2002 गुजरात दंगा: पीएम मोदी को क्लीन चिट के खिलाफ जकिया जाफरी की याचिका पर सुनवाई टली
2002 के गुजरात दंगे मामले में नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट देने के खिलाफ दायर जकिया जाफरी की याचिका पर उच्चतम न्यायालय 4 सप्ताह के बाद सुनवाई करेगा।
नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी गई क्लीन चिट के खिलाफ जकिया जाफरी की याचिका पर चार हफ्ते तक के लिए सुनवाई टाल दी है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब इस याचिका पर सुनवाई की तारीख टली है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 नवंबर को कॉज लिस्ट से जकिया जाफरी की याचिका को हटाकर तीन दिसंबर को सूचीबद्ध करने की बात कही गई थी। उससे पहले सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संभवत: ऑफिस रिपोर्ट में रजिस्ट्री की ओर से गलत जानकारी दी गई होगी।
बता दें कि मार्च, 2008 में सुप्रीम कोर्ट की ही गठित एसआइटी ने विगत आठ फरवरी, 2012 को मामले की क्लोजर रिपोर्ट दायर कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 59 अन्य लोगों को यह कहते हुए क्लीनचिट दी थी कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने योग्य कोई सुबूत नहीं हैं। इससे पूर्व, 2010 में एसआइटी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी से नौ घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की थी।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल गुजरात हाई कोर्ट ने गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले में एसआइटी द्वारा मोदी और 59 अन्य को बरी किए जाने के फैसले को बरकरार रखा था। इसके साथ ही कोर्ट ने जकिया जाफरी की याचिका को खारिज कर दिया था। साथ ही उन्हें आगे की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्देश दिया था। जकिया ने पांच अक्टूबर, 2017 के गुजरात हाई कोर्ट के इस फैसले को खारिज करने की अपील सुप्रीम कोर्ट में की है। इसके बाद, नौ फरवरी, 2012 को जकिया जाफरी और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ 'सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस' ने एसआइटी की रिपोर्ट को निचली मेट्रोपोलिटन अदालत में चुनौती दी थी। उन्होंने मोदी और अन्य पर दंगे के पीछे आपराधिक षड्यंत्र का आरोप लगाने की मांग की। लेकिन दिसंबर, 2013 में निचली अदालत ने एसआइटी की रिपोर्ट को सही ठहराया।
इसके बाद जकिया जाफरी और तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील की। यहां भी विगत तीन जुलाई, 2017 को जाफरी के वकीलों ने दलील दी कि निचली अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया। और घटना में साजिश बताने वाले गवाहों के हस्ताक्षरित बयानों पर विचार नहीं किया। लेकिन पिछले ही साल हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।