अन्नाद्रमुक के 11 विधायकों की अयोग्यता के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने किया तमिलनाडु सरकार से जवाब तलब
सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष ने अयोग्य ठहराए जाने वाली याचिका के संबंध में अभी विधायकों को नोटिस तक नहीं जारी किया है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को द्रमुक की तरफ से दाखिल याचिका पर विचार करते हुए तमिलनाडु सरकार से जवाब तलब किया है। याचिका में द्रमुक ने आरोप लगाया है कि वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विरोध में मतदान करने वाले अन्नाद्रमुक के 11 विधायकों की अयोग्यता के मुद्दे पर फैसला लेने में राज्य विधानसभा अध्यक्ष करीब तीन साल से निष्क्रियता बरत रहे हैं। इन विधायकों में उपमुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम भी शामिल हैं।
विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने वाली याचिका पर 3 साल बाद भी कोई विचार नहीं
चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने द्रमुक की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की उस दलील पर गौर किया कि विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने वाली याचिका मार्च 2017 में सौंपी गई थी। करीब तीन साल होने को हैं और उस पर अब तक कोई विचार नहीं किया गया है। पीठ में जस्टिस बीआर गवई और सूर्य कांत भी शामिल हैं।
विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से तीन साल की देरी बेवजह- सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने कहा, 'हमें लगता है कि विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से तीन साल की देरी बेवजह की गई। बताएं कि क्या आप कार्रवाई करेंगे? अगर हां तो कब और कैसे?' उसने कहा कि शीर्ष अदालत की तरफ से हाल ही में मणिपुर के मंत्री के संबंध में सुनाया गया फैसला देश का कानून है और उसे आधार बनाया जा सकता है। 21 जनवरी को जस्टिस आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने फैसला सुनाया था कि लोकसभा या विधानसभा अध्यक्षों को सदस्यों और खासकर दलबदल वालों के मामलों पर अधिकतम तीन महीने में फैसला करना चाहिए।
सिब्बल ने कोर्ट से कहा- विधायकों को नोटिस तक नहीं जारी किए गए
इससे पहले सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष ने अयोग्य ठहराए जाने वाली याचिका के संबंध में अभी विधायकों को नोटिस तक नहीं जारी किया है। इस पर कोर्ट ने तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल को जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की अगली सुनवाई 14 फरवरी को नियत कर दी। हालांकि, अन्नाद्रमुक की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने द्रमुक के तर्को का विरोध किया।