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Lok sabha Election 2019: भाजपा में पुराना जोश कायम करने की जद्दोजहद, ये है शाह का चुनावी अंकगणित

दिल्‍ली के Ramlila Maidan में आयोजित BJP के राष्ट्रीय अधिवेशन में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना पानीपत की तीसरी लड़ाई से की।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 07:08 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jan 2019 08:22 AM (IST)
Lok sabha Election 2019: भाजपा में पुराना जोश कायम करने की जद्दोजहद, ये है शाह का चुनावी अंकगणित
Lok sabha Election 2019: भाजपा में पुराना जोश कायम करने की जद्दोजहद, ये है शाह का चुनावी अंकगणित

प्रशांत मिश्र, नई दिल्‍ली। लोकसभा चुनाव की रणभेरियों के बीच दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने इस चुनाव की तुलना पानीपत की तीसरी लड़ाई से कर दी। पानीपत की लड़ाई का जिक्र उन्होंने संभवत: दूसरी बार किया है। पानीपत की लड़ाई रजवाड़ों के संघर्षों के इतिहास का हिस्सा है, जबकि वर्तमान राजनीति लोकतांत्रिक चुनावी मॉडल के इर्द-गिर्द है। लेकिन इस तुलना के शाब्दिक मायने भले न हों, अर्थ की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण कथन है।

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एक तो इसका अर्थ यह निकलता है कि शायद शाह ने इस तुलना के माध्यम से कार्यकर्ताओं में जोश भरने का कार्य किया हो, लेकिन इसका अर्थ और है- पानीपत की लड़ाई का इतिहास 18वीं सदी के उत्तरा‌र्द्ध में मिलता है। यह लड़ाई मराठा सैनिकों और अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली तथा कुछ भारतीय शासकों के एक गठबंधन के बीच हुई थी।

इससे पूर्व मराठा लगातार जीतते आए थे, लेकिन दुर्भाग्यवश इस युद्ध में उनकी हार हुई जिसका दूरगामी परिणाम यह निकला कि भारत दो सौ वर्षों के लिए गुलाम हो गया। शायद इस युद्ध की तुलना के बहाने भाजपाध्यक्ष ने वर्तमान की राजनीति में परिस्थितियों वश पैदा हुए महागठबंधन पर निशाना साधने का कार्य किया। क्योंकि उन्होंने कहा कि इस चुनाव में दो विचारधाराएं आमने-सामने खड़ी हैं।

इस बात से भले ही भाजपा विरोधी असहमति व्यक्त करते हों लेकिन यह सच है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की राजग सरकार द्वारा गरीब कल्याण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। जनधन योजना के जरिये करोड़ों लोगों के बैंक खाते खुलवाना, उज्ज्वला योजना के द्वारा देश की 6 करोड़ गरीब महिलाओं को चूल्हे के धुएं से निजात दिलाना, देश भर में 9 करोड़ शौचालय बनवाकर बेटियों को शर्मिंदगी के जीवन से मुक्ति दिलाना, ढाई करोड़ लोगों को घर देने देना, बिजली से वंचित लगभग ढाई करोड़ लोगों को सौभाग्य योजना के तहत बिजली उपलब्ध कराना, गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए आयुष्मान योजना लाना आदि तमाम कार्य पिछले साढ़े चार साल में हुए हैं जिनसे देश की गरीब-वंचित जनता के जीवन में बदलाव आया है।

देश में एक धारणा तो कहीं न कहीं गहरे तक बनी ही है कि पहले वैश्विक मंचों पर भारत कहीं अलग-थलग नजर आता था, लेकिन पिछले चार वर्षों में यह बदलाव हुआ है कि अमेरिका आदि देशों के राष्ट्राध्यक्षों के होने के मौजूद होने के बावजूद दावोस सम्मेलन के उद्घाटन का सम्मान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिला। पेरिस जलवायु सम्मेलन में दुनिया के तापमान को नियंत्रित करने के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सुझाए गए मार्ग को सराहना और समर्थन मिलने को भी भाजपा चुनावी सफलताओं का जरूरी हथियार मानती है।

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, यूनेस्को द्वारा कुंभ को धरोहर घोषित करना, प्रधानमंत्री मोदी को चैंपियंस ऑफ अर्थ सहित कैनेडा, सऊदी अरब आदि देशों के सर्वोच्च सम्मान मिलने तथा भारतीय पासपोर्ट की ताकत बढ़ने जैसे विषय राजनीतिक चर्चाओं में रखने का प्रयास भाजपा द्वारा लगातार किया जा रहा है। इस सरकार की एक मजबूती यह जरूर है कि तमाम आरोपों के बावजूद तथ्यात्मक पहलू से देखें तो विपक्षी दल भ्रष्टाचार का कोई आरोप चस्पा कर पाने में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं।

राफेल को लेकर राहुल गांधी भले कुछ भी बोलते रहें लेकिन उसकी प्रमाणिकता पर संदेह बरकरार है। इसके पीछे मूल वजह यह है कि संसद में सरकार की तरफ हर पहलू पर विस्तृत जवाब दिया गया, लेकिन राहुल गांधी अपने सवालों की प्रमाणिकता को ठीक ढंग से नहीं रख पाए हैं। हालांकि देश में मोदी बनाम गठबंधन की राजनीति के चर्चे आकार लेते जरूर दिख रहे हैं।

आंकड़ों की कसौटी पर यह एक चुनौती भी है। क्योंकि यूपी में अखिलेश और मायावती ने गठबंधन का रास्ता साफ कर दिया है, लेकिन आंकड़ों की कसौटी पर ही शाह एक नये फार्मूले को बार-बार दोहराते हुए जब कहते हैं कि वे 50 फीसद की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं, तो इसके पीछे कुछ सियासी अंकगणित भी है और कुछ कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करने की वजहें भी।

पिछले चुनावों में बसपा और सपा को मिले वोट मिलाकर राजग के वोट के आसपास पहुँचते हैं। इसके बाद जो भी दल अथवा गठबंधन इसमें बढ़त हासिल कर ले, वह चुनावी सफलता भी हासिल कर सकता है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि राष्ट्रीय अधिवेशन में अपने इस संबोधन के जरिये भाजपाध्यक्ष ने तीन राज्यों की हालिया हार के बाद कार्यकर्ताओं में उपजी निराशा को भावना को खत्म करने और उनमें आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एक नया जोश भरने का प्रयास किया है।  


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