दशाविहीन कांग्रेस की दिशा बदलने में लगे हैं राहुल गांधी, जानिए- क्या है सियासी मायने
कांग्रेस परंपरागत समावेशी राजनीति को छोड़ धार्मिक प्रतीकों को सीढी बनाकर सत्ता कुर्सी पर बैठना चाहती है लेकिन इस सबमें कांग्रेस बहुत कुछ खो रही है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भाजपा की आक्रामक राजनीति ने कांग्रेस की परंपरागत राजनीतिक पटरी को उखाड़ दिया है। ऐसे में कांग्रेस अब भाजपा की बिछाई राजनीतिक राह पर चल कर सत्ता की रेल पर सवार होने का सपना देख रही है। एक वक्त तक हिंदुत्व की राजनीति का ठप्पा झेलने वाली भाजपा अब समावेशी रूप में सामने आ रही है, सबका साथ-सबका विकास का नारा दे रही है और उस दिशा में प्रयास करती भी दिख रही है। वहीं, कांग्रेस परंपरागत समावेशी राजनीति को छोड़ धार्मिक प्रतीकों को सीढी बनाकर सत्ता कुर्सी पर बैठना चाहती है लेकिन इस सबमें कांग्रेस बहुत कुछ खो रही है और दूसरी ओर भाजपा की झोली में बहुत कुछ आ गया है। कांग्रेस अपने एजेंडे को पीछे छोड़ने के अलावा प्रतीक महापुरुषों को भी भाजपा से हार चुकी है।
इसकी शुरुआत हुई साल 2014 से, जब देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री ऐतिहासिक बहुमत दिया। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदर्शन में भी ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली। कभी देश की एकलोती पार्टी 44 सीटों पर सिमट कर रह गई। उसके बाद शुरू हुआ वो दौर जो आज इस स्थिति पर पहुंच गया है कि भाजपा ने एक-एक कर विरोधी पार्टियों खासकर कांग्रेस के प्रतीक पुरुषों को अपना बना लिया है और दूसरी ओर कांग्रेस, हिंदुत्व की राह पर आगे बढ़ती नजर आ रही है। आइए जानते हैं कि पिछले चार साल में अब तक दोनों पार्टियां कैसे अपने वैचारिक गढ़ को छोड़ एक-दूसरे के रणक्षेत्र में सेंध लगाने में जुटी हैं।
1. महात्मा गांधी
कांग्रेस के प्रतीक पुरुषों में सबसे अग्रणी स्थान महात्मा गांधी का रहा लेकिन बरसों सत्ता पर काबिज रहने के बावजूद कांग्रेस राष्ट्रपिता गांधी को राजनैतिक आंदोलन की तरह जनता के मन में बैठा न पाई और न ही कुछ ऐसा करती दिखीं कि जनता की स्मृति में गांधी का कद बढ़ता, भले ही प्रतीक रूप क्यों न होता। लेकिन नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस दिशा में काम शुरू कर दिया और 2016 में गांधी जयंती पर 'स्वच्छ भारत अभियान' शुरू किया। उन्होंने गांधी की 150वीं जयंती तक भारत को स्वच्छ बनाने का राजनैतिक संकल्प भी जनता की जुबां पर चढ़ाया है। इसके अलावा भी पीएम मोदी के भाषणों में लगातार गांधी का जिक्र और गांधीवाद का उल्लेख भी इस दिशा में भाजपा को कांग्रेस पर बढ़त दिलाता है।
2. सरदार पटेल
कांग्रेस के दूसरे महापुरुष रहे सरदार पटेल। सरदार पटेल को लेकर प्रधानमंत्री ने उस वक्त राजनीतिक विमर्श शुरू कर दिया था, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने गुजरात वासियों के मन में पटेल और भाजपा की संयुक्त छवि बना दी और इसी पर सवार होकर प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' स्थापित करने के तौर पर एक और अहम फैसला लिया। गुजरात में सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा स्थापित होगी और इसे स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का नाम दिया गया है। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों में लगातार पटेल की उपेक्षा का जिक्र इस मामले को और हवा देता है। दूसरी ओर कांग्रेस को देखें तो प्रतीक रूप में पटेल के लिए ऐसा कुछ किया दिखाई नहीं देता।
3. भीमराव अंबेडकर
भीमराव आंबेडकर को मुख्य रूप से अब बहुजन समाज पार्टी से जोड़ा जाता है लेकिन बसपा के उदय से पहले तक कांग्रेस का एकाधिकर होता था। उसके बाद भी कांग्रेस अंबेडकर के नाम पर राजनीतिक लाभ लेती रही और अपनी छवि में अंबेडकर को भी शामिल किया। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अंबेडकर को लेकर कांग्रेस और बसपा दोनों पार्टियों पर करारा राजनीतिक वार किया है। उन्होंने पिछले चार साल में छोटे-बड़े अनेक काम किए और दलितों में ये संदेश देने की कोशिश की कि अंबेडकर को भाजपा कांग्रेस-बसपा की तरह ही पूरा सम्मान मिलेगा। इस दिशा में पीएम मोदी की ओर से एससी-एसटी एक्ट को मूल रूप में बहाल करने का फैसला एक बड़ा कदम है। इस कदम से हालांकि कुछ वर्ग नाराज भी हैं लेकिन भाजपा को यकीन है कि उनका परंपरागत वोट बैंक कहीं जाएगा नहीं और इसी का फायदा उठाकर वे विरोधियों के परंपरागत वोट बैंक में आसानी से सेंध लगा सकते हैं। इसी कूटनीति ने अब कांग्रेस और बसपा को दुविधा में डाल रखा है।
4. सुभाष चंद्र बोस
कांग्रेस पर हमेशा से सुभाष चंद्र बोस को लेकर तरह-तरह के आरोप लगते रहे। मोटे तौर पर एक अवधारणा ये रही कि नेहरू और गांधी की वजह से सुभाष को देश छोड़ना पड़ा और उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जिसके बोस हकदार हैं। पीए मोदी ने इस दिशा में दो अहम कदम उठाए। पहला बोस से जुड़े दस्तावेज सार्वजनिक करने का और दूसरा हाल ही में 'आजाद हिंद सरकार' की 75वीं वर्षगांठ पर लालकिले से झंडा फहराकर बोस का सपना पूरा करने का। इस मौके का पीएम मोदी ने फायदा भी उठाया और मंच से कांग्रेस पर करारा राजनैतिक हमला किया, ये कहते हुए कि एक परिवार के लिए भारत के महापुरुषों के योगदान को भुला दिया गया।
कांग्रेस के पास बचे सिर्फ नेहरू?
अब गौर करने वाली बात ये है कि एक-एक कर पीएम मोदी ने बड़ी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए विरोधी दलों के प्रतीक महापुरुषों को भाजपा का बना दिया। इससे विरोधी खेमे में नाराजगी के साथ ही कुछ हद तक दुविधाजनक स्थिति भी दिखती है। सबसे ज्यादा असहजता कांग्रेस के लिए है क्योंकि अब कांग्रेस के पास प्रतीक पुरुषों में एकमात्र नेहरू ही बचे हैं। वहीं, कांग्रेस भी शुरू से नेहरू पर ही ज्यादा दे रही थी। लेकिन जिन मौकों को पीएम मोदी ने भुनाया है, वे कांग्रेस के पास भी थे लेकिन सिर्फ नेहरू के ईर्द-गिर्