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Sushma Swaraj के पति ने उनके लिए दांव पर लगा दिया अपना राजनीतिक करियर

सुषमा स्वराज राजनीति के जिस शिखर पर पहुंची उसमें उनके पति की भी अहम भूमिका रही है। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में इनका नाम विशेष दंपति के तौर पर दर्ज किया गया था।

By Amit SinghEdited By: Published: Wed, 07 Aug 2019 12:24 AM (IST)Updated: Wed, 07 Aug 2019 12:31 PM (IST)
Sushma Swaraj के पति ने उनके लिए दांव पर लगा दिया अपना राजनीतिक करियर
Sushma Swaraj के पति ने उनके लिए दांव पर लगा दिया अपना राजनीतिक करियर

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भाजपा की कद्दावर नेता सुषमा स्वराज का 67 साल की उम्र में दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। भाजपा ही नहीं, विपक्षी दल के राजनेता भी उनके निधन से बेहद दुखी हैं। सुषमा स्वराज ने अपने सौम्य और मृदुल स्वभाव के जरिए राजनीति में वो मुकाम हासिल किया, जो आज तक देश की किसी महिला राजनेता को प्राप्त नहीं हुआ। यही वजह है कि सुषमा स्वराज देश की अकेली महिला राजनेता हैं, जिन्हें असाधारण सांसद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

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सुषमा स्वराज के राजनीति शिखर तक पहुंचने में उनके पति स्वराज कौशल की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वह पति से हमेशा राजनीतिक विषयों पर सलाह-मशविरा करती थीं। एक बार सुषमा स्वराज ने कहा था, 'मेरे पति स्वराज कौशल समाजवादी जरूर हैं, लेकिन वह दूसरे समाजवादी नेताओं से भिन्न हैं। उन्होंने अपना राजनीतिक करियर दांव पर लगा मेरे करियर को आगे बढ़ाया।

सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नान्डिस के करीबी थे। इस कारण सुषमा स्वराज भी 1975 में फर्नान्डिस की विधिक टीम का हिस्सा बन गयीं। आपातकाल के समय उन्होंने जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। स्वराज कौशल भी छह वर्ष तक राज्यसभा में सासंद रहे थे। वह मिजोरम के राज्यपाल भी रह चुके हैं।

अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत की भारत की छवि
सुषमा स्वराज भाजपा की एकमात्र महिला नेता हैं, जिन्होंने उत्तर से लेकर दक्षिण तक की राजनीति की और हर जगह सफल रहीं। वो दोनों इलाकों से चुनाव लड़ीं। सुषमा स्वराज का स्वभाव ऐसा रहा है कि जो उनसे मिले उनका फैन बन गया। उनकी पहचान एक प्रखर वक्ता की थी। वह जितना अपने सौम्य स्वभाव के लिए जानी जाती थीं, उतना ही अपने बुलंद हौसलों और बेबाकी के लिए भी जानी जाती थीं। मोदी सरकार 1 में उन्होंने बतौर विदेश मंत्री कई देशों की यात्रा की। उन्होंने अपने कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की मजबूत छवि बनाई।

सोशल मीडिया पर सक्रियता से चर्चा में रहीं
विदेश मंत्री के पिछले कार्यकाल में सुषमा स्वराज सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता को लेकर भी काफी सक्रिय रहीं थीं। ऐसे कई वाक्ये सामने आए जब विदेश में मौजूद किसी भारतीय ने ट्वविटर पर उनसे मदद मांगी और उन्होंने उसकी मदद की। मोदी सरकार-1 में सुषमा स्वराज उन मंत्रियों में शामिल थीं, जो सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा एक्टिव माने जाते थे। सोशल मीडिया के जरिए लोगों से सीधा संपर्क बनाने का उनका देश की जनता को काफी पसंद आया।

सुषमा स्वराज का निजी व पारिवारिक जीवन
सुषमा स्वराज का जन्म हरियाणा के अंबाला कैंट में 14 फरवरी 1952 को हुआ था। उनके पिता हरदेव शर्मा, आरएसएस के प्रमुख सदस्यों में से थे। सुषमा स्वराज ने अंबाला छावनी के एसएसडी कॉलेज से बीए की पढ़ाई करने के बाद, चडीगढ़ से कानून की डिग्री हासिल की। 1970 में उन्हें कॉलेज में सर्वश्रेष्ठ छात्रा के सम्मान से सम्मानित किया गया था। वह तीन साल तक एसडी कॉलेज, छावनी में एनसीसी की बेस्ट कैडेट भी रहीं। इसके अलावा तीन साल तक उन्हें राज्य की सर्वश्रेष्ठ वक्ता के तौर पर चुना गया था। पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से कानून की पढ़ाई करने के दौरान 1973 में भी उन्हें सर्वोच्च वक्ता का पुरस्कार मिला था।

