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Presidential Election: एनडीए के मुर्मू दांव ने विपक्ष के प्रयोग को किया डांवाडोल, विपक्षी कुनबे में बिखराव का खतरा

राष्‍ट्रपति चुनाव में एनडीए के मुर्मू दांव से विपक्षी दलों की स्थिति डांवाडोल नजर आ रही है। एनडीए उम्मीदवार की सामाजिक पृष्ठभूमि ने विपक्ष के सारे दांव गड़बड़ा दिए हैं। आलम यह है कि यशवंत सिन्हा के लिए समर्थन जुटाना विपक्ष के लिए दुरूह हो गया है...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 25 Jun 2022 07:40 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jun 2022 03:46 AM (IST)
राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की चाल ने विपक्ष के सारे दांव गड़बड़ा दिए हैं।

संजय मिश्र, नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव को 2024 के सियासी संग्राम से पूर्व विपक्ष की गोलबंदी का पहला प्रयोग बनाने की विपक्षी दलों की कोशिश शुरू होने से पहले ही साफ तौर पर डांवाडोल नजर आ रही है। बसपा प्रमुख मायावती की राष्ट्रपति पद की एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने की घोषणा विपक्ष के लिए झटका है। दरअसल एनडीए उम्मीदवार की सामाजिक पृष्ठभूमि ने राष्ट्रपति चुनाव में सियासी समीकरण बिठाने के विपक्ष के सारे दांव गड़बड़ा दिए हैं।

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विपक्ष के लिए समर्थन जुटाना बड़ी चुनौती

आलम यह हो गया कि राष्ट्रपति पद के अपने उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के लिए बाहर से समर्थन जुटाना विपक्ष के लिए न केवल दुरूह हो गया है बल्कि विपक्षी खेमे के कुनबे में ही फूट पड़ने की चिंता गहरी होने लगी है। विपक्षी खेमे का हिस्सा होते हुए भी यशवंत सिन्हा का समर्थन करने की घोषणा नहीं कर पाने की झामुमो की राजनीतिक दुविधा राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के गड़बड़ाए समीकरण का एक और उदाहरण है।

असमंजस में हेमंत सोरेन

आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली एनडीए प्रत्याशी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं और ऐसे में झामुमो नेता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी असमंजस की स्थिति में हैं। जनजातीय राजनीति झामुमो के सियासी अस्तित्व की बुनियाद है और इसीलिए आदिवासी समुदाय से पहली राष्ट्रपति बनने जा रहीं मुर्मू का विरोध करना झामुमो के लिए मुश्किल हो रहा है। इस सियासी दुविधा के चलते ही शनिवार को झामुमो की बैठक में द्रौपदी मुर्मू या यशवंत सिन्हा में किसके साथ रहा जाए यह फैसला नहीं हो पाया।

विपक्षी एकजुटता को चुनौती  

चाहे मुर्मू की सामाजिक पृष्ठभूमि वजह हो मगर झामुमो सिन्हा के खिलाफ जाता है तो यह 2024 में विपक्षी एकजुटता के लिए किसी तरह का सकारात्मक संकेत नहीं होगा। बसपा बेशक अभी तक विपक्षी गोलबंदी के प्रयासों का हिस्सा नहीं रही है मगर उत्तर प्रदेश चुनाव में हुई पार्टी की दुर्गति के बाद से मायावती भाजपा के खिलाफ मुखर हो रही थीं।

मायावती ने विपक्ष की उम्‍मीदों को लगाया पलीता 

इसके मद्देनजर विपक्षी खेमा राष्ट्रपति चुनाव में बसपा के साथ आने की उम्मीद कर रहा था लेकिन शनिवार को मायावती ने द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी का समर्थन करने की घोषणा कर इस उम्मीद को पलीता लगा दिया। राष्ट्रपति चुनाव के नामांकन के मौके पर वाइएसआर कांग्रेस और बीजेडी की मौजूदगी के साथ ही एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत का आधार तय हो गया है।

विपक्ष की बढ़ी चुनौती 

बसपा ने अपने समर्थन का ऐलान कर अब जीत के आंकड़ों का अंतर बड़ा करने की दिशा को आगे बढ़ा दिया है। आम आदमी पार्टी और अकाली दल जैसे कुछ क्षेत्रीय दल भाजपा और कांग्रेस दोनों से समान दूरी रखना चाहते हैं। इस लिहाज से यशवंत सिन्हा उनके लिए मुफीद उम्मीदवार भी हैं मगर इसके बावजूद मुर्मू के मैदान में आने के बाद इन दलों के लिए पक्ष या विपक्ष के प्रत्याशी के साथ रहने का फैसला करना आसान नहीं हो रहा।

अब लाज बचाना ही लक्ष्‍य 

एनडीए के मुर्मू दांव के बाद अब विपक्ष के लिए सियासी सांत्वना इसी में होगी कि राष्ट्रपति चुनाव में वह अपने उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को कम से कम अपने कुनबे का पूरा वोट दिला सके। जबकि सिन्हा के लिए चुनौती यह होगी कि वह राष्ट्रपति चुनाव में पराजित होने के बाद भी सबसे अधिक वोट पाने का रिकार्ड बना सकें।

अब तक रहा है यह रिकार्ड 

फिलहाल यह रिकार्ड 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की उम्मीदवार रहीं लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार के नाम है जिन्हें 3 लाख 67 हजार से अधिक वोट मिले थे। कुमार से पहले यह रिकार्ड कोटा सुब्बाराव के नाम था जिन्हें 1967 के चौथे राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रपति चुने गए डा जाकिर हुसैन से हार जरूर मिली मगर उन्हें 3 लाख 63 हजार से अधिक वोट मिले थे। महाराष्ट्र की राजनीतिक उथल-पुथल और विपक्षी कुनबे का बिखराव हुआ तो फिर सिन्हा के लिए मीरा कुमार के रिकार्ड को पीछे छोड़ना आसान नहीं होगा।  


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