हिरासत में यातना के खिलाफ कानून के मसौदे पर फीडबैक दें राज्य : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिवों को तीन हफ्ते का समय दिया है। यातना के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में भारत शामिल है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में यातना और अमानवीय व्यवहार को रोकने के लिए प्रस्तावित केंद्र सरकार के कानून के मसौदे पर सभी राज्यों को फीडबैक देने का निर्देश दिया है। सर्वोच्च अदालत ने इसके लिए राज्य के मुख्य सचिवों को तीन हफ्ते का समय दिया है। ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हिरासत में यातना के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में भारत भी शामिल है।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एल नागेस्वर राव और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ को अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने बताया कि केंद्र सरकार ने मसौदा विधेयक को फीडबैक के लिए सभी राज्यों को भेजा है। उन्होंने बताया कि अभी तक कानून मंत्रालय को सिर्फ सात राज्यों के फीडबैक ही मिले हैं।
पीठ ने कहा, 'केंद्र सरकार की तरफ से अटार्नी जनरल को सुनने के बाद, हम सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को आज से तीन हफ्ते के भीतर अपना फीडबैक भेजने का निर्देश देते हैं।' पीठ ने कहा कि फीडबैक देने में नाकाम रहने वाले मुख्य सचिवों को उसके सामने 13 फरवरी को पेश होना होगा। मामले की अगली सुनवाई अब उसी दिन होगी।
इस मुद्दे पर जनहित याचिका दाखिल करने वाले पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि इस पर फीडबैक लेने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इससे कानून बनाने में और विलंब ही होगा। कुमार ने कहा, 'इसका कानून और व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है, जिसे राज्यों के अधिकार क्षेत्र में बताया जा रहा है। भारत संयुक्त राष्ट्र समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में शुमार है। कानून तुरंत बनाया जाना चाहिए। हिरासत में रोजना लोगों की मौत हो रही है।' पीठ ने कहा कि अगर यह कानून राज्यों के अधिकारों को स्पर्श कर रहा है तब उनकी राज्य लेना क्या गलत है।