राहुल गांधी पर अमित शाह का तंज- क्या डर है जिसको छुपा रहे हो?
केंद्र सरकार ने देश की प्रमुख दस सेंट्रल एजेंसियों को देश के सभी कंप्यूटर्स को मॉनिटर और इंटरसेप्ट करने की क्षमता दी है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए चुनी हुई सरकारी एजेंसियों को डेटा की निगरानी का अधिकार दिए जाने के फैसले पर उग्र कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों की याद दिला दी है।
राहुल के ट्वीट का जवाब ट्वीट से ही देते हुए शाह ने कहा- 'भारत में दो ही असुरक्षित तानाशाह हुए, एक ने आपातकाल लगाया था और दूसरे ने किसी भी नागरिक की चिट्ठी पढ़ने की इच्छा जताई थी।' जाहिर तौर पर शाह का इशारा इंदिरा गांधी और शायद राजीव गांधी पर था। राहुल पर तंज कसते हुए शाह ने कहा- 'तुम इतना क्यों झुठला रहे हो, क्या डर है जिसको छुपा रहे हो।'
शाह ने राहुल पर सीधा आरोप लगाया कि वह फिर से राष्ट्रीय सुरक्षा को नजरअंदाज कर राजनीति कर रहे हैं और भय और भ्रम फैला रहे हैं। कांग्रेस के काल में गैर कानूनी तरीके से निगरानी हो रही थी। मोदी सरकार ने एक सुरक्षित तंत्र बना दिया है और राष्ट्रीय सुरक्षा को केंद्र में रखा है तो षड़यंत्र का आरोप लगाया जा रहा है।
सरकार की ओर से जारी आदेश को लेकर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है और विपक्ष की ओर से इसका विरोध किया जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कंप्यूटर और मोबाइल डाटा की निगरानी का दस जांच एजेंसियों को असीमित अधिकार देने के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। राहुल ने कहा कि पीएम मोदी देश को पुलिस राज्य में तब्दील कर रहे हैं और ऐसे फैसले से उन्हें कोई लाभ नहीं मिलने वाला।
राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि 'मोदी जी भारत को पुलिस राज्य के रुप में तब्दील करने से आपकी समस्या का समाधान नहीं होने वाला बल्कि इससे एक अरब भारतीयों के बीच यही साबित होता है कि आप कितने असुरक्षित तानाशाह हैं।' डाटा निगरानी के इस कदम को जासूसी और लोगों की निजता के अधिकार पर हमला बता रही कांग्रेस ने साफ संकेत दे दिए हैं कि सरकार के इस आदेश के खिलाफ उसका विरोध और मुखर होगा।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गृह मंत्रालय से इस अधिसूचना को वापस लेने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा है कि देश का हर नागरिक सर्विलांस के दायरे में क्यों है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस मामले में हमला बोलते हुए ट्वीट किया कि मई, 2014 से भारत में अघोषित आपातकाल लागू है। पिछले कुछ महीनों में मोदी सरकार ने नागरिकों के कंप्यूटर के नियंत्रण की मांग करके सभी सीमाओं को पार दिया है। उन्होंने लोगों से पूछा है कि क्या मौलिक अधिकारों में इस तरह की कटौती दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में बर्दाश्त की जा सकती है?
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा है कि सेंट्रल एजेंसियों को देश के सभी कंप्यूटर्स और मोबाइल फोन को मॉनिटर और इंटरसेप्ट करने की अनुमति देना बहुत ज्यादा खतरनाक है। यह सीधे-सीधे संविधान द्वारा दी गई नागरिक अधिकारों और निजता के अधिकार के लिए खतरा है।
राज्यसभा में इस मुद्दा को उठाते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सरकार ने इस आदेश के माध्यम से देश में अघोषित आपातकाल लगा दिया है। कांग्रेस के उपनेता शर्मा ने कहा कि इस आदेश के माध्यम से लोगों की निजता के मूलभूत अधिकार पर हमला किया गया है।
इस पर सरकार का पक्ष रखते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किया गया है। यह 2009 में मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान भी किया गया। इंटरसेप्शन के हर केस का निर्णय गृह मंत्रालय के सचिव करेंगे।
गृह मंत्रालय ने दी सफाई
पूरे विवाद पर गृह मंत्रालय ने भी सफाई दी है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि ये प्रावधान पहले से ही आईटी ऐक्ट में मौजूद हैं और मंत्रालय की तरफ से 20 दिसंबर 2018 को जारी आदेश में सिक्यॉरिटी और लॉ एन्फोर्समेंट एजेंसियों को किसी भी तरह का नया अधिकार नहीं दिया गया है। शुक्रवार को यह मामला संसद में भी उठा, जिस पर सरकार ने बताया कि एजेंसियों को कंप्यूटरों और संचार उपकरणों की निगरानी का अधिकार 2009 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने दिया था। ताजा आदेश में कुछ भी नया नहीं है।