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अब राज्यसभा सदस्य अपनी मातृभाषा में संसद की कार्यवाही में हिस्सा ले सकेंगे

संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज सभी 22 भाषाओं में राज्यसभा के सदस्य अपनी बात कह सकते हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 10 Jul 2018 08:20 PM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 07:52 AM (IST)
अब राज्यसभा सदस्य अपनी मातृभाषा में संसद की कार्यवाही में हिस्सा ले सकेंगे
अब राज्यसभा सदस्य अपनी मातृभाषा में संसद की कार्यवाही में हिस्सा ले सकेंगे

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राज्यसभा के माननीय अब जुबान में सदन की कार्यवाही में हिस्सा ले सकेंगे। ताकि उन्हें अपनी बात कहने में भाषा कहीं आड़े न आने सके। इसकी पहल 18 जुलाई से शुरु हो रही संसद के शीतकालीन अधिवेशन सत्र से होगी। संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज सभी 22 भाषाओं में राज्यसभा के सदस्य अपनी बात कह सकते हैं। इसके लिए राज्यसभा सचिवालय ने पूरा बंदोबस्त कर लिया है।

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मानसून सीजन से ही शुरुआत, सभी 22 भाषाओं में हो सकेगी चर्चा

सदन में चर्चा के दौरान फिलहाल 17 भाषाओं के अनुवादक ही उपलब्ध थे, लेकिन राज्यसभा चेयरमैन के निर्देश पर पांच अन्य भाषाओं के अनुवादकों की भी नियुक्ति कर ली गई है। इन भाषाओं में डोगरी, कश्मीरी, कोकणी, संथाली और सिंधी प्रमुख है। एम. वेंकैया नायडू ने चेयरमैन पद संभालते ही इस बारे में उचित कदम उठाने का निर्देश दिया था, ताकि राज्यसभा के 'माननीय' अपनी मातृभाषा में अपना मुद्दा जोर शोर से उठा सकें। इसके तहत राज्यसभा सचिवालय ने इन पांचों भाषाओं के अनुवादकों का चयन कर उन्हें प्रशिक्षण देने का कार्य पूरा कर लिया गया है।

प्रशिक्षण के बाद आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में चेयरमैन नायडू ने सभी अनुवादकों को प्रमाण पत्र सौंपते हुए सदस्यों की भावना के अनुरूप अनुवाद करने की बात कही। नायडू ने कहा कि उनका मानना है कि व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति को मातृभाषा में ही बिना हिचक सही तरीके से कह सकता है। संसद जहां पूरा देश के निर्वाचित प्रतिनिधि पहुंचते हैं, जो बहु भाषी होते हैं, उन्हें अपनी भाषा के नाते किसी तरह की मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ना चाहिए।

डोगरी, कश्मीरी, कोकणी, सिंधी व संथाली में बोलने की सहूलित

राज्यसभा में पहले केवल 12 भाषाओं में बोलने की व्यवस्था थी, जिसके अनुवादक नियुक्त थे। इन भाषाओं में असमी, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उडि़या, पंजाबी, तमिल, तेलुगु और उर्दू प्रमुख थीं। इसके बाद पांच अन्य भाषाओं बोडो, मैथिली, मणिपुरी, मराठी और नेपाली में बोलने की सहूलियत दी गई, लेकिन इसके लिए लोकसभा के अनुवादकों की मदद ली गई। इन अनुवादकों की नियुक्ति में राज्यसभा सचिवालय ने विश्वविद्यालयों, दिल्ली में राज्यों के सदनों और कुछ अन्य संगठनों की मदद ली गई। 


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