पति संग सुप्रीम कोर्ट में की वकालत
राष्ट्रीय राजनीति में आने से पहले उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में प्रैक्टिस भी शुरू की थी। सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल भी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ और बेहद प्रतिष्ठित अधिवक्ताओं में शामिल हैं। 13 जुलाई 1975 को दोनों का विवाह हुआ था। दोनों ने साथ-साथ प्रैक्टिस की थी। इनकी केवल एक बेटी है, जिनका नाम बांसुरी कौशल है। उन्होंने बेटी का नाम बांसुरी इसलिए रखा था, क्योंकि वह श्रीकृष्ण की बड़ी भक्‍त थीं। बांसुरी ने ऑक्सोफोर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक और इनर टेम्पल से कानूनी की डिग्री हासिल की। वह भी अपने पिता की तरह दिल्ली हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक मामलों की जानी-मानी वकील हैं।

सुषमा स्वराज का राजनीतिक जीवन
सुषमा स्वराज के राजनीतिक जीवन की शुरूआत भाजपा की ही छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से हुई थी। छात्र राजनीति से ही वह काफी अच्छी प्रवक्ता थीं। वर्ष 1977 में उन्हें मात्र 25 वर्ष की आयु में हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। उन्होंने अम्बाला छावनी विधानसभा क्षेत्र से हरियाणा विधानसभा के लिए विधायक का चुनाव जीता था। 1977 से 79 तक वह राज्य की श्रम मंत्री रहीं। 80 के दशक में भाजपा के गठन के वक्त ही वह पार्टी में शामिल हो गईं थीं। 1987 व 1990 में भी वह अंबाला छावनी से विधायक चुनीं गईं। महज 27 वर्ष की उम्र में वह हरियाणा में भाजपा की अध्यक्ष बन गईं थीं।

पति ने चुनाव न लड़ने के फैसले पर कही थी ये बात
सुषमा स्वराज तीन बार विधायक और सात बार सांसद रह चुकी हैं। अंतिम बार वर्ष 2014 में वह विदिशा से लोकसभा सांसद बनीं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी। 15वीं लोकसभा में उन्होंने बतौर नेता प्रतिपक्ष संसद में पार्टी का नेतृत्व किया। 2016 में किडनी ट्रांसप्लांट के बाद स्वास्थ्य कारणों के चलते सुषमा स्वराज ने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। उनके पति ने कहा था कि एक समय के बाद मिल्खा सिंह ने भी दौड़ना बंद कर दिया था। आप तो 41 साल से चुनाव लड़ रही हैं। सक्रिय राजनीति से किनारा करने के बावजूद वह पार्टी, देश और देशवासियों के लिए अंतिम सांस तक काम करती रहीं।

दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रहीं
सुषमा स्वराज हरियाणा से सक्रिय राजनीति में आयीं और दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। इसके अलावा वह कई बार केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं। अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में भी उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया था। आपातकाल के दौरान भी उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया था। सुषमा स्वराज 1990 में पहली बार राज्यसभा के लिए चुनीं गईं थीं। 1990-96 तक वह राज्यसभा में सांसद रहीं। 1996 में वह पहली बार 11वीं लोकसभा के लिए चुनीं गईं थीं। पहली बार लोकसभा पहुंचने पर ही अटल बिहारी की 13 दिन की सरकार में उन्हें केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गईं थीं। 12वीं लोकसभा के लिए दक्षिणी दिल्ली चुने जाने पर वह एकबार फिर केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री बनीं। इस बार उन्हें दूरसंचार मंत्रालय का भी अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया था। वर्ष 1998 में उन्होंने केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा दिया और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को दी चुनौती
पार्टी की कद्दावर नेता होने के बावजूद सुषमा स्वराज ने वर्ष 1999 में उन्होंने आम चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ बेल्लारी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा। हालांकि, उन्हें हार का सामना करना पड़ा और वर्ष 2000 में वह एक बार फिर राज्यसभा पहुंचीं। उन्हें एक बार फिर सूचना प्रसारण मंत्री बनाया गया। मई 2004 तक वह सरकार में रहीं। वर्ष 2009 में भी वह मध्य प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुनी गईं और राज्यसभा में प्रतिपक्ष की उपनेता बनीं।

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