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नार्वे की पीएम का सनसनीखेज बयान- सैन्य कार्रवाई से नहीं हो सकता कश्मीर का समाधान

हर दो पड़ोसी देशों के बीच शांति होनी चाहिए ताकि वह स्वास्थ्य व शिक्षा जैसे मुद्दों पर ज्यादा धन खर्च कर सकें ना कि सैन्य तैयारियों पर।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 07 Jan 2019 09:37 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 12:44 AM (IST)
नार्वे की पीएम का सनसनीखेज बयान- सैन्य कार्रवाई से नहीं हो सकता कश्मीर का समाधान

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। हिंसा ग्रस्त क्षेत्रों में मध्यस्थता के लिए मशहूर यूरोप का छोटा देश नार्वे भारत व पाकिस्तान के बीच भी रिश्ते को सुधारने को लेकर तैयार है। नार्वे की पीएम एरना सोल्बर्ग भारत की तीन दिवसीय यात्रा पर सोमवार को नई दिल्ली पहुंची और उन्होंने भारत व पाकिस्तान को लेकर जो बयान दिया है वह निश्चित तौर पर भारत को बहुत रास नहीं आएगा। सोल्बर्ग की मंगलवार को पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात भी होनी है और वह भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से आयोजित कूटनीति के महाकुंभ रायसीना डायलॉग को संबोधित भी करेंगी।

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नार्वे की पीएम एरना सोल्बर्ग भारत दौरे पर

नार्वे यूरोप के उस हिस्से में शामिल है जहां भारत ने हाल ही में अपने संबंधों को मजबूत बनाने की नई पहल शुरु की है। ऐसे में सोल्बर्ग की इस यात्रा का बेहद उत्सुकता से इंतजार किया जा रहा था। लेकिन सोल्बर्ग ने पहले ही दिन एक मीडिया चैनल को साक्षात्कार में और बाद में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए भारत व पाकिस्तान के रिश्तों पर अपनी बेबाक राय रख दी।

श्रीलंका, कोलंबिया जैसे विवादित व हिंसाग्रस्त देशों में नार्वे कर चुका है मध्यस्थता

उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान को बातचीत का फैसला तो अपने स्तर पर ही करना है। लेकिन अगर इस क्षेत्र में शांति की संभावना बनती है तो वह या कोई और देश मध्यस्थता कर सकते हैं। उनसे जब पूछा गया कि क्या कश्मीर का कोई सैन्य समाधान है तो उनका जवाब था कि, मैं नहीं समझती कि किसी भी हिंसा ग्रस्त क्षेत्र में सैन्य कार्रवाई से स्थाई शांति स्थापित की जा सकती है।

नार्वे के पूर्व पीएम ने हाल ही में कश्मीरी अलगाववादी नेताओं से की थी मुलाकात

सिर्फ कश्मीर की बात नहीं कर रही, लेकिन हमारे सामने सीरिया का उदाहरण है जहां सैन्य कार्रवाई के बावजूद समस्या का समाधान नहीं निकल पाया है। मेरा मानना है कि हर दो पड़ोसी देशों के बीच शांति होनी चाहिए ताकि वह स्वास्थ्य व शिक्षा जैसे मुद्दों पर ज्यादा धन खर्च कर सकें ना कि सैन्य तैयारियों पर। सोल्बर्ग ने यह भी कहा कि, 'नार्वे की नीति स्पष्ट है कि जब कोई मदद मांगता है तभी दी जाती है। हम अपनी तरफ से थोपने की कोशिश नही करते।'

नार्वे की पीएम के इस वक्तव्य पर भारत की तरफ से कोई प्रक्रिया नहीं आई है, लेकिन इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए नार्वे के नई दिल्ली स्थित राजदूत नील्स रागनेर काम्सवा ने ट्वीट किया कि हमारे देश ने भारत और पाकिस्तान के बीच किसी तरह की मध्यस्थता का प्रस्ताव नहीं किया है। ना ही तो किसी से हमें प्रस्ताव मिला है और ना ही नार्वे की तरफ से ऐसा कहा गया है।

भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि नार्वे के राजदूत ने स्थिति स्पष्ट कर दी है तो ऐसे में अब कहने को कुछ नहीं बचा है, लेकिन भारत सरकार नार्वे की तरफ से कश्मीर में खास रुचि दिखाने को लेकर सतर्क है। कुछ ही दिन पहले नार्वे के पूर्व पीएम के एम बोंदविक कश्मीर घाटी की यात्रा पर गये थे और वहां के अलगाववादी दलों के नेताओं से मुलाकात की थी। वे निश्चित तौर पर भारत सरकार की अनुमति से ही वहां गये होंगे। नार्वे इसके पहले श्रीलंका में तमिल हिंसा को समाप्त करने में भी काफी सक्रिय रहा है।


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