चुनाव अपराध संज्ञेय बनाने और सजा बढ़ाने की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया
चुनाव के दौरान रिश्वत को संज्ञेय अपराध बनाने और सजा बढ़ाकर दो साल करने की गुजारिश की थी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चुनाव अपराध को संज्ञेय अपराध बनाए जाने और सजा बढ़ाकर कम से कम दो वर्ष किये जाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने वकील और भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय की ओर से दाखिल याचिका पर विचार करने से इन्कार करते हुए खारिज कर दी।
याचिका में मांग की गई थी कि रिश्वतखोरी, चुनाव प्रभावित करना और उम्मीदवार का चुनाव खर्च का लेखाजोखा रखने में नाकाम रहने जैसे चुनाव अपराध को संज्ञेय अपराध बनाया जाए और इन अपराधों में कम से कम दो वर्ष की सजा का प्रावधान किया जाए। याचिका में कहा गया था कि 15 फरवरी 1992 को चुनाव आयोग ने सरकार को प्रस्ताव भेज कर चुनाव अपराधों को संज्ञेय अपराध बनाने और इनमें कम से कम दो वर्ष कैद की सजा का प्रावधान करने का आग्रह किया था।
याचिका में कहा गया था कि चुनाव अपराध स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए नुकसानदेह हैं। चुनाव में रिश्वतखोरी, चुनाव प्रभावित करने की कोशिश आईपीसी की धारा 171बी, और 171सी के तहत अपराध है। ये असंज्ञेय अपराध हैं और इनमें एक वर्ष की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। इसी तरह चुनाव परिणाम प्रभावित करने की मंशा से झूठा बयान प्रकाशित करना धारा 171जी में अपराध है और इसमें सिर्फ जुर्माने की सजा है। ऐसे ही इससे जुड़े अन्य अपराधों में है।
यह भी कहा गया था कि चुनाव आयोग ने 2012 में एक बार फिर सरकार से कानून में संशोधन करके चुनाव के दौरान रिश्वत को संज्ञेय अपराध बनाने और सजा बढ़ाकर दो साल करने की गुजारिश की थी। सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया।