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संघ विचारक एस. गुरुमूर्ति का बड़ा बयान- देश विरोधी है जेएनयू का डीएनए

संघ विचारक ने एक बार फिर जेएनयू पर अपना पुराना रुख दोहराया। चेन्नई में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान संपादक से सवाल के दौर में गुरुमूर्ति ने पाठकों के सवालों के जवाब दिए।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 15 Jan 2020 05:37 PM (IST)Updated: Wed, 15 Jan 2020 05:37 PM (IST)
संघ विचारक एस. गुरुमूर्ति  का बड़ा बयान- देश विरोधी है जेएनयू का डीएनए
संघ विचारक एस. गुरुमूर्ति का बड़ा बयान- देश विरोधी है जेएनयू का डीएनए

नई दिल्ली, प्रेट्र। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विचारक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति का आरोप है कि जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) का डीएनए ही देश विरोधी है। इसके साथ ही उन्होंने सलाह दी कि जेएनयू को पूरी तरह से बदल दिया जाए या फिर इसे बंद ही कर दिया जाए।

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स्वामीनाथन ने जेएनयू को लेकर यह बात तमिल पत्रिका 'तुगलक' के 50वें स्थापना दिवस समारोह पर कही। गौरतलब है कि कांग्रेस शासन में शुरू जेएनयू मोदी सरकार के केंद्रीय सत्ता में आने के बाद से लगातार गलत कारणों से विवादों में घिरा है। आजकल भी नागरिकता कानून के खिलाफ हिंसक विरोध को लेकर जेएनयू विवादों में है।

उन्होंने कहा कि सिर्फ आज ही जेएनयू सरकार और देश विरोधी रवैये पर नहीं अड़ी हुई है। 1982 में भी ऐसा ही हुआ था। स्वामीनाथन ने बताया कि वर्ष 1982 आते-आते जेएनयू कांग्रेस विरोधी हो गया था। यह वह दौर था जब पुलिस को जेएनयू के भीतर प्रवेश कर विद्यार्थियों पर बलप्रयोग करना पड़ा था। तब 43 दिनों तक यूनिवर्सिटी को बंद रखना पड़ा था। ऐसे में देश और सरकार विरोधी रवैया जेएनयू ने पहली बार नहीं अपनाया है। जेएनयू का तो डीएनए ही देश विरोधी है। जेएनयू वह संस्था है, जिसमें सुधार लाना होगा। अगर ऐसा नहीं हो पाता है, तो इसे बंद ही कर देना चाहिए।

इंदिरा गांधी के वाम दलों को समर्थन की उपज है जेएनयू

स्वामीनाथन ने कहा, 'जेएनयू के गठन की पृष्ठभूमि ही भारत विरोधी है। इसका गठन ही भारत की परंपराओं, आध्यात्मिकता और मूल्यों समेत पूर्वजों का विरोध करने के लिए किया गया। 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ तो वाम दलों ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया था। इसके बदले में उन्होंने बस एक शर्त रखी थी। उन्होंने कहा था कि जो चाहो वह मांग लो, बस शिक्षा विभाग हमें दे दो। इसके आगे इंदिरा गांधी झुक गई थीं।' उन्होंने बताया कि 1971 में वामपंथी विचारधारा वाले सैयद नूरुल हसन केंद्रीय शिक्षा मंत्री बने। जेएनयू के गठन के पीछे का पूरा दिमाग इतिहासकार हसन का ही था।


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