कोरोना काल में गरमाई हिमाचल की सियासत, मानहानि के आरोप-प्रत्यारोप में राजनीति का अखाड़ा बना कांगड़ा
Himachal Political Issue देवभूमि हिमाचल में कोरोना बेखौफ होकर रोजाना रिकॉर्ड लोगों को अपनी जद में ले रहा है। एक तरफ कोराेना संकट है तो दूसरी ओर प्रदेश की राजनीति गरमा गई है।
शिमला, प्रकाश भारद्वाज। देवभूमि हिमाचल में कोरोना बेखौफ होकर रोजाना रिकॉर्ड लोगों को अपनी जद में ले रहा है। एक तरफ कोराेना संकट है तो दूसरी ओर प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। हर सरकार में सत्तारूढ़ मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आराेप लगते हैं, उसी तर्ज पर इस बार भी कांगड़ा जिला से प्रदेश सरकार में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री सरवीण चौधरी पर कांग्रेस के दिग्गज नेता विजय सिंह मनकोटिया ने भूमि खरीद के आरोप लगाए हैं। अब मानहानि के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच में राज्य का सबसे बड़ा जिला राजनीतिक घटनाक्रम का अखाड़ा बन गया है। प्रदेश के सबसे बड़े दल कांग्रेस-भाजपा को सत्ता की दहलीज पर लाने में कांगड़ा जिला की अहम भूमिका रहती है। कांग्रेस के दो धुर विरोधी दिग्गज जीएस बाली और सुधीर शर्मा का एक साथ बैठने का मतलब है कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव की इबारत लिखनी शुरू कर दी है। इस वर्ष के अंत में होने वाले पंचायत चुनाव सत्ता का सेमीफाइनल होगा। दलगत राजनीति से इतर होने वाले चुनाव में दोनों दलों की ओर से समर्थकों को विजय दिलाने का प्रयास रहेगा।
अन्य पिछड़ा वर्ग की सियासत
मौजूदा सरकार में कैबिनेट मंत्री सरवीण चौधरी अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। कांगड़ा जिला में ओबीसी प्रभावी वोट बैंक है। सरवीण चौधरी पर उठे सवालाें के बीच में रमेश धवाला की भी ओबीसी समुदाय में पहचान है। यदि सरवीण चौधरी को मंत्रिमंडल से हटाया जाता है तो भाजपा के भीष्म को जयराम मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। मानहानि की सियासत के चक्रव्यूह में फंसी केबिनेट मंत्री को कीमत चुकानी पड़ सकती है।
बाली-सुधीर की गुटरगूं
कांग्रेस के सत्ताकाल में जीएस बाली और सुधीर शर्मा के बीच में छत्तीस का आंकड़ा रहा, जिसका खामियाजा कांग्रेस को सत्ता से बाहर होकर चुकाना पड़ा। लेकिन दोनों नेताओं में हुई मुलाकात का मतलब निकाला जा रहा है। सुधीर शर्मा पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शामिल वीरभद्र सिंह के कट्टर समर्थक हैं। लेकिन ओबीसी समुदाय में जीएस बाली की पैठ है। सत्ता में वापसी करने के लिए दोनों नेताओं का आपसी कड़वाहट भुलाकर एकजुटता दिखाना दिलचस्प है।
पंचायत चुनाव सेमीफाइनल
इस वर्ष के अंत में होने जा रहे पंचायतीराज चुनाव सत्ता का सेमीफाइनल तो नहीं है। वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनाव सियासी बदलाव की हवा बनाने में सहायक सिद्ध होंगे। जीतकर चाहे जो भी आए, दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस-भाजपा की ओर से अस्सी फीसद समर्थकों की जीत का दावा किया जाता है। लेकिन भाजपा का निचले स्तर तक व्यापक जनाधार है और पंचायत चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी की लोकप्रियता का भी प्रमाण मिल सकता है।