Move to Jagran APP

2013 भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन को लेकर पांच राज्यों से जवाब-तलब

मेधा पाटकर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और झारखंड को भेजा नोटिस।

By TaniskEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 06:28 PM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2018 06:28 PM (IST)
2013 भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन को लेकर पांच राज्यों से जवाब-तलब

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण से जुड़े 2013 के केंद्रीय कानून में कुछ खास संशोधन करने पर पांच राज्यों से जवाब-तलब किया है। एक याचिका के जरिए इन संशोधनों की वैधता को चुनौती दी गई है।

loksabha election banner

जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने इन संशोधनों को खत्म करने की मांग वाली याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार भी कर लिया है। भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनस्र्थापना में उचित मुआवजा और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 में गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और झारखंड ने विरोधाभासी संशोधन किए हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और अन्य की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि इन राज्यों द्वारा किए गए संशोधनों से भू-स्वामियों और किसानों की जीविका के अधिकार पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। याचिका में कहा गया है कि राज्यों द्वारा किया गया संशोधन नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी है क्योंकि इसके जरिए सहमति के प्रावधान, सामाजिक प्रभाव का आकलन, भूमि अधिग्रहण में स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों की भागीदारी जैसे मुख्य पहलुओं को हटा दिया गया है।

याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि भूमि अधिग्रहण में लोगों की सहमति सुनिश्चित करना कानून का मूल तत्व था, लेकिन इन राज्यों ने संशोधन के जरिए इस अहम पहलु को ही खत्म कर दिया है। पीठ ने कहा कि कानून के मुताबिक राज्यों को संशोधन करने का अधिकार है। अगर राज्य विधानसभा संशोधनों को पास करती है तो हम राज्यों से यह नहीं कह सकते कि वह ऐसा नहीं कर सकती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.