भाजपा पर बढ़त बनाने के लिए राममंदिर का सहारा लेगी शिवसेना
शिवसेना की परंपरागत दशहरा रैली के दिन पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे अपने अयोध्या जाने की तिथि की घोषणा कर सकते हैं।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। भाजपा पर राजनीतिक बढ़त के लिए शिवसेना राम मंदिर निर्माण का मुद्दा जोर-शोर से उठाने की योजना बना रही है। शिवसेना की परंपरागत दशहरा रैली के दिन पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे अपने अयोध्या जाने की तिथि की घोषणा कर सकते हैं।
ज्यादा प्रखर हिंदुत्ववादी दिखाने पर जोर
केंद्र में भाजपा सरकार होने के बावजूद राम मंदिर निर्माण की दिशा में कोई प्रगति नहीं होने पर शिवसेना सरकार को घेरती रही है। चुनाव नजदीक आते देख अब शिवसेना इस मुद्दे को और जोर-शोर से उठाने की योजना बना रही है। ऐसा कर वह खुद को भाजपा की तुलना में ज्यादा प्रखर हिंदुत्ववादी सिद्ध करना चाहती है।
वह इसका राजनीतिक लाभ महाराष्ट्र में तो लेना ही चाहती है, वाराणसी सहित कई और स्थानों पर भी वह अपने उम्मीदवार खड़े कर भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति बना रही है। इसके लिए उसने उत्तर प्रदेश मे अपने कार्यकर्ताओं को तैयारी करने के निर्देश भी दे दिए हैं।
राम मंदिर पर अध्यादेश लाए सरकार
शिवसेना सांसद संजय राऊत ने एक चैनल से बात करते हुए कहा है कि शिवसेना दीवाली के बाद अयोध्या में राममंदिर निर्माण शुरू कर देगी। राऊत ने यह भी कहा है कि जब हमने बाबरी ढांचा गिराने के लिए कोर्ट की अनुमति नहीं ली तो मंदिर बनाने के लिए कोर्ट की अनुमति क्यों ली जानी चाहिए। राऊत का सुझाव है कि सरकार अध्यादेश लाकर राम मंदिर का निर्माण शुरू करे।
बता दें कि 25 साल पहले अयोध्या में बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद जब भाजपा के कई शीर्ष नेता इस घटना पर खेद व्यक्त कर रहे थे तब शिवसेना के तत्कालीन प्रमुख बालासाहब ठाकरे ने ढांचा गिरने पर खुलकर खुशी व्यक्त की थी। उसे गिराने का श्रेय अपने शिवसैनिकों को दिया था।
अयोध्या में ढांचा गिराए जाने के बाद मुंबई में हुए सांप्रदायिक दंगों में भी शिवसेना खुलकर हिंदुओं के साथ खड़ी नजर आई थी। इसके परिणामस्वरूप बाल ठाकरे सहित उसके कई नेताओं पर गंभीर आरोप भी लगे थे। लेकिन उसे इन सारे प्रकरणों का राजनीतिक लाभ भी मिला।
1988 के बाद शिवसेना द्वारा खुलकर हिंदुत्व और राम मंदिर का पक्ष लेने के कारण ही वह महाराष्ट्र में धीरे-धीरे न केवल विस्तार करने में सफल रही, बल्कि राज्य की राजनीति में वह भाजपा के बड़े भाई की भूमिका में भी आ गई। 1995 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन की सरकार बनने पर उसका मुख्यमंत्री बना। अब शिवसेना उसी पुरानी नीति पर चलकर एक बार फिर अपनी खोई जमीन हासिल कर राज्य की सत्ता में नंबर वन की भूमिका में आना चाहती है।