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तेलंगाना में समयपूर्व चुनाव की तैयारी, सितंबर में हो सकती है विधानसभा भंग

विधानसभा चुनाव से निश्चित होने के बाद टीआरएस के पास किसी भी गठबंधन के साथ जुड़ने की स्वतंत्रता भी होगी।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Sat, 25 Aug 2018 04:46 PM (IST)Updated: Sat, 25 Aug 2018 04:46 PM (IST)
तेलंगाना में समयपूर्व चुनाव की तैयारी, सितंबर में हो सकती है विधानसभा भंग
तेलंगाना में समयपूर्व चुनाव की तैयारी, सितंबर में हो सकती है विधानसभा भंग

जागरण ब्यूरो,नई दिल्ली। संभव है कि नवंबर में चार की बजाय पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हों। तेलंगाना में सत्ताधारी दल टीआरएस की योजना सही राह पर चली तो अगले माह ही विधानसभा भंग कर समय से छह माह पूर्व नवंबर में ही चुनाव कराने की मांग हो सकती है। 2 सितंबर को हैदराबाद के नजदीक ही विशाल जनसभा के बाद मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव इसकी घोषणा भी कर सकते हैं।

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तेलंगाना में लोकसभा के साथ ही अप्रैल-मई में चुनाव नियत होने हैं। लेकिन तेजी से बदल रही राजनीति में शायद टीआरएस चाहता है कि लोकसभा के वक्त वह प्रदेश की स्थानीय राजनीति से मुक्त रहे। वैसे भी पिछले चार वर्षो में कई काम हुए हैं और फिलहाल वहां उनके लिए कोई दूसरा दल बड़ी चुनौती नहीं है। विधानसभा चुनाव से निश्चित होने के बाद टीआरएस के पास किसी भी गठबंधन के साथ जुड़ने की स्वतंत्रता भी होगी। यही कारण है कि टीआरएस नवंबर में ही चुनाव चाहता है।

एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री ने प्रदेश के राज्यपाल से मुलाकात कर राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा की। संभव है उन्होंने सितंबर में विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की हो ताकि वहां इसे विघटित करने का फैसला लिया जा सके। वह प्रधानमंत्री से मुलाकात के लिए दिल्ली भी पहुंच गए हैं ताकि लंबित कार्यो को तेज किया जा सके। बताते हैं कि 2 सितंबर को हैदराबाद के पास जिस रैली की तैयारी की जा रही है उसे अभूतपूर्व बनाने की कोशिश होगी। टीआरएस सूत्रों की मानी जाए तो 25 लाख लोगों को इकट्ठा करने की तैयारी है। जाहिर है कि इसे चुनावी बिगुल ही माना जाएगा।

पर एक संशय अभी भी है। सूत्र बताते हैं कि टीआरएस आशंकित है कि अगर विधानसभा भंग करने के बावजूद भी चुनाव आयोग ने नवंबर में ही मतदान कराने का फैसला नहीं लिया तो क्या होगा। गुरुवार को मुख्यमंत्री के पुत्र और प्रदेश के आइटी मंत्री के टी रामाराव ने राज्य के चुनाव आयुक्त से भी मुलाकात की थी।

केंद्र के लिहाज से यह रोचक है। दरअसल राज्य की आबादी और डेमोग्राफी के लिहाज से टीआरएस चाहकर भी भाजपा के साथ नहीं खड़ा हो सकता है। बल्कि पिछले चुनाव में तो परोक्ष रूप से वह असदुद्दीन ओवैसी की मदद लेता रहा था। लेकिन केंद्र में महागठबंधन की बजाय उसे राजग ज्यादा रास आया है। अब तक की स्थिति के लिहाज से टीआरएस राजग का भविष्य देख रहा है। संसद में भी कई मुद्दों पर वह राजग के साथ खड़ा रहा है। पर औपचारिक रूप से लोकसभा चुनाव में कोई राह तय करने के लिए जरूरी है कि वह विधानसभा चुनाव के दबाव से मुक्त रहे।


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