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    पीएम मोदी का घरेलू और विदेशी कालेधन पर चौतरफा प्रहार

    By Vikas JangraEdited By:
    Updated: Sun, 27 May 2018 10:21 AM (IST)

    मोदी ने सत्तासीन होने के बाद हर साल कालेधन पर चौतरफा प्रहार किया। उन्होंने कालाधन निकालने को विधायी और संस्थागत तंत्र बनाया गया और कालाधन फिर जमा न हो, इसके लिए प्रयास किए गए।

    पीएम मोदी का घरेलू और विदेशी कालेधन पर चौतरफा प्रहार

    नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज से ठीक चार साल पहले जब अपनी कैबिनेट की पहली बैठक बुलाई तो सबसे पहला फैसला कालेधन पर विशेष जांच दल (एसआइटी) बनाने का किया। उन्होंने शपथ ग्रहण के 24 घंटे के भीतर ही यह महत्वपूर्ण निर्णय लेकर कालेधन के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने के इरादे जाहिर कर दिए। इसके बाद तो मोदी सरकार ने हर साल एक बड़ा कदम उठाकर घरेलू और विदेशी कालेधन पर चौतरफा प्रहार किया। कालाधन निकालने को विधायी और संस्थागत तंत्र बनाया गया, दूसरे देशों के साथ संधियों की समीक्षा की गई और कालाधन फिर जमा न हो, इसके लिए प्रयास किए गए।

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    लोकसभा चुनाव 2014 से पहले विदेशी कालाधन बड़ा मुद्दा था। इसलिए नई सरकार से इस दिशा में कोई ठोस पहल करने की अपेक्षा थी। मोदी सरकार ने दशकों पुराने इस मर्ज का कारगर इलाज करने के लिए ‘ब्लैक मनी अन्डिस्क्लोज्ड फॉरेन इनकम एंड असेट्स एंड इंपोजीशन ऑफ टैक्स एक्ट-2015’ बनाया। इस कानून का मकसद विदेश में छिपे कालेधन को वापस लाना था। यह कानून बनाने के बाद सरकार ने विदेश में कालाधन रखने वाले लोगों को उनकी आय का खुलासा करने की मोहलत दी। इसका नतीजा यह हुआ कि 640 व्यक्तियों ने 4,100 करोड़ रुपये विदेशी आय का खुलासा किया।

    हालांकि इसका पता नहीं कि वह वापस आया या नहीं। इसके बाद 2016 में ‘आय घोषणा योजना’ और फिर नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना शुरू की। आय घोषणा के तहत 71,000 लोगों ने 67,300 करोड़ रुपये अघोषित आय का खुलाया किया। इसी तरह 21 हजार व्यक्तियों ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 4,900 करोड़ रुपये अघोषित आय का खुलासा किया।

    कालेधन पर दूसरा बड़ा वार ‘बेनामी ट्रांजैक्शन (प्रोहिबिशन) एक्ट 1988’में संशोधन के साथ लागू करके किया,क्योंकि कालेधन का बड़ा हिस्सा लोग रियल एस्टेट में रखते हैं। यह कानून 1988 से ही सरकारी फाइलों में धूल फांक रहा था । अब इसके तहत 900 प्रॉपर्टी अटैच की जा चुकी हैं। पनामा जैसे टैक्स हैवंस में जमा भारतीयों के कालेधन के संबंध में खुलासे से सरकार के विदेशी कालेधन की रोकथाम के लिए किए गए उपायों पर सवाल उठे। घरेलू मोर्चे पर भी जब आरबीआइ के एक डिप्टी गवर्नर ने खुलासा किया कि दो हजार रुपये का नोट जितना जारी हो रहा है, उतना बैंकिंग तंत्र में वापस नहीं आ रहा है तो देश के भीतर फिर से कालाधन जमा होने के संकेत मिलने शुरू हो गए। आयकर विभाग और अन्य प्रवर्तनकारी एजेंसियों ने थोड़ी सक्रियता दिखाई। तभी तो पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के अंतिम चार साल 2010-14 की तुलना में मोदी सरकार के शुरुआती चार वर्षों 2014-18 के बीच आयकर विभाग की ओर से किए गए सर्च एक्शन में 25 फीसद और जब्त की परिसंपत्ति में 28 फीसद की वृद्धि हुई है।

    2010-14 के बीच यूपीए सरकार के कार्यकाल में टैक्स देने से बचने की कोशिश कर रहे लोगों ने 48,299 करोड़ रुपये अघोषित आय स्वीकार की थी जबकि मोदी सरकार के कार्यकाल में 2014-18 के बीच ऐसे लोगों ने 52,705 करोड़ रुपये अघोषित आय कबूल की। यह राशि छापेमारी की कार्रवाई के बाद कबूल की गई। इसके अलावा आयकर विभाग ने 45 हजार करोड़ रुपये से अधिक अघोषित आय सर्वे की कार्रवाई में पकड़ी है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि बीते चार साल में आयकर विभाग ने 2725 समूहों पर छापेमारी की जबकि यूपीए के अंतिम चार वर्षों में यह आंकड़ा मात्र 2167 था। इस तरह बीते चार वर्षों में कालेधन के खिलाफ छापेमारी से लेकर अभियोजन दर्ज करने की कार्रवाई में काफी तेजी आई है।