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कैदियों की समय पूर्व रिहाई नीति मामला: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की हरियाणा सरकार की याचिका

कृष्णा ने हाईकोर्ट में याचिका देकर समयपूर्व माफी पर विचार का आदेश मांगा था जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया था जिसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट आयी थी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 20 Jan 2019 07:11 PM (IST)Updated: Sun, 20 Jan 2019 07:11 PM (IST)
कैदियों की समय पूर्व रिहाई नीति मामला: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की हरियाणा सरकार की याचिका
कैदियों की समय पूर्व रिहाई नीति मामला: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की हरियाणा सरकार की याचिका

जागरण, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नीति के मुताबिक हत्या के दोषी उम्र कैदी की समय पूर्व रिहाई पर विचार करने के आदेश को चुनौती देने वाली हरियाणा सरकार की याचिका खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को सही माना है जिसमें कहा गया है कि अगर हत्या का मामला समय पूर्व रिहाई नीति में तय क्रूरता के उदाहरणों जैसे हत्या के बाद शव जलाना, उसे टुकड़ों में काटना या घसीटना जैसे में नहीं आता तो तय नीति के पैरा 2(बी) के मुताबिक 10 साल की वास्तविक और चार साल माफी सहित कुल 14 साल की सजा पूरी करने पर कैदी की समय पूर्व रिहाई पर विचार होना चाहिए।

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हालांकि सुप्रीम कोर्ट और पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट का आदेश एक कैदी के मामले में आया है, लेकिन इसका असर उन सभी कैदियों की समय पूर्व रिहाई पर पड़ सकता है जो हत्या के जुर्म में उम्र कैद की सजा भुगत रहे हैं और उनका मामला हरियाणा सरकार की कैदियों की समय पूर्व रिहाई की आठ अगस्त 2000 की नीति में कवर होता है।

न्यायमूर्ति यूयू ललित और केएम जोसेफ की पीठ ने पिछले सप्ताह हरियाणा सरकार की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उन्हें हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने का कोई कारण नजर नहीं आता। इससे पहले हरियाणा सरकार ने हत्या के दोषी उम्रकैदी की समय पूर्व रिहाई पर विचार करने के हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा था कि यह मामला क्रूरतम हत्या का है क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक मृतक के शरीर पर कुल 21 चोटें पाई गईं।

सरकार का विरोध करते हुए कैदी कृष्णा के वकील ऋषि मल्होत्रा की दलील थी कि वैसे तो हर हत्या क्रूर होती है, लेकिन जब सरकारी नीति में क्रूरता की श्रेणी तय है तो फिर हत्या के हर मामले को एक ही श्रेणी में रखना ठीक नहीं है।

अगर मामला नीति के तहत क्रूरता के दिये गए उदाहरण में नहीं आता तो उसे समय पूर्व रिहाई नीति के पैराग्राफ 2(बी) में माफी के लिए तय मानकों में गिना जाएगा। जिसके तहत 10 साल का वास्तविक कारावास और 4 साल माफी मिलाकर कुल 14 साल कैद पूरी होने पर समय पूर्व रिहाई पर विचार होना चाहिए। यही आदेश पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने दिया है जो कि बिल्कुल ठीक है। कोर्ट ने लंबी दलीलें सुनने के बाद राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी।

यह मामला हरियाणा के भिवाड़ी का है जिसमें सत्र अदालत ने कृष्णा सिंह को हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। 2011 में अपीलें खारिज होने के बाद कृष्णा ने हरियाणा सरकार की कैदियों की समयपूर्व रिहाई की अगस्त 2000 की नीति के तहत रिहाई की मांग की।

सितंबर 2016 में स्टेट लेबल कमेटी ने उसकी अर्जी पर विचार किया तबतक कृष्णा 11 साल वास्तविक कैद और माफी मिला कर कुल 14 साल कैद काट चुका था जैसा कि नीति के पैरा 2 (बी) में रिहाई के लिए जरूरी शर्त थी, लेकिन कमेटी ने अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि उसका मामला हत्या की क्रूर श्रेणी में आता है इसलिए उस पर 14 साल की वास्तविक और माफी सहित कुल 20 साल कैद के बाद ही विचार किया जा सकता है।

कृष्णा ने हाईकोर्ट में याचिका देकर समयपूर्व माफी पर विचार का आदेश मांगा था जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया था जिसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट आयी थी।

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