राफेल को सियासी उड़ान देने में पेट्रोल-डीजल की बेकाबू महंगाई भूले राहुल
चुनाव में केवल एक ही मुद्दे नहीं होते बल्कि कई मसलों को साथ लेकर चलना होता है और महंगाई के मसले को कांग्रेस ने छोड़ा नहीं है।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। पेट्रोल-डीजल की बेकाबू महंगाई पर सरकार के खिलाफ जनता की लडाई लडने के कांग्रेस के बडे दावे हवा-हवाई साबित हुए हैं। ठीक एक महीने पहले 10 सितंबर को पेट्रोल-डीजल की लगातार बढती कीमतों पर जनता की नाराजगी को भांपते हुए कांग्रेस ने 21 विपक्षी दलों को साथ जोड़ते हुए भारत बंद कराने का दावा किया था। मगर राफेल को बडा चुनावी हथियार बनाने की कोशिशों में महंगाई के मुददे की डोर पार्टी ने खुद ही छोड दी है।
विपक्षी दल के रूप में अहम मसलों पर सरकार की घेरेबंदी में कांग्रेस की कमजोर रणनीति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महंगाई को लेकर सरकार के खिलाफ वार करने की बजाय पार्टी पंजाब व कर्नाटक में पेट्रो उत्पादों पर शुल्क में कटौती नहीं करने को लेकर भाजपा के आक्रामक सियासी हमलों का सामना कर रही है। राफेल को सियासी उडान देने में पूरा जोर लगा रही पार्टी भाजपा के इस अचानक पलटवार से रक्षात्मक होती दिख रही है।
केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते डीजल व पेट्रोल पर प्रति लीटर ढाई रूपये की टैक्स में कटौती कर कई महीनें से आसमान छूती कीमतों के जख्म पर मामूली राहत का मरहम लगाने का प्रयास किया है। केंद्र के नक्शेकदम पर भाजपा व एनडीए शासित राज्यों ने भी अपने स्थानीय टैक्स में कुछ कटौती कर राहत में थोडा और इजाफा किया।
कांग्रेस शासित राज्य पंजाब और कर्नाटक की उसकी गठबंधन सरकार ने स्थानीय करों में कटौती के अभी कोई संकेत नहीं दिये हैं। इसको लेकर कांग्रेस को कठघरे में खडा करने का भाजपा नेता कोई मौका नहीं छोड रहे। जबकि हकीकत यह भी है कि कटौती की राहत के बाद भी पेट्रोल-डीजल मूल्य में जिस तरह लगातार बढोतरी हो रही है उसे देखते हुए राहत की यह फुहार बहुत कारगर होती नहीं दिख रही।
जनता को अब भी महंगाई की यह चुभन निरंतर महसूस हो रही है। सितंबर के पहले सप्ताह में पेट्रोल-डीजल मूल्य में इजाफे पर सरकार को बैकफुट पर धकलने के लिए कांग्रेस इतनी सक्रिय हुई कि धार्मिक यात्रा पर गये राहुल गांधी की गैर मौजूदी में पार्टी ने भारत बंद का ऐलान कर दिया।
कैलाश मानसरोवर की पवित्र यात्रा से लौटने के बाद राहुल ने अपना पहला राजनीतिक कार्यक्रम भारत बंद को ही बनाया। पेट्रोल-डीजल की महंगाई पर जनता की लडाई तब तक लडने की ताल ठोकी जब तक इनकी कीमतें घटाकर तार्किक स्तर पर नहीं लायी जातीं।
कांग्रेस के नेताओं ने आंकडों और क्रूड मूल्य के मौजूदा स्तर के हिसाब से डीजल को औसतन 55 रुपये और पेट्रोल को 65 पर लाने की आवाज उठाई। मगर इसके बाद राफेल सौदे को 2019 की पार्टी की उडान का हथियार बनाने में राहुल गांधी और कांग्रेस नेताओं की फौज इस कदर मशरुफ हुई है कि महंगाई का मुददा उनके सियासी रडार से गायब हो गया है।
बीते महीने भर में देश भर में कांग्रेस ने राफेल पर 100 से अधिक प्रेस कांफ्रेंस कर डाले हैं मगर महंगाई पर कुछ ट्वीट और प्रदेश इकाईयों के सांकेतिक धरना-प्रदर्शन की रस्मदायगी के अलावा कोई गंभीर पहल नहीं दिखी है। महंगाई पर कांग्रेस की सियासी लड़ाई के लचर साबित होने को लेकर पूछे जाने पर कांग्रेस प्रवक्ता जयपाल रेड्डी का कहना था कि राफेल को तवज्जो देने का मतलब यह नहीं कि पेट्रोल-डीजल की महंगाई का मुद्दा खत्म हो गया है। उनका यह भी तर्क था कि चुनाव में केवल एक ही मुद्दे नहीं होते बल्कि कई मसलों को साथ लेकर चलना होता है और महंगाई के मसले को कांग्रेस ने छोड़ा नहीं है।