राहुल गांधी ने कहा अपमानजक-अनुचित आरोपों का संसद में जवाब देने का है अधिकार
राहुल गांधी ने स्पीकर ओम बिरला को लिखे पत्र में सदन का सदस्य होने के नाते जवाब देने के अपने अधिकार का हवाला देते हुए कहा है लोकसभा की परंपरा और नियम के तहत उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लंदन में लोकतंत्र के संदर्भ में दिए उनके बयान को लेकर लोकसभा में सरकार के तमाम वरिष्ठ मंत्रियों की ओर से लगाए गए आरोपों को पूरी तरह आधारहीन और अनुचित करार देते हुए सदन में अपना जवाब देने के लिए स्पीकर ओम बिरला से फिर अनुरोध किया है।
स्पीकर ओम बिरला को पत्र लिख नियम 357 का दिया हवाला
राहुल गांधी ने स्पीकर ओम बिरला को लिखे पत्र में सदन का सदस्य होने के नाते जवाब देने के अपने अधिकार का हवाला देते हुए कहा है लोकसभा की परंपरा और नियम के तहत उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए। स्पीकर को बीते शनिवार को ही लिखे गए राहुल गांधी के इस पत्र को कांग्रेस ने मंगलवार को जारी किया जिसमें पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने सदन के नियम 357 का हवाला देते हुए व्यक्तिगत स्पष्टीकरण की अनुमति मांगी है।
साथ ही लोकसभा में भाजपा सांसद और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के इसी तरह के एम मामले का उदाहरण दिया है जिसमें प्रसाद ने ज्योतिरादित्य सिंधाया द्वारा की गई टिप्पणियों के संबंध में स्पष्टीकरण देने के लिए इस नियम का सहारा लिया था। उन्होंने कहा है कि संसदीय नियम-प्रक्रियाओं और परंपरा की इसी कड़ी में प्राकृतिक न्याय के हिसाब से सदन में अपनी बात रखना चाहता हूं।
रविशंकर के उदाहरण पर राहुल ने कहा
राहुल ने इस नियम का हवाला देते हुए यह भी कहा है कि लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति से एक सदस्य व्यक्तिगत स्पष्टीकरण दे सकता है। लेकिन इस मामले में कोई बहस योग्य मामला सामने नहीं लाया जा सकता है। इस पर कोई बहस नहीं होगी। रविशंकर के उदाहरण के अलावा लोकसभा डिजिटल लाइब्रेरी पर ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध होने की बात उठाते हुए कांग्रसे नेता कहा कि यह अधिकार संसद के भीतर दिए गए बयानों का जवाब देने तक ही सीमित नहीं है बल्कि सार्वजनिक तौर पर लगाए गए आरोपों का भी जवाब दिया जा सकता है।
मंत्रियों के आरोपों पर राहुल गांधी का जवाब
लोकतंत्र का अपमान करने के भाजपा सरकार के मंत्रियों के आरोपों पर अपने पत्र में राहुल गांधी ने कहा कि सत्तापक्ष के सदस्यों ने संसद के भीतर और बाहर उनके खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाते हुए दावे किए हैं जो पूरी तरह बेबुनियाद हैं। अपना पक्ष रखने के लिए कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि संसद हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में निहित प्राकृतिक न्याय के नियमों से बंधी है।
यह प्रशासनिक मनमानी के खिलाफ गारंटी हैं जो सुनिश्चित करते हैं कि हर व्यक्ति को एक ऐसे मामले में सुनवाई का अधिकार है। राहुल ने स्पीकर से कहा कि निश्चित रूप से आप इससे सहमत होंगे कि संसद इस अधिकार का सम्मान करने की जिम्मेदारी का त्याग नहीं कर सकती है। स्पीकर से 17 मार्च को मुलाकात कर सदन में बोलने का मौका देने का अनुरोध करने के एक दिन बाद राहुल ने बिरला को यह पत्र भेजा।