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पोखरण विस्‍फोट से पूरी दुनिया में देश और अटल बिहारी वाजपेयी की बढ़ी धमक

परमाणु परीक्षण के बाद देश को तमाम अंतरराष्‍ट्रीय प्रतिबंध भी झेलने पड़े, लेकिन पूर्व पीएम अटल बिहारी के नेतृत्‍व में भारत उन प्रतिबंधों से भी पार पाकर प्रगति के पथ आगे बढ़ता रहा।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 06:38 PM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 10:36 PM (IST)
पोखरण विस्‍फोट से पूरी दुनिया में देश और अटल बिहारी वाजपेयी की बढ़ी धमक
पोखरण विस्‍फोट से पूरी दुनिया में देश और अटल बिहारी वाजपेयी की बढ़ी धमक

नई दिल्‍ली, जागरण स्‍पेशल। देश को परमाणु शक्ति से संपन्‍न देश बनाने में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जो काम किया, उसको देश कभी भुला नहीं सकता। तमाम अंतरराष्‍ट्रीय दबावों के साथ-साथ अमेरिकी खुफिया एजेंसी के सेटेलाइट्स द्वारा रात दिन की निगरानी के बावजूद पूर्व पीएम अटल बिहारी ने पोखरण-2 परमाणु परीक्षण को सफल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। हालांकि इस परमाणु परीक्षण के बाद देश को तमाम अंतरराष्‍ट्रीय प्रतिबंध भी झेलने पड़े, लेकिन पूर्व पीएम अटल बिहारी के नेतृत्‍व में भारत उन प्रतिबंधों से भी पार पाकर प्रगति के पथ आगे बढ़ता रहा। इसके बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की धमक पूरी दुनिया में बढ़ गई। इस परीक्षण से ये भी पता चला कि भारत अब किसी के आगे किसी कीमत पर झुकने वाला नहीं है और अपनी सुरक्षा के लिए कुछ भी कर गुजरने से रुकने वाला नहीं है।

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11 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में तीन बमों के सफल परीक्षण के साथ भारत परमाणु शक्ति से संपन्‍न देश बन गया। ये देश के लिए गर्व का पल था। हालांकि 19 मार्च 1998 को दूसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी को कई क्षेत्रीय पार्टियों से समझौते करने पड़े थे इसलिए भारत को परमाणु राष्ट्र बनाना इतना आसान नहीं था। सत्‍ता में आने के दो महीने बाद ही 1998 में भारतीय जनता पार्टी ‘देश की परमाणु नीति का और परमाणु अस्त्रों को तैनात करने के विकल्प का पुनर्मूल्यांकन’ करने तक को तैयार हो गई थी, इसका असर देश और पार्टी दोनों की छवि पर भी पड़ा था।

अप्रैल 1998 में रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (IDSA) के निदेशक जसजीत सिंह ने कहा था कि ‘उनकी (अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा) छवि तो ऐसी है कि वो मानो पहला काम ही परमाणु बम के परीक्षण का करेंगे, लेकिन उन्होंने काफी संयम दिखाया है।’

सरकार बनने के बाद परमाणु टेस्‍ट का काम पर्दे के पीछे जारी था। वहीं 1998 में ही सेनाध्यक्ष वीपी मलिक ने सेना की मांग खुलकर सामने रखी थी। 21 अप्रैल 1998 को उन्होंने कहा था कि ‘परमाणु अस्त्रों और प्रक्षेपास्त्रों की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार सेना की रणनीतिक प्रतिरोध क्षमता विकसित करे।’

सेना प्रमुख की तरफ से आई मांग के ठीक दो दिनों बाद रक्षा मंत्रालय के वैज्ञानिक सलाहकार एपीजे अब्दुल कलाम ने रक्षामंत्री की समिति को न्यूक्लियर प्रोजेक्ट की जानकारी दी। इस समिति की अध्यक्षता उस समय के रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडिस कर रहे थे। अटल इसलिए भी परीक्षण जल्दी करना चाहते थे, क्योंकि उसी समय पाकिस्तान ने गौरी मिसाइल का सफलतापूर्वक टेस्ट कर लिया था। उस समय के पाकिस्तान के सूचना मंत्री मुशाहिद हुसैन गौरी के विकास को ‘दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन का प्रयास’ बता रहे थे। गौरी के अलावा पाकिस्‍तान गज़नवी मिसाइल पर भी काम कर रहा था।

