केंद्रीय कृषि कानूनों में संशोधन के लिए 27-28 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ विधानसभा का विशेष सत्र
केंद्रीय कृषि श्रम आवश्यक वस्तु कानूनों को राज्य में लागू करने से रोकने के लिए राज्य सरकार कानून में संशोधन करने जा रही है। इसी के लिए ही विशेष सत्र बुलाई गई है। राजभवन ने पूछा था कि ऐसी कौन सी परिस्थिति है कि विशेष सत्र बुलानी पड़ रही।
रायपुर, राज्य ब्यूरो। छत्तीसगढ़ विधानसभा के विशेष सत्र को राज्यपाल ने मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही विधानसभा सचिवालय ने मंगलवार को 27 और 28 अक्टूबर को सत्र की अधिसूचना जारी कर दी। इस दो दिवसीय सत्र में प्रश्नकाल नहीं होगा।
केंद्रीय कृषि, श्रम और आवश्यक वस्तु कानूनों में संशोधन के लिए विधानसभा के विशेष सत्र बुलाया गया
बता दें कि केंद्रीय कृषि, श्रम और आवश्यक वस्तु कानूनों को राज्य में लागू करने से रोकने के लिए राज्य सरकार कानून में संशोधन करने जा रही है। इसी के लिए ही विशेष सत्र बुलाई गई है। एक दिन पहले मंगलवार को ही राजभवन ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए जाने पर सरकार से पूछा था कि ऐसी कौन सी परिस्थिति आ गई है कि विशेष सत्र बुलानी पड़ रही है।
प्रदेश के किसानों के हितों की रक्षा और आशंकाओं को दूर करने के लिए सत्र जरूरी
सरकार ने दोपहर बाद इसका जवाब भी भेज दिया था कि राज्य के किसानों के हितों की रक्षा और आशंकाओं को दूर करने के लिए यह सत्र जरूरी है। बताया जा रहा है कि सरकार के इस जवाब के बाद मंगलवार को राजभवन ने विशेष सत्र के लिए मंजूरी दे दी।
बस्तर दशहरा की परंपरा में भोज भी है और सजा भी
बस्तर दशहरा की परंपरा में भोज भी है और सजा भी। इस पर्व के दौरान देवी के छत्र को घुमाने के लिए रथ निर्माण का काम बेड़ा उमरगांव और झार उमरगांव निवासी संवरा जाति के लोग करते हैं। इन कारीगरों को गांव लौटते ही सजा मिलती है। आरोप होता है कि दूसरी जाति के लोगों का रथ बनाने में सहयोग क्यों लिया। कारीगर गांव पहुंचकर दंड सहर्ष स्वीकर करते हैं और पूरा गांव सामूहिक भोज का आनंद लेता है।
दंड बगैर ग्राम में प्रवेश नहीं
भतरा आदिवासी समाज के अध्यक्ष रतनराम कश्यप बताते हैं कि दशहरा के बाद संवरा जाति के कारीगर जब गांव लौटते हैं, तब इन्हें बस्ती में प्रवेश नहीं दिया जाता। समाज में मिलने के लिए इन्हें दंड भोगना पड़ता है। रथ बनाने वाले दल के प्रमुख दलपति सिरहा (बड़े उमरगांव) और कंवल नाग (झार उमरगांव) हैं। अपना कार्य दूसरी जाति के साथ करने के आरोप में उन्हें सामाजिक रूप से बहिष्कृत किया जाता है। समाज में मिलने के लिए भोज देना पड़ता है। बस्तर दशहरा समिति भोज के लिए आर्थिक सहयोग के साथ बकरे का प्रबंध करती है।