सुप्रीम कोर्ट ने सीएम को लोकायुक्त के दायरे मे लाने की मांग पर यूपी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा
याचिका में यह भी मांग की गई है कि सभी जनप्रतिनिधियों के लिए अनिवार्य किया जाए कि वह अपनी वार्षिक संपत्ति और जिम्मेदारियों का ब्योरा लोकायुक्त को दें।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के दायरे में लाने की मांग पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। शिव कुमार त्रिपाठी की जनहित याचिका में मांग की गई है कि 1975 के उत्तर प्रदेश लोकायुक्त एवं यूपी लोकायुक्त कानून में उचित संशोधन कर मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के दायरे में लाया जाए। याचिका में उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त को और ज्यादा सशक्त बनाने की मांग की गई है ताकि जिस उद्देश्य से लोकायुक्त का गठन हुआ है वह पूरा हो सके।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई व संजीव खन्ना की पीठ ने याचिका पर बहस सुनने के बाद प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया। सरकार को छह सप्ताह में जवाब दाखिल करना है। याचिकाकर्ता का कहना है कि मौजूदा उत्तर प्रदेश लोकायुक्त एवं यूपी लोकायुक्त 1975 के कानून में लोकायुक्त को मुख्यमंत्री के बारे में जांच करने का अधिकार नहीं है। न ही लोकायुक्त किसी मामले पर स्वंय संज्ञान ले सकता है। अभी लोकायुक्त सिर्फ उसके समक्ष आने वाली शिकायतों पर भी संज्ञान लेकर जांच कर सकता है।
याचिका में मुख्यमंत्री को दायरे में लाने के अलावा राज्य विश्वविद्यालय, और कानून के तहत बनाए गए डीम्ड विश्वविद्यालय के वीसी आफिस और शिक्षकों को भी लोकायुक्त के दायरे में लाने की मांग की गई है। सरकारी और गैरसरकारी न्यासों, शिक्षण संस्थानों आदि को भी लोकायुक्त के दायरे में लाने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि कानून में संशोधन कर लोकायुक्त को कोर्ट की तरह अवमानना का अधिकार दिया जाए साथ ही सदन में लोकायुक्त की रिपोर्ट और सिफारिश पेश करने की समयसीमा तय हो।
याचिका में यह भी मांग की गई है कि सभी जनप्रतिनिधियों के लिए अनिवार्य किया जाए कि वह अपनी वार्षिक संपत्ति और जिम्मेदारियों का ब्योरा लोकायुक्त को दें।