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उपराष्‍ट्रपति ने कहा- संसद में बात हो सकती है, वाक आउट हो सकता है, लेकिन ब्रेकआउट नहीं

नायडू ने कहा कि संसद में काम करने के केवल दो ही तरीके हैं, आप या तो बात करते हैं या बाहर चले जाते हैं, मगर कोई ब्रेकआउट नहीं होगा अन्यथा लोकतंत्र खत्म हो जाएगा

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sun, 12 Aug 2018 03:16 PM (IST)Updated: Sun, 12 Aug 2018 04:17 PM (IST)
उपराष्‍ट्रपति ने कहा- संसद में बात हो सकती है, वाक आउट हो सकता है, लेकिन ब्रेकआउट नहीं
उपराष्‍ट्रपति ने कहा- संसद में बात हो सकती है, वाक आउट हो सकता है, लेकिन ब्रेकआउट नहीं

नई दिल्ली [ एजेंसी ]। मानसून सत्र समाप्‍त होने के बाद राज्‍यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने सदन के कामकाज को लेकर टिप्‍पणी की है। उन्‍होंने कहा कि संसद में बात हो सकती है, या फ‍िर वाक आउट मगर संसद को ठप नहीं किया जा सकता है।

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नायडू ने कहा कि संसद में काम करने के केवल दो ही तरीके हैं, आप या तो बात करते हैं या बाहर चले जाते हैं, मगर कोई ब्रेकआउट नहीं होगा अन्यथा लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। उपराष्ट्रपति ने कहा कि विपक्ष के पास कहने के लिए होना चाहिए, लेकिन अंत में सरकार के पास अपना रास्ता होना चाहिए। बता दें कि नायडू ने पिछले वर्ष 11 अगस्त को देश के 13वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी।

उन्‍होंने कहा कि संवैधानिक पद पर अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में उन्होंने देश के 29 राज्यों में से 28 राज्यों की अपनी यात्रा के माध्यम से विभिन्न हितधारकों के साथ प्रभावी सहभागिता की। उपराष्ट्रपति सचिवालय ने पांच ट्वीट भी पोस्ट किए हैं, जिनमें एक वर्ष के दौरान नायडू के कार्यक्रमों का सारांश दिया गया है। उपराष्ट्रपति के रूप में एक रिकॉर्ड बनाते हुए नायडू ने देश के 29 राज्यों में से 28 की यात्रा की।

नायडू केवल सिक्किम राज्य की यात्रा नहीं कर पाए हैं, क्योंकि खराब मौसम के कारण उनकी इस राज्य की प्रस्तावित यात्रा को रद कर दिया गया था। उन्होंने पूर्वोत्तर के सभी सातों राज्यों की यात्रा की है। उनके कार्यालय के अनुसार उन्होंने 56 विश्वविवद्यालयों का दौरा किया और 29 दीक्षांत समारोहों को संबोधित किया।

नायडू ने अपने एकमात्र विदेशी दौरे में लैटिन अमेरिका के ग्वाटेमाला, पनामा और पेरू की यात्रा कर उन देशों के राष्ट्रपतियों और वरिष्ठ मंत्रियों के साथ व्यापक द्विपक्षीय वार्ता और बहुपक्षीय मसलों पर बातचीत की. वह ग्वाटेमाला और पनामा का दौरा करने वाले भारत के पहले उच्चाधिकारी थे। राज्यसभा सभापति के सबसे अहम क्षण इस साल हाल ही में समाप्त हुए मॉनसून सत्र था, जिसे 'आशा का वर्ष' कहा गया। उन्होंने 24 जुलाई को पूरे दिन सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता कर अपनी सहनशीलता का परिचय दिया।


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