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कहीं बैंकों की लुटिया न डुबो दे नेताओं की ये चुनावी चाल, बैंकों पर बड़ा दबाव

राहुल के इस वादे को पूरा करने के लिए बैंकों को तकरीबन 9 करोड़ किसानों पर बकाये 5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ करना होगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 18 Dec 2018 09:20 PM (IST)Updated: Wed, 19 Dec 2018 10:26 AM (IST)
कहीं बैंकों की लुटिया न डुबो दे नेताओं की ये चुनावी चाल, बैंकों पर बड़ा दबाव
कहीं बैंकों की लुटिया न डुबो दे नेताओं की ये चुनावी चाल, बैंकों पर बड़ा दबाव

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। चुनावी फसल काटने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सभी किसानों के कर्ज को माफ करने का सब्जबाग तो दिखा दिया है, लेकिन उनका यह दांव देश के खजाने और बैंकिंग सेक्टर पर बहुत उल्टा पड़ सकता है। राहुल के इस वादे को पूरा करने के लिए बैंकों को तकरीबन 9 करोड़ किसानों पर बकाया 5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ करना होगा। इसके लिए वर्ष 2008 में 3.73 करोड़ किसानों के माफ किए गए 52,260 करोड़ रुपये से कर्जे से कई गुणा ज्यादा वित्तीय संसाधनों की दरकार होगी।

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खजाने व बैंकिंग सेक्टर पर महंगा पड़ेगा राहुल का वादा
राहुल की इस घोषणा को बेहद संवेदनशील मानते हुए बैकिंग सेक्टर के लोग अभी चुप है लेकिन उनका मानना है कि पूरे बैंकिंग सेक्टर के लिए घातक साबित होगा। विधानसभा चुनावों में कर्ज माफी के वादे की वजह से पहले से ही इन राज्यों में किसानों ने कर्ज लौटाना बंद कर दिया है अब देश के दूसरे हिस्से से भी ऐसी खबरें आ सकती है। सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने हाल ही में वित्त मंत्रालय के साथ यह बात उठाई थी कि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान से किसानों से कर्ज वसूलना मुश्किल हो गया है।

पिछले वर्ष तक 10.70 करोड़ किसानों पर 7.53 लाख करोड़ रुपये का फसली कर्ज
दिल्ली मुख्यालय स्थित सरकारी क्षेत्र के एक बैंक के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, डर यह है कि कहीं कोई होम लोन और आटो लोन के कर्ज को माफ करने का वादा न कर दे। वर्ष 2008 की कृषि कर्ज माफी योजना के बाद दो वर्षो तक किसानों से कर्ज वसूली मे दिक्कत आई थी। आरबीआई का डाटा बताता है कि वर्ष 2012 में खेती क्षेत्र में फंसे कर्जे का स्तर 24,800 करोड़ रुपये का था जो वर्ष 2017 में बढ़ कर 60,200 करोड़ रुपये का एनपीए हो गया।

क्रिसिल लिमिटेड के प्रमुख अर्थशास्त्री डी के जोशी के मुताबिक, 'इस बात से कोई इनकार नहीं है कि किसानों को अतिरिक्त मदद चाहिए क्योंकि उनकी आय नहीं बढ़ पा रही है लेकिन कृषि कर्ज माफी उसका उपाय नही है। यह राज्य या केंद्र के वित्तीय स्वास्थ्य के लिए बेहद उल्टा साबित होगा। वर्ष 2008 में माफ की गई राशि कम थी अब हालात काफी बदल गये हैं।'

यूपीए ने 3.73 लाख किसानों पर बकाये 52 हजार करोड का कर्ज किया था माफ
वित्त मंत्रालय की तरफ से पिछले शुक्रवार को संसद में यह बताया गया था कि वर्ष 2016-17 तक देश में कर्ज लेने वाले किसानों की संख्या 10.70 करोड़ थी इन्होंने वर्ष 2017-18 में 7.53 लाख करोड़ रुपये का फसल कर्ज लिया हुआ है। चालू वित्त वर्ष का आंकड़ा अभी नहीं आया है, लेकिन उम्मीद है कि तकरीबन 11 करोड़ किसानों के उपर 8-9 लाख करोड़ रुपये का फसल कर्ज है।

कर्ज लेने वाले सभी किसानों में सीमांत व छोटे किसानों की हिस्सेदारी वैसे तो 80 फीसद है, लेकिन वितरित संस्थागत कर्ज में उनकी हिस्सेदारी लगभग 60 फीसद रहती है। इस हिसाब से देखा जाए तो राहुल के वादे पर अमल के लिए 9 करोड़ किसानों पर बकाये तकरीबन 5 लाख करोड़ रुपये तक की भारी भरकम राशि माफ करनी पड़ सकती है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का तकरीबन तीन फीसद बैठता है। जाहिर है कि यह अमल पूरे राजकोषीय गणित को भी गड़बड़ा सकता है। 


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