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President Rule In Maharashtra: एक पखवाड़े तक चला मोलभाव का नाटक, शिवसेना के लिए सबसे असहज स्थिति

पिछले महीने महाराष्ट्र चुनाव का नतीजा आया था और भाजपा शिवसेना गठबंधन को संयुक्त रूप से बहुमत मिल गया था। लेकिन मुख्यमंत्री पद की जिद में मामला इतना उलझा कि 9 नवंबर को विधानसभा की अवधि खत्म होने तक बात ही नहीं बन पाई।

By Tilak RajEdited By: Published: Tue, 12 Nov 2019 08:40 PM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 08:40 PM (IST)
President Rule In Maharashtra: एक पखवाड़े तक चला मोलभाव का नाटक, शिवसेना के लिए सबसे असहज स्थिति
President Rule In Maharashtra: एक पखवाड़े तक चला मोलभाव का नाटक, शिवसेना के लिए सबसे असहज स्थिति

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। राजनीतिक उठापटक के अखाड़े के रूप में महाराष्ट्र ने नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया। पहले शिवसेना की जिद और उसके बाद एनसीपी और कांग्रेस की रणनीति में प्रदेश राजनीति इतनी उलझी कि नतीजा आने के एक पखवाड़े बाद आखिरकार वहां राष्ट्रपति शासन लग गया। राज्यपाल के बुलावे पर भाजपा ने सरकार बनाने से इन्‍कार किया और शिवसेना तथा एनसीपी तय वक्त में बहुमत का आंकड़ा दिखाने में नाकाम रही। लिहाजा मंगलवार की दोपहर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने केंद्र से राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा कर दी और कैबिनेट से मुहर के बाद शाम तक राष्ट्रपति ने भी इसे मंजूरी दे दी। हालांकि, शिवसेना सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर पहुंच गई है, लेकिन अभी सुनवाई का वक्त तय नहीं हो पाया है।

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मुख्यमंत्री पद की जिद में मामला उलझा

पिछले महीने महाराष्ट्र चुनाव का नतीजा आया था और भाजपा शिवसेना गठबंधन को संयुक्त रूप से बहुमत मिल गया था। लेकिन मुख्यमंत्री पद की जिद में मामला इतना उलझा कि 9 नवंबर को विधानसभा की अवधि खत्म होने तक बात ही नहीं बन पाई। उसके बाद राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन पार्टी ने स्पष्ट कर दिया कि उनके पास जरूरी 145 का आंकड़ा नहीं है। हालांकि, यह अटकलें लगाई जा रही थी कि भाजपा सरकार बनाएगी और मजबूरन शिवसेना साथ आएगी, लेकिन कर्नाटक की घटना से सतर्क भाजपा ने ऐसा नहीं किया।

शिवसेना को दूसरा मौका मिला, लेकिन...

56 की संख्या लाकर दूसरे नंबर पर रही शिवसेना को दूसरा मौका मिला और उन्हें 24 घंटे का वक्त दिया गया। लेकिन सोमवार की शाम तक शिवसेना का कांग्रेस और एनसीपी का लिखित समर्थन नहीं मिला। शिवसेना की ओर से और 24 घंटे का वक्त मांगा गया जिसे राज्यपाल ने नकार दिया और तीसरा मौका 54 सीटों वाली एनसीपी को दिया गया जिसकी मियाद मंगलवार की रात 8.30 तक थी। लेकिन बड़े आश्चर्यजनक रूप से एनसीपी ने तय अवधि से लगभग नौ घंटे पहले सुबह 11.30 पर ही राज्यपाल कार्यालय को सूचित कर दिया कि उन्हें और वक्त चाहिए। यह जानते हुए कि शिवसेना को भी और वक्त नहीं मिला था। कांग्रेस की ओर से अभी विधायक दल का नेता ही नहीं चुना गया था, लिहाजा उसे बुलावा ही नहीं मिला।

 

कांग्रेस-एनसीपी की सुस्‍ती शिवसेना पर दबाव की राजनीति तो नहीं!

हालांकि, इस बीच एक वक्त ऐसा आया था जब लगा था कि शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस मिलकर सरकार बनाएगी, लेकिन इनकी सुस्ती के कारण योजना बिखर गई। राजनीतिक तौर पर तो यह अटकल भी तेज हो गई कि एनसीपी और कांग्रेस की सुस्ती कहीं शिवसेना पर दबाव बनाने के लिए तो नहीं थी। दरअसल, फिलहाल इस पूरे घटनाक्रम में शिवसेना को ही सबसे बड़ा धक्का लगा है। अब वह एनसीपी और कांग्रेस से भी मोलभाव की स्थिति में नहीं है। वह केंद्र में राजग से अलग हो गई है और वापस आने का साफ अर्थ हार होगी।

 

राज्‍यपाल ने कहा- कोशिश की, लेकिन नहीं बन पाई सरकार

गृहमंत्रालय के अनुसार महाराष्ट्र राज्यपाल ने अपनी अनुशंसा में साफ लिखा कि वहां सरकार बनाने की हर कोशिश की गई, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया। ऐसे में राष्ट्रपति शासन लगाना ही उचित होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स की बैठक के लिए ब्राजील रवाना होने वाले थे] लिहाजा तत्काल कैबिनेट बुलाकर अनुशंसा पर मुहर लगा दी गई।

...तो राज्यपाल दे सकते हैं सरकार बनाने का मौका

वैसे संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति शासन के बीच भी राजनीतिक दलों को यह छूट होती है कि वह बहुमत का आंकड़ा जुटाए और तथ्यों के साथ राज्यपाल को सौंपकर सरकार बनाने का दावा पेश करें। उससे संतुष्ट होने पर राज्यपाल सरकार बनाने का मौका दे सकते हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में यह भी तय होना है कि क्या राज्यपाल को शिवसेना और दूसरे दलों को ज्यादा वक्त दिया जाना चाहिए था। दरअसल, इन दलों ने आरोप लगाया है कि भाजपा को 48 घंटे का वक्त दिया गया और इन्हें सिर्फ 24 घंटे का जो न्यायोचित नहीं है। मंगलवार को इस याचिका पर कोई सुनवाई नहीं हो सकी।


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