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पार्टियां कार्यकर्ताओं पर नियंत्रण रखें तो निष्पक्ष चुनाव कराने में मिलेगी मदद: सुनील अरोड़ा

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा कि अगर राजनीतिक पार्टियां अपने कार्यकर्ताओं को नियंत्रण में रखें तो निष्पक्ष चुनाव कराने में मदद मिलेगी।

By Manish PandeyEdited By: Published: Sat, 01 Jun 2019 10:21 AM (IST)Updated: Sat, 01 Jun 2019 10:21 AM (IST)
पार्टियां कार्यकर्ताओं पर नियंत्रण रखें तो निष्पक्ष चुनाव कराने में मिलेगी मदद: सुनील अरोड़ा
पार्टियां कार्यकर्ताओं पर नियंत्रण रखें तो निष्पक्ष चुनाव कराने में मिलेगी मदद: सुनील अरोड़ा

शिवांग माथुर, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव गुजर गया है। देश में नई सरकार बन गई है, लेकिन चुनाव के दौरान ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को लेकर लगातार सवाल उठते रहे। आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों को लेकर विपक्ष की तरफ से आयोग की निष्पक्षता को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई। उस पर पक्षपात के आरोप तक लगाए गए। आगे ऐसा न हो इसको लेकर चुनाव आयोग की भावी योजना क्या है, चुनाव सुधार को लेकर आयोग क्या कुछ करने जा रहा है, इन तमाम मुद्दों पर दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता शिवांग माथुर ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा से खास बातचीत की। प्रस्तुत है मुख्य अंश।

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चुनाव के दौरान आप कई बार कठघरे में खड़े किए गए। आपने इस चुनाव से क्या सीख ली है? आयोग आगे क्या करने जा रहा है?

- हर चुनाव, आयोग को कुछ न कुछ सीख देकर जाता है। चुनाव आयोग ने कुछ समूह बनाए हैं, जो आदर्श अचार संहिता, चुनाव सुधार जैसे तमाम मसलों पर अपने सुझाव देंगे। उनके पालन पर काम किया जाएगा। राजनीतिक दलों के साथ बैठक कर आदर्श आचार संहिता को और सख्त बनाने पर भी काम किया जाना तय है।

लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का मामला पिछली सरकार में जोर-शोर से उठा था, पर यह कानूनी मामलों में उलझ कर रह गया, क्या आप इसको आगे बढ़ाने की सोच रहे हैं?

- देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए राजनीतिक सहमति और कानून में बदलाव दोनों जरूरी है और इन्हीं दोनों चीजों में इसका समाधान छुपा है। राजनीतिक दल अगर सहमत हो जाते हैं और संविधान में संशोधन किए जाते हैं, तो ये एक आकर्षक लक्ष्य है। चुनाव आयोग हमेशा से इसके पक्ष में रहा है।

क्या आपको नहीं लगता कि मौजूदा हालात में आदर्श आचार संहिता को पुन: परिभाषित करने की जरूरत है? जिस तरह की भाषा और संवाद चुनाव प्रचार में देखने को मिला, आयोग के फैसले नाकाफी साबित हुए?

-आदर्श आचार संहिता राजनीतिक दलों की सहमति से बना एक कमाल का दस्तावेज है। इसमें समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं। किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता या किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ दो दिनों तकचुनाव प्रचार का प्रतिबंध लगाना कम बड़ी कार्रवाई नहीं है। आचार संहिता सांकेतिक कार्रवाई करती है। यह भारतीय दंड संहिता की तरह काम नहीं करती।

आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के तमाम मामलों में आयोग के फैसलों में विपक्ष ने आप पर भेदभाव के आरोप लगाए थे। आयोग की बहुत आलोचना हुई थी?

- चुनाव आयोग में सभी फैसले सामूहिक तौर पर लिए जाते हैं, चुनाव आयोग कार्रवाई सिर्फ दिखाने के लिए नहीं करता, हम खुद को ताकतवर साबित नहीं करना चाहते। हम राज्यों के चुनाव अधिकारियों से मिली लिखित रिपोर्ट को परखने के बाद ही फैसला लेते हैं।

पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में हुई ¨हसा पर आप क्या कहेंगे?

- हमने दोनों ही राज्यों में विशेष पर्यवेक्षक भेजे थे। उनकी रिपोर्ट के अनुसार कार्रवाई की, अधिकारियों के तबादले तक किए, अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए। हमारा सभी राजनीतिक दलों से निवेदन है कि अपने काडर पर अगर वो बेहतर नियंत्रण रखें तो हमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में आसानी होगी।

जिस प्रकार से चुनाव में धन बल का इस्तेमाल हो रहा है, क्या कभी कोई गरीब निर्धन इस देश में चुनाव लड़ पाएगा?

- वैसे तो इस बार कुछ सांसद ऐसे आए हैं जो बहुत ही सामान्य हालातों से निकलकर आगे बढ़े हैं। खुद प्रधानमंत्री जीवन में कितने कष्ट को पार कर यहां तक पहुंचे हैं, पर हां, यह कहना गलत नहीं होगा की मौजूदा हाल में किसी भी साधारण व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ना महंगा हो गया है।

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