Move to Jagran APP

कोलेजियम प्रणाली की ऐतिहासिक फैसले की समीक्षा से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार

कोलेजियम प्रणाली को हटाने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने कोलेजियम प्रणाली की समीक्षा याचिका को निरस्त कर दिया।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 06 Nov 2019 11:04 PM (IST)Updated: Thu, 07 Nov 2019 02:15 AM (IST)
कोलेजियम प्रणाली की ऐतिहासिक फैसले की समीक्षा से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार
कोलेजियम प्रणाली की ऐतिहासिक फैसले की समीक्षा से सुप्रीम कोर्ट का इन्कार

नई दिल्ली, प्रेट्र। वर्ष 1993 के नौ जजों की बेंच के ऐतिहासिक फैसले की समीक्षा से सुप्रीम कोर्ट ने इन्कार कर दिया है जिससे 26 साल पहले जजों की नियुक्ति की कोलेजियम प्रणाली लागू हुई थी। इससे पहले सरकार सीधे तौर पर जजों की नियुक्ति करती थी।

loksabha election banner

तीन जजों की खंडपीठ ने दिया फैसला

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में तीन जजों की खंडपीठ में जस्टिस एसए बोबडे और एनवी रमन्ना ने कोर्ट के चैंबर में यह फैसला दिया। अदालत ने नेशनल लायर्स कैंपेन फॉर ज्यूडीशियल रिफार्म एंड ट्रांसपिरेंसी (एनएलसीजेआरटी) की समीक्षा याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि इस फैसले की कोई समीक्षा नहीं होगी।

याचिका दायर करने में 24 साल से अधिक की देरी हुई

खंडपीठ ने कहा कि यह मामले में याचिका दायर करने में 9071 दिनों (24 साल से अधिक) की देरी हुई है। याचिकाकर्ता ने इस देरी के लिए कोई वाजिब स्पष्टीकरण भी नहीं दिया है। इसलिए मौजूदा समीक्षा याचिका को देरी से दायर किए जाने के आधार पर खारिज किया जाता है। इसके बावजूद हमने इस मामले में सावधानीपूर्वक समीक्षा याचिका और उसके दस्तावेजों पर गौर किया है।

उल्लेखनीय है कि विगत 16 अक्टूबर को समीक्षा याचिका खारिज की गई थी, लेकिन कोलेजियम मामले में समीक्षा याचिका खारिज करने के फैसले को बुधवार को ही सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।

जजों की नियुक्ति के लिए वर्ष 1993 से पहले की व्यवस्था लागू हो

एनएलसीजेआरटी के अध्यक्ष और वकील मैथ्यूज जे. नेदुम्पारा अपनी याचिका के पक्ष में कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए वर्ष 1993 से पहले की व्यवस्था लागू कर दी जाए। इस व्यवस्था के तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्त और तबादले केंद्र सरकार करती थी।

1993 से पहले जजों की नियुक्ति और तबादले सरकार करती थी

संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 के तहत राष्ट्रपति को सीजेआइ के परामर्श से जजों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार मिलता है। 1993 में नौ जजों की पीठ ने अपने फैसले में 'परामर्श' को देश के मुख्य न्यायाधीश की अनिवार्य सहमति करार दिया था। जबकि इससे पहले की व्यवस्था में जजों की नियुक्ति और तबादले के लिए सरकार का फैसला ही अहम होता था।

कोलेजियम प्रणाली को हटाने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत

वर्ष 1998 में राष्ट्रपति के 'ध्यानाकर्षण' पर सुप्रीम कोर्ट में नौ अन्य जजों की बेंच ने 1993 के फैसले को सही ठहराते हुए कोलेजियम प्रणाली में जजों की नियुक्ति को सीजेआइ के नेतृत्व वाले कोलेजियम के अधीन ही कर दिया। इसके बाद वर्ष 2015 में जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने नेशनल ज्यूडिशियल एप्वाइंटमेंट्स कमिशन (एनजेएसी) को खारिज कर दिया। लिहाजा, मौजूदा कोलेजियम प्रणाली को हटाने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.