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Indian Railways: रेलमंत्री पीयूष गोयल ने फिर कहा, नहीं होगा रेलवे का निजीकरण

रेलमंत्री पीयूष गोयल ने एक बार फिर आश्वस्त किया है कि रेलवे का निजीकरण नहीं होगा।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 18 Jan 2020 07:20 PM (IST)Updated: Sat, 18 Jan 2020 07:20 PM (IST)
Indian Railways: रेलमंत्री पीयूष गोयल ने फिर कहा, नहीं होगा रेलवे का निजीकरण

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। रेलमंत्री पीयूष गोयल ने एक बार फिर आश्वस्त किया है कि रेलवे का निजीकरण नहीं होगा। रेलवे यूनियनों के प्रतिनिधियों से बातचीत में गोयल ने कहा कि मैं पार्लियामेंट से लेकर अलग-अलग मंचों पर ये बात स्पष्ट कर चुका हूं कि रेलवे का कभी निजीकरण नहीं किया जाएगा।

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यूनियनों को न बुलाने को गलती माना, अब करते रहेंगे बात

गोयल रेलवे की दो प्रमुख यूनियनों-आल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (एआइएफआर) तथा नेशनल फेडरेशन आफ इंडियन रेलवेमेन (एनएफआइआर) के साथ डिपार्टमेंटल काउंसिल की बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने स्वीकार किया कि परिवर्तन संगोष्ठी में यूनियनों को बुलाया जाता तो और बेहतर नतीजे सामने आते। यूनियनों के साथ सतत संवाद की प्रक्रिया को दुबारा चालू किया जाएगा हर तीन महीने में कर्मचारी यूनियनों और छह महीने में अफसरों की यूनियनों के साथ चर्चा होगी। उन्होंने कहा परिवर्तन संगोष्ठी के सुझावों पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।

निजीकरण और निगमीकरण की चर्चाओं से रेलवे कर्मचारी भयभीत

बैठक के दौरान रेलवे यूनियन नेताओं ने निजीकरण को लेकर अपनी आशंकाओं को सामने रखा। सबसे बड़ी यूनियन एआइएफआर के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा ने कहा कि निजीकरण और निगमीकरण की चर्चाओं से रेलवे कर्मचारी भयभीत हैं। इससे उनके काम पर असर पड़ रहा है। एक तरफ प्रधानमंत्री लालकिले से वंदे भारत की बात कर रेलकर्मियों की प्रशंसा करते हैं। दूसरी ओर कम कर्मचारियों के बावजूद उत्पादन दुगुना-तिगुना होने पर भी रेल कारखानों के निगमीकरण की बात हो रही है। तेजस जैसी ट्रेनों का निजीकरण कर उन्हें मनमाना किराया वसूलने की इजाजत दे दी गई है। जबकि वो शताब्दी से सिर्फ पांच मिनट पहले पहुंचाती है।

रेलवे को भी मिले मनमाफिक किराया वसूलने और स्टॉपेज तय करने का अधिकार

अब तेजस जैसी 150 निजी ट्रेनें चलाने की बात की जा रही है। इनसे 15 मिनट पहले कोई भी सामान्य ट्रेन नहीं चलने दी जाएगी। सवाल ये है कि जिस समझौते में रेल, पटरी, बोगी, लोको, लोको पायलट, मेंटीनेंस, स्टेशन, स्टेशन मास्टर, केबिन सब हमारे हैं और मुनाफा प्राइवेट आपरेटर का हो वो कैसा समझौता है। इस तरह तो हम खुद ही रेलवे की ट्रेनों के दुश्मन बनते जा रहे हैं। अगर पैसा कमाना ही मकसद है तो रेलवे को भी मनमाफिक किराया वसूलने और स्टॉपेज तय करने का अधिकार दीजिए। फिर देखिए निजी क्षेत्र से भी बेहतर आमदनी कर दिखाएंगे। हम सुधारों के खिलाफ नहीं हैं। ट्रेनों की स्पीड, सुविधाएं बढ़नी चाहिए। वाई-फाई, सफाई, सुरक्षा हम भी चाहते हैं, लेकिन निजीकरण हमें कतई बर्दाश्त नहीं है।

यूनियन पदाधिकारियों के कोई काम नहीं करने की चर्चाओं पर उठाए सवाल

परिवर्तन संगोष्ठी में कहा गया कि 50 हजार यूनियन पदाधिकारी कोई काम नहीं करते। स्टेशन मास्टर, गार्ड, लोको पायलट से लेकर ट्रैकमैन सब हमारे पदाधिकारी हैं। क्या इनके काम के बगैर ही ट्रेनें चल रही हैं। हमारे पदाधिकारी पहले अपना काम करते हैं, फिर यूनियन के लिए समय निकालते हैं। यूनियनों के प्रति इसी गलत सोच के चलते एकतरफा फैसले लिए जा रहे हैं। जबकि 1974 की हड़ताल के बाद 'प्रेम' बैठकों के जरिए मसलों को सुलझाने की बात तय हुई थीं। लेकिन उस व्यवस्था के तहत कोई काम नहीं हो रहा। अगर यही स्थिति रही तो हमारे सामने ट्रेनों को रोकने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा।


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