैं।

न्यायपालिका की अंदरूनी खदबदाहट पहली बार जनवरी में तब सामने आयी थी जब चार वरिष्ठ न्यायाधीशों जस्टिस जे. चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर व कुरियन जोसेफ ने प्रेस कान्फ्रेंस करके मुख्य न्यायाधीश की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे। उसके बाद जस्टिस चेलमेश्वर ने 21 मार्च को फिर से पत्र लिख कर न्यायापालिका में कार्यपालिका की दखलंदाजी का मुद्दा उठाया था और फुल कोर्ट मीटिंग बुलाने की मांग की थी।

गत 9 अप्रैल को जस्टिस जोसेफ ने सरकार द्वारा कोलीजियम की सिफारिशें दबाकर बैठने का मुद्दा उठाते हुए मुख्य न्यायाधीश से इस पर सात न्यायाधीशों की पीठ में सुनवाई करने की मांग की थी। इसके बाद जस्टिस गोगोई और लोकुर के हालिया पत्र सामने आया है। ये सभी वरिष्ठ जज कोलीजियम के सदस्य हैं। जस्टिस गोगोई अक्टूबर में दीपक मिश्रा के सेवानिवृत होने के बाद अगले मुख्य न्यायाधीश बनेंगे।


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