वहीं चीन-पाकिस्तान की साठ-गांठ के अलावा अमेरिका और जापान समेत कई पश्चिमी देश भारत पर CTBT पर साइन करने के लिए दबाव डाल रहे थे। हालांकि इस अभियान को पूरी तरह से गोपनीय रखा गया था। यहां तक कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई सदस्यों तक को इसके बारे में पता नहीं था। पूरे अभियान की रणनीति में कुछ वरिष्ठ वैज्ञानिक, सैन्य अधिकारी व राजनेता ही शामिल थे। इस ऑपरेशन का नाम शक्ति रखा गया था।

11 मई की उस गर्म दोपहर को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने सरकारी घर 7 रेस कोर्स में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। इसी प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में प्रधानमंत्री वाजपेयी ने परमाणु योजना की जानकारी दी। हालांकि अटल बिहारी परमाणु टेस्‍ट का श्रेय पूर्व पीएम पीवी नरसिम्‍हा राव के देते हैं। राव को श्रद्धांजलि देते हुए अटल ने कहा था कि ‘मई 1996 में जब मैंने राव के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली तो उन्होंने मुझे बताया गया था कि बम तैयार है। मैंने तो सिर्फ विस्फोट किया है।’

दरअसल, साल 1995 में एक अमरीकी जासूसी सेटेलाइट ने राजस्‍थान के पोखरण में होने जा रहे परमाणु परीक्षण की तैयारी भांप ली थी। यह पता चलते हही तुरंत वॉशिंगटन ने भारत के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्‍हा राव से संपर्क किया। अमरीका ने इस परीक्षण को रुकवाने के लिए पीएम पर दबाव बनाया और वो उसमें सफल रहा।

एक रिपोर्ट यह भी दावा करती है कि बहुत ही कम लोग इस बात को जानते हैं कि 1996 की अपनी 13 दिनों की सरकार में अटल ने जो इकलौता फैसला किया था, वो परमाणु कार्यक्रम को हरी झंडी देने का था लेकिन जब उन्हें लगा कि उनकी सरकार स्थिर नहीं है तो उन्होंने ये फैसला रद्द कर दिया। इन सारी घटनाओं से एक बात तो तय है कि राव और अटल, दोनों ही परमाणु कार्यक्रम को लेकर गंभीर थे और हर हाल में परीक्षण करना चाहते थे।

वाजपेयी ने कई भाषणों में इस परमाणु टेस्‍ट का श्रेय परमाणु ऊर्जा विभाग के अध्यक्ष आर.चिदंबरम और दूसरे रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान के प्रमुख एपीजे अब्दुल कलाम को भी दिया। इसके बाद देश अपनी सरकार के ‘दुस्साहस’ का जश्न मनाने में मशगूल हो गया। उधर, दो दिन बाद अमेरिका के तत्‍कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत पर कई सारे प्रतिबंध थोप दिए, लेकिन भारत इसके बाद भी नहीं माना। 13 मई को भारत ने दो और परीक्षण किए थे। एक बार फिर सरकारी बयान जारी किया गया, जिसमें कहा गया, ‘इससे भूमिगत परीक्षणों का ये तयशुदा दौरा पूरा हो गया।’ पोखरण 2 के दौरान भारत ने एक के बाद एक कुल 5 परीक्षण किए थे।

आत्मनियंत्रण अपनी शक्ति से ही हो सकता
हमारी परमाणु नीति आत्मनियंत्रण और खुलेपन की रही है। हमने न तो 1974 में किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन किया था और न 1998 में किया है। 1974 में अपनी क्षमता के सफल प्रदर्शन के बाद हमने 24 वर्षों तक अपने को नियंत्रण में रखा। दुनिया के सामने अपने किस्म का यह अकेला उदाहरण है। आत्मनियंत्रण अपनी शक्ति से ही हो सकता है। यह अनिर्णयता और शंकाओं से नहीं आ सकता। यह कार्यवाही हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा की जरूरतों को ध्यान में रखकर उनकी पूर्ति के लिए की गई न्यूनतम और संतुलित कार्यवाही थी। आजादी के 50वें वर्ष में भारत इतिहास का निरूपण करने वाले एक मोड़ पर खड़ा है।

(पोखरण परमाणु परीक्षण पर 27 मई 1998 को लोकसभा में दिया भाषण) 


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