Move to Jagran APP

सड़ गई एंबुलेंस, शव ले जाने के भी नहीं आई काम और नेताजी को चाहिए चमाचम नई कार

मरीजों की जान बचाने वाली अधिकांश एंबुलेंस जंग खाकर सड़ गई। अब यह शव ढोने के काबिल भी नहीं रही हैं और मंत्री कर रहे हैं टाटा सफारी के टॉप मॉडल की मांग।

By Edited By: Published: Thu, 23 Aug 2018 12:39 PM (IST)Updated: Fri, 24 Aug 2018 05:25 AM (IST)
सड़ गई एंबुलेंस, शव ले जाने के भी नहीं आई काम और नेताजी को चाहिए चमाचम नई कार

जमशेदपुर (जागरण स्‍पेशल)। झारखंड में सरकार की उदासीनता का हाल बड़ा ही बुरा है। आलम ये है कि यहां के मंत्रियों को नई-नई सरकारी कारों का शौक है तो आम लोगों की तरफ देखने सुनने वाला कोई नहीं है। बदहाली कुछ ऐसी है कि यहां पर राज्यम सरकार द्वारा मुहैया करवाई गई कई ऐंबुलेंस खराब पड़ी हैं, जिन्हें सही करवाने की तरफ फिलहाल सरकार का ध्यान नहीं गया है। मरीजों की जान बचाने वाली अधिकांश एंबुलेंस जंग खाकर सड़ गई। अब ये न तो मरीजों को अस्पताल पहुंचाने में काम आ सकेगी और न ही शव को ले जाने में। क्योंकि उसके आधे से अधिक पाट्स जंग खा गए हैं। यदि सही समय पर इनकी मरम्मत करा दी जाती तो ये सभी सड़क पर दौड़ रही होतीं और मरीजों के तीमारदारों को भी आसानी होती। राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में ऐसी गाड़ियों की भरमार है जो चालू हालत में हैं, लेकिन मंत्रियों और साहबों की बेरुखी की शिकार हो यूं ही सड़ रही हैं। अच्छी हालत में होते हुए भी करोड़ों की कई गाड़ियां खटारा हो गईं। सचिवालयों में करीब 50 करोड़ की सड़ रही हैं।

loksabha election banner

जंग खा रही एंबुलेंस
पूर्वी सिंहभूम जिले में दस एंबुलेंस जंग खा रही हैं। हालांकि, इसकी मरम्मत के लिए जिला स्तरीय एक कमेटी का गठन हुआ था और स्वास्थ्य विभाग से प्राक्कलन तैयार कर मांगा गया। विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कुल दस एंबुलेंस खराब होने की बात कहीं है। कुछ को तो ठीक कराने में सिर्फ नौ हजार ही खर्च आएगा, लेकिन विभाग की उदासीनता के कारण अबतक एक भी एंबुलेंस ठीक नहीं कराई जा सकी है। रिपोर्ट में दस एंबुलेंस की मरम्मत पर होने वाला कुल खर्च करीब आठ लाख 36 हजार 500 रुपये बताया गया है। वहीं कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम में भी तीन एंबुलेंस खराब पड़े हुए है।

छह-सात वर्षो में बदहाल हो गई एंबुलेंस
सरकार ने वर्ष 2005-06 में कुल दस एंबुलेंस जिला स्वास्थ्य विभाग को मुहैया कराई थीं, लेकिन समुचित देखभाल व रख-रखाव के अभाव में सरकारी एंबुलेंस की स्थिति बिगड़ गई। ये सभी छह-सात वर्ष के अंदर ही खराब हो गई। जिन्हें चार खासमहल स्थित सिविल सर्जन कार्यालय व छह साकची स्थित फाइलेरिया विभाग के कार्यालय में डंप कर दिया गया है।

