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सचिन पायलट ने कांग्रेस से रिश्ते तोड़ने के इरादे से हटाया पर्दा, मान मनौव्वल और चेतावनी से भी नहीं झुके

सचिन पायलट मान मनौव्वल चेतावनी और अनुशासन के डंडे के दांव से भी नहीं झुके। अदालत पहुंच उन्‍होंने कांग्रेस से बाहर जाने का खुला संकेत दे दिया है।

By Tilak RajEdited By: Published: Thu, 16 Jul 2020 09:09 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jul 2020 02:19 AM (IST)
सचिन पायलट ने कांग्रेस से रिश्ते तोड़ने के इरादे से हटाया पर्दा, मान मनौव्वल और चेतावनी से भी नहीं झुके
सचिन पायलट ने कांग्रेस से रिश्ते तोड़ने के इरादे से हटाया पर्दा, मान मनौव्वल और चेतावनी से भी नहीं झुके

नई दिल्ली, संजय मिश्र। मान-मनौव्वल, चेतावनी और आखिर में अनुशासन का डंडा दिखाने का कांग्रेस का अंतिम दांव भी सचिन पायलट को घर वापसी के लिए राजी नहीं कर पाया। भले ही पायलट कांग्रेस नहीं छोड़ने की बात कहते रहे हों, मगर गुरुवार को कानूनी लड़ाई के मैदान में उतरकर इस युवा बागी नेता ने कांग्रेस से रिश्ते की डोर खत्म करने का आखिरी पर्दा भी उठा दिया। इतना ही नहीं पायलट ने यह खुला संकेत भी दे दिया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से आर-पार की जंग में परोक्ष या प्रत्यक्ष भाजपा की मदद लेने से भी उन्हें गुरेज नहीं है। सियासी सुलह की बजाय गहलोत सरकार का तख्ता पलटने के लिए किसी भी हद तक जाने के पायलट के रुख के बाद कांग्रेस ने भी अब अपने युवा बागी नेता की घर वापसी की उम्मीद छोड़ दी है।

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कांग्रेस के उच्चपदस्थ सूत्रों ने भी कहा कि गुरुवार सुबह तक पार्टी हाईकमान की ओर से सचिन पायलट को घर लौट आने का संदेश एक बार भेजा गया। लेकिन इसकी बजाय पायलट ने अपने समर्थक विधायकों समेत स्पीकर की नोटिस के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। इसके बाद कांग्रेस की ओर से भी सुलह-संवाद की पहल छोड़ दी गई है। राजनीतिक लड़ाई को अदालत तक ले जाने के पायलट के रुख से साफ है कि अपनी भविष्य की राजनीति के लिए वे कांग्रेस से अलग रास्ता तय करने का इरादा तय कर चुके हैं। पार्टी में लौटने का उनका इरादा होता, तो हाईकोर्ट जाने की बजाय पायलट कांग्रेस नेतृत्व के सुलह के प्रस्तावों को स्वीकार कर लेते। लेकिन गहलोत को सियासी सबक सिखाने की ठान चुके पायलट ने कांग्रेस विधायक दल में टूट की गुंजाइश का रास्ता खुला रखने के आखिरी विकल्प के रुप में अदालत जाने का फैसला किया।

कांग्रेस नेताओं ने अनौपचारिक चर्चा में साफ कहा कि विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए कानूनी दांव-पेंच के कदम से स्पष्ट है कि गहलोत सरकार को अस्थिर करने की उनकी कोशिशें अब भी जारी है। नेता चाहे कितना भी बड़ा और अहम हो अपनी सरकार को गिराने की ऐसी कोशिशें को भला पार्टी कैसे स्वीकार कर सकती है। पार्टी नेताओं के हिसाब से भी अब पायलट और कांग्रेस के रिश्ते तकनीकी औपचारिकता भर ही रह गए है।

पायलट खेमे से भी यही संकेत हैं कि कानूनी लड़ाई के नतीजों के बाद राजनीतिक हालातों के हिसाब से सचिन नई पार्टी बनाने या भाजपा में शामिल होने के इन दोनों विकल्पों पर अंतिम फैसला करेंगे। कांग्रेस का मानना है कि हाईकोर्ट जाने के सचिन के कदम से साफ है कि वे अपने समेत विधायकों की सदस्यता बचाने के साथ बागियों की संख्या में इजाफा करने के लिए अधिक समय चाहते हैं। पायलट के इस रुख के मददेनजर बागियों की विधानसभा सदस्यता रदद करने के लिए नोटिस जारी करने की तत्परता को पार्टी में सही समय पर उठाया गया मुफीद कदम माना जा रहा है।

मालूम हो कि पार्टी के कुछ एक नेताओं ने नोटिस जारी करने की जल्दबाजी पर सवाल उठाते हुए पायलट को मनाने को तवज्जो देने की बात कही थी। हालांकि, अंदरूनी लड़ाई के अदालत की चौखट पर जाने के साथ ही नोटिस को जल्दबाजी बताने वाले नेता भी अब पार्टी के रुख से सहमत होते नजर आ रहे हैं। पायलट से सुलह-संवाद की कोशिशों में शामिल पार्टी के एक वरिष्ठ रणनीतिकार ने कहा कि अदालत जाने का कदम केवल सदस्यता बचाने का प्रयास ही नहीं है, बल्कि साफ है कि पायलट भाजपा के समर्थन से राजस्थान की सियासत को पलटने में अंतिम दम लगा रहे हैं।

कांग्रेस के मुताबिक, एनडीए सरकार और भाजपा के करीबी बडे़ वकीलों हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी के कानूनी लड़ाई का मोर्चा संभालने के बाद इसमें संदेह नहीं रह गया कि पायलट को सियासी ताकत कहां से मिल रही है। राजस्थान कांग्रेस के इस संकट में पार्टी के मुख्य रणनीतिकार रणदीप सुरजेवाला ने बुधवार को भाजपा के साथ मिलकर गहलोत सरकार गिराने की साजिश में पायलट के शामिल होने का आधिकारिक बयान भी दिया था।


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