राज्यपाल वोहरा की इस बार राह नहीं आसान, राज्य की समस्याएं उनके लिए कांटों भरा ताज है
राज्यपाल एनएन वोहरा के लिए प्रशासनिक चुनौतियों से कहीं ज्यादा अहम राज्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति विश्वास बहाल करना है।
नवीन नवाज, श्रीनगर। राज्यपाल एनएन वोहरा ने चौथी बार राज्य के शासन की बागडोर संभाली है, लेकिन इस बार उनकी राह पहले की तरह अासान नहीं हैं, पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के गिरने के साथ ही राज्यपाल एनएन वोहरा को पूरी तरह समझ आ गया था कि उन्हें जम्मू-कश्मीर के शासन की बागडोर नहीं बल्कि प्रशासनिक अराजकता को दूर करने और आम लोगों में सुरक्षा, विश्वास के साथ-साथ मुख्यधारा के प्रति विश्वास की भावना पैदा करने का जिम्मा सौंपा जा रहा है।
बीते तीन सालों में नौकरशाही का लगभग राजनीतिकरण होने के अलावा कश्मीर में आतंकवाद एक बार फिर अपने चरम की तरफ जा रहा है। स्थानीय आतंकियों की संख्या और भर्ती भी बीते एक दशक में सबसे ज्यादा हो चुकी है। विकास योजनाओं की रफतार अपने निम्नस्तर पर है और प्रधानमंत्री पैकेज के तहत मिली राशि के इस्तेमाल के लिए कोई ठोस रोडमैप तैयार नहीं है।
जम्मू-कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ मुख्तार अहमद बाबा के अनुसार, राज्यपाल एनएन वोहरा के लिए प्रशासनिक चुनौतियों से कहीं ज्यादा अहम राज्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति विश्वास बहाल करना है। मौजूदा विधानसभा को उन्होंने निलंबित रखा है जबकि विभिन्न राजनीतिक दलों ने सरकार बनाने से साफ इंकार कर दिया है।
राज्यपाल के लिए नए चुनावों की जमीन तैयार करना और राज्य में लगभग निष्क्रिय हो चुके पंचायती तंत्र के साथ-साथ स्थानीय निकायों को फिर से क्रियाशील बनाने के लिए उनके चुनाव कराना व लोगों को उनके लिए तैयार करना बहुत बड़ी चुनौती है। इसके अलावा वह कश्मीर पर वार्ताकार रह चुके हैं, अलगाववादी नेताओं के साथ उनके संबंध बेहतर रहे हैं। इसलिए मौजूदा हालात में अलगाववादी खेमे के साथ संवाद बहाली की जिम्मेदारी भी रहेगी।
आतंकवाद और कानून व्यवस्था की स्थिति पर काबू पाना भी एनएन वोहरा के लिए मौजूदा परिस्थितयों में अासान नहीं हैं। अातंकियों की नयी पौध को रोकना और पहले से सक्रिय आतंकियों को जिंदा पकड़ने से लेकर उन्हें मार गिराने के सुरक्षाबलों के अभियानों का कुशल संचालन और इस दौरान होने वाले हिंसक प्रदर्शनों में नागरिकों की मौत रोकना उनके लिए आसान नहीं होगा।
उनकी प्रशासकीय और कूटनीतिक सूझबूझ की सही परीक्षा कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववादियों से वार्ता के मोर्चे पर ही होगी। श्री अमरनाथ की वार्षिक तीर्थयात्रा को आतंकी खतरे से पूरी तरह महफूज बनाना इस समय पूरी तरह उनकी जिम्मेदारी बन चुकी है।
आतंकवाद और अलगाववादियों से संवाद के मोर्चे के बाद अगर उन्हें सबसे बड़ी चुनौती कोई है तो वह राज्य के प्रशासनिक तंत्र को सीधा करना। वह जम्मू-कश्मीर में नौकरशाही और इससे संबधित सभी सकारात्मक और नकारात्मक मामलों को अच्छी तरह समझते हैं। इसलिए उन्होंने गत बुधवार को प्रशासनिक अवकाश के बावजूद लगभग सारा दिन सचिवालय में बिताया और शाम को अपने घर पर भी प्रशासनिक और सुरक्षाधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक में उन्होंने कोई औपचारिकता निभाए बगैर मुख्य सचिव बीबी व्यास को सभी लंबित विकास योजनाओं की विभागवार सूची, कार्याें के लंबित होने के कारणों के उल्लेख के साथ तैयार करने को कहा है।
उन्होंने प्रशासनिक तंत्र के राजनीतिककरण का संज्ञान लेते हुए सभी प्रशासनिक सचिवों और राज्य पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वह अपने अधीनस्थ सभी अधिकारियों व कर्मियों की उपस्थिति पर बायो मैट्रिक्स प्रणाली से निगरानी रखें और लोगों को सार्वजनिक सेवाओं के तत्काल व कुशल वितरण को सुनिश्चत बनाएं।
उन्होंने नौकरशाही में सियासत और भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई का संकेत देेते हुए जहां अपनी संपत्ति का ब्यौरा न देने वाले कश्मीर प्रशासनिक सेवा अधिकारियों की सूची मांगते हुए साफ कर दिया अनियमितता और भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस रहेगी। काम करने वाले ही आगे बड़ेंगे। उन्होंने मुख्यसचिव को डेडवुड और कुछ खास पदों पर बैठे अधिकारियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए कहा है।
प्रशासनिक तंत्र को सीधा करने के अलावा राज्यपाल के लिए प्रधानमंत्री विकास कार्यक्रम के तहत जारी योजनाओं को गति देना, राज्य में केंद्रीय विकलांगता अधिनियम 2016 के अनुरुप राज्य कानून के अधिनियमन को लागू करना, डल झील का संरक्षण, आईबी और एलओसी पर बसे लोगों के लिए बंकरों का यथाशीघ्र निर्माण और करीब 60 हजार दैनिक वेतन भोगी व संविदा कर्मियों के अलावा 40 हजार एसएसए अध्यापकों की सेवाएं नियमित करने और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के वेतन का मुददा भी उनके लिए एक बड़ी चुनौती है। केंद्रीय योजनाओं के क्रियान्वन के लिए आबंटित धनराशि का सदुपयोग और उपयोगिता प्रमाणपत्र समय पर यकीनी बनाना भी उनके लिए अहम होगा।