ऑटो व निजी एंबुलेंस से ले जाए जाते हैं शव
खासमहल स्थित सदर अस्पताल में तैनात चिकित्सकों का कहना है कि जिले में शव ले जाने के लिए एक भी एंबुलेंस नहीं है, जिसके कारण हमेशा हो-हंगामा की स्थिति उत्पन्न होती है। मरीज की मौत होने के बाद परिजन उसे ले जाने के लिए एंबुलेंस की मांग करते हैं। इस दौरान एंबुलेंस नहीं होने की बात कहने पर वे लोग उलझने और हंगामा करने लगते है। यदि इन सभी एंबुलेंस को बना दिया जाता तो कम से कम शव ले जाने का काम तो आ ही जाता। फिलहाल सुविधा नहीं होने के कारण शव को ऑटो या फिर निजी एंबुलेंस से ले जाया जाता है।

स्थायी चालक एक भी नहीं, निजी एंबुलेंस की बढ़ी मांग
सरकारी अस्पतालों में लगभग आधी एंबुलेंस खराब पड़ी हैं और जो एंबुलेंस ठीक भी हैं तो उनमें कोई स्थायी चालक नहीं हैं। सिर्फ कांट्रैक्ट पर सात चालक रखें गए हैं। इसका सीधा फायदा निजी एंबुलेंस वालों को मिल रहा है। जिस कारण एंबुलेंस संचालन का धंधा भी जिले में फल-फूल रहा है। सरकारी एंबुलेंस का किराया प्रति किलोमीटर आठ रुपये है। जबकि निजी एंबुलेंस चालक मनमाना किराया वसूल रहे हैं। एक चालक के अनुसार 12 से 22 रुपये तक वह प्रति किलोमीटर किराया लेते हैं जो लग्जरी कारों के किराये से कम नहीं है। जबकि सेवाभावी संस्थाएं नो-प्रॉफिट नो लॉस की बात करती हैं।

एंबुलेंस में यह सुविधाएं जरूरी 
एंबुलेंस में कंपाउंडर या नर्स होना चाहिए, वह भी प्रशिक्षित जो मरीज की देखभाल कर सके। 
मरीजों को चढ़ाने और उतारने के लिए ट्रॉली स्ट्रेचर होना जरूरी है। 
हार्ट अटैक के मरीज के लिए एंबुलेंस में काडिए डियुकिबेलेटर मशीन होनी चाहिए, ताकि मरीज को ट्रीट किया जा सके। - एंबुलेंस रजिस्टर्ड होनी चाहिए।

नेपाल हाउस में पड़ी हैं 25 गाड़ियां, प्रोजेक्ट भवन में 50 से अधिक 
कभी मंत्री-अफसर के लिए शान समझी जाने वालीं एंबेसडर कबाड़ का सर्वाधिक दंश झेल रही हैं। नेपाल हाउस सचिवालय में ही 25 गाड़ियां (मार्शल, एंबेसडर) बेकार पड़ी हुई हैं। इनमें कई गाड़ियां देखने से ही अच्छी हालत में लग रही हैं। मंत्रियों के एस्कार्ट में शामिल कई अच्छी गाड़ियां भी सचिवालय में सड़ रही हैं। शिक्षा विभाग के पीछे भी कई ऐसी गाड़ियां सड़ रही हैं।

कृषि मंत्री को चाहिए टाटा सफारी का टॉप मॉडल
 राज्य सरकार ने वर्ष 2015 में ही सभी मंत्रियों को नई गाड़ियां फा‌र्च्यूनर के रूप में दी हैं। उनकी गाड़ियां फिलहाल चकाचक हैं। इसके बावजूद कृषि मंत्री ने टाटा सफारी के टॉप मॉडल की मांग कैबिनेट से की है।

केंद्र से मिले वाहन का रजिस्ट्रेशन तक नहीं 
केंद्र द्वारा दिए गए एक वाहन का उपयोग तक नहीं हुआ। इस गाड़ी का रजिस्ट्रेशन भी नहीं हो सका। वर्षों पूर्व यह गाड़ी स्वास्थ्य विभाग को आवंटित हुई थी, जिसे रांची के अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी को दिया गया था। यह गाड़ी वैसे ही नेपाल हाउस में पड़ी रह गई। बड़े वाहन या सामान उठाने वाली यह गाड़ी स्वास्थ्य विभाग को क्यों दी गई, इसे कोई बताने वाला भी नहीं है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.