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दुनिया बदली पर कांग्रेस नहीं, महामारी के काल में राजनीति नहीं राष्ट्रीय कर्तव्य से होता है मूल्यांकन

इतिहास गवाह है कि जब देश को जरूरत हुई है तो देश की मां बहनों ने अपने गहने तक देश को दिए हैं। महामारी के काल में वही देश और समाज जीतता है अधिकार की नहीं कर्तव्यों की बात करता है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 23 Apr 2020 07:21 PM (IST)Updated: Thu, 23 Apr 2020 07:23 PM (IST)
दुनिया बदली पर कांग्रेस नहीं, महामारी के काल में राजनीति नहीं राष्ट्रीय कर्तव्य से होता है मूल्यांकन
दुनिया बदली पर कांग्रेस नहीं, महामारी के काल में राजनीति नहीं राष्ट्रीय कर्तव्य से होता है मूल्यांकन

प्रशांत मिश्र, [त्वरित टिप्पणी]। महामारी के वक्त में सबकुछ बदल जाता है। लोगों की सोच, जीवन यापन का तौर तरीका, समाज में एक दूसरे के साथ व्यवहार। और इसीलिए कहा जाता है कि संकट लोगों को जीवन की सीख देकर जाता है। घोर निराशा के काल में सकारात्मक बदलाव के लिए प्रेरित कर जाता है। लेकिन कांग्रेस है कि बदलने के लिए तैयार ही नहीं है। उसे न तो समाज के अंदर आ रहे बदलाव का आभास है और न ही इसका कि वह कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी थी और सबसे पुरानी तो अभी भी है। गुरुवार को सोनिया गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस कार्यसमिति में जिस तरह धर्म की राजनीति को उछाला गया है वह यही दर्शाता है कि जमीन से पहले ही कट चुकी कांग्रेस अब महामारी काल की राजनीतिक और राष्ट्रीय संवेदनशीलता भी भूल चुकी है।

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गुरुवार को एक महीने के अंदर संभवत: दूसरी बार कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई है। यह अदभुत है क्योंकि कांग्रेस में तो ऐसी परंपरा कभी रही नहीं है। अच्छा होता कि कांग्रेस हर वक्त अपने वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार विमर्श कर ही रणनीति तय करती। क्योंकि अक्सर हर मुद्दे पर कांग्रेस के अंदर मतभेद दिखता रहा है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता जब लॉकडाउन का समर्थन कर रहे थे तो शीर्ष स्तर पर कुछ नेता अलग राग अलाप रहे थे। बाद में इन नेताओं को पता चला कि कांग्रेस के कई मुख्यमंत्री भी लॉकडाउन की वकालत कर रहे थे। मजबूरी में लॉकडाउन का राग छोड़ा तो आर्थिक संकट पर रोजाना बयान देना शुरू कर दिया।

हर देश कर रहा है अपनी कवायद

गुरुवार को भी कांग्रेस अध्यक्ष की ओर से यही गिनाया गया है। आर्थिक संकट बहुत गहरा है। इससे कबतक बाहर आ पाएंगे यह कहना भी मुश्किल है। लेकिन यह सरकार की नीतियों के कारण नहीं बल्कि वैश्विक महामारी के कारण है और पूरी दुनिया इसी चिंता में है। हर देश अपनी अपनी कवायद कर रहा है। अमेरिका जैसा देश जिसने जान से ज्यादा अर्थ को महत्व दिया और लॉकडाउन जैसे कदम उठाने में देर की वहां मौत का आंकड़ा पचास हजार छूने को है। अब हालत यह है कि जान भी गई और जहान भी नहीं बच पा रहा है।

भारत ने कदम उठाया तो उसका असर यह दिख रहा है कि मौतें कम हुई हैं। संक्रमण मे भी भारत कई देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति में है। क्या कांग्रेस खुलकर कहने की स्थिति में है कि यहां उस वक्त लॉकडाउन नहीं करना चाहिए था जब इसकी घोषणा की गई।

राज्यों को भी केंद्र से बड़ा फंड चाहिए

आर्थिक समस्या बहुत बड़ी है और इससे बाहर निकलना है तो हर किसी को योगदान देना ही होगा। साम‌र्थ्य के अनुसार लोग दे भी रहे है और सरकार सांसद निधि रोककर, वेतन में कटौती कर, केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ते को कुछ महीनों तक रोककर बजट का प्रबंधन कर रही है। क्या इसका विरोध होना चाहिए। क्या आज के वक्त जब इस बड़ी लड़ाई के लिए संसाधन चाहिए, राज्यों को भी केंद्र से बड़ा फंड चाहिए तो हर किसी की जिम्मेदारी नहीं बनती है। इसे राजनीति का मुद्दा बनाना केवल राजनीतिक समझ पर सवाल खड़े करता है।

इतिहास गवाह है कि जब देश को जरूरत हुई है तो देश की मां बहनों ने अपने गहने तक देश को दिए हैं। महामारी के काल में वही देश और समाज जीतता है अधिकार की नहीं कर्तव्यों की बात करता है। हो सकता है आगे कुछ वक्त तक कठिन वक्त हो लेकिन एकजुटता के साथ लडे तो भविष्य सुनहरा ही होगा। मुख्य विपक्षी दल होने के कारण कांग्रेस को चाहिए था कि वह राजनीति छोड़कर कंधे से कंधा मिलाकर सरकार के साथ खड़ी होती। हाल में राहुल गांधी ने भी यह स्वीकारा था कि अभी वक्त राजनीति का नहीं लड़ाई का है। लेकिन वह कथन कितना खोखला था यह गुरुवार को फिर से उजागर हो गया।


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