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Jyotiraditya Scindia: नेतृत्व की 'दुविधा' पर सिंधिया प्रकरण ने कांग्रेस में मचाई खलबली

कांग्रेस के मौजूदा संकटग्रस्त हालत को लेकर बेचैन पार्टी के तमाम नेता अब हाईकमान तक यह संदेश पहुंचाने लगे हैं कि नेतृत्व पर जारी दुविधा खत्म नहीं हुआ तो स्थिति और खराब होगी।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 11 Mar 2020 09:14 PM (IST)Updated: Wed, 11 Mar 2020 09:14 PM (IST)
Jyotiraditya Scindia: नेतृत्व की 'दुविधा' पर सिंधिया प्रकरण ने कांग्रेस में मचाई खलबली
Jyotiraditya Scindia: नेतृत्व की 'दुविधा' पर सिंधिया प्रकरण ने कांग्रेस में मचाई खलबली

संजय मिश्र, नई दिल्ली। निर्णायक फैसले लेने में हो रही देरी के चलते लगातार सियासी खामियाजा भुगत रही कांग्रेस में अब शीर्ष नेतृत्व की कार्यशैली को लेकर असंतोष की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने की घटना ने पार्टी में अंदरखाने ऐसी खलबली मचा दी है कि कई नेताओं का धैर्य जवाब देने के कगार पर पहुंचता दिख रहा है। कांग्रेस के मौजूदा संकटग्रस्त हालत को लेकर बेचैन पार्टी के तमाम नेता अब हाईकमान तक यह संदेश पहुंचाने लगे हैं कि नेतृत्व पर जारी दुविधा और असंमजस को जल्द खत्म नहीं किया गया तो फिर पार्टी में विद्रोह जैसी नौबत पैदा हो सकती है।

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सिंधिया का पार्टी से जाना सामान्य घटना नहीं 

कांग्रेस के कई नेताओं ने अनौपचारिक चर्चा में साफ कहा कि सिंधिया का पार्टी से जाना सामान्य घटना नहीं माना जा सकता क्योंकि उनकी गांधी परिवार से सीधी निकटता थी। इसके बावजूद शिखर नेतृत्व मध्यप्रदेश में पार्टी के अंदरूनी झगड़े को नहीं सुलझा सका। इस विफलता को लेकर हाईकमान भी अपना पल्ला नहीं झाड़ सकता। संसद भवन परिसर में अनौपचारिक चर्चा में पार्टी के कई नेताओं ने स्पष्ट कहा कि इस प्रकरण से कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व की दुविधा और कमजोरी का साफ संदेश गया है।

कांग्रेस की अंदरूनी सियासत में प्रभाव रखने वाले नेता पहुंचा रहे नुकसान

सिंधिया जहां गांधी परिवार के करीबी थे तो मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी पुराने भरोसेमंद। ऐसे में संदेश स्पष्ट है कि कांग्रेस की मौजूदा अंदरूनी राजनीतिक हकीकत में हाईकमान साहसी और निर्णायक फैसले लेने की स्थिति में नहीं है। यूपीए सरकार में मंत्री रहे पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता का कहना था कि हाईकमान की नये अध्यक्ष पर जारी दुविधा उसकी सबसे बड़ी कमजोरी नजर आ रही है। इसीलिए पार्टी की अंदरूनी सियासत में ज्यादा प्रभाव रखने वाले नेता हाईकमान की इस दुविधा की स्थिति का फायदा उठाते हुए अपने हितों के चक्कर में कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहे।

कांग्रेस के नये अध्यक्ष का मसला दुविधा में फंसा

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी लंबे समय तक जिम्मेदारी निभाने को इच्छुक नहीं और वे पार्टी की कमान फिर से राहुल गांधी को सौंपने के पक्ष में हैं। राहुल फिलहाल इसके लिए तैयार नहीं हैं और कांग्रेस के नये अध्यक्ष का मसला इसी दुविधा में फंसा है। इस वरिष्ठ नेता ने साफ कहा कि कांग्रेस के करीब एक दर्जन सीनियर नेताओं के बीच मौजूदा हालात को लेकर आपसी चर्चाएं हुई हैं जिसमें वे भी शामिल थे। इसमें अधिकांश नेताओं का मानना है कि अब हाईकमान को स्पष्ट रुप से यह बताने का समय आ गया है कि दुविधा का यह दौर उसने जल्द खत्म नहीं किया तो फिर खुले तौर पर कांग्रेस में नये नेतृत्व की मांग उठ सकती है। शायद यही कारण है कि बुधवार को आनन फानन में नेतृत्व ने दिल्ली और कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कर सक्रियता का संदेश देने की कोशिश की।

पुनिया ने कहा- कांग्रेस को आत्मचिंतन करना चाहिए

छत्तीसगढ के कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया का यह बयान काफी अहम है कि हमें इस पर गहरा आत्मचिंतन करना चाहिए कि आखिर क्या केवल अकेले सिंधिया जिम्मेदार थे कि हालत इस मोड़ तक पहुंच गए कि उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सिंधिया जैसे वरिष्ठ नेता ने पार्टी छोड़ दिया। दिलचस्प यह है कि पुनिया हाईकमान के भरोसेमंद में गिने जाते हैं।

इसी तरह हरियाणा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कुलदीप विश्नोई और कर्नाटक के वरिष्ठ नेता पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिनेश गुंडूराव ने भी पार्टी नेतृत्व की दुविधा की ओर इशारा करते हुए कहा था कि कांग्रेस में कई ऐसे नेता हैं जो सिंधिया की तरह बेचैन महसूस कर रहे हैं। अभी कुछ दिनों पहले शशि थरूर ने भी मौजूदा असमंजस के दौर को खत्म करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव कराये जाने का सुझाव रखा था। वीरप्पा मोइली, अभिषेक सिंघवी और संजय निरुपम सरीखे नेता भी नेतृत्व की दुविधा से पार्टी को निकालने की राय जाहिर कर चुके हैं। सलमान सोज और संजय झा जैसे पार्टी के दो पदाधिकारियों ने तो बकायदा इसको लेकर हाल ही में एक लेख भी लिख डाला था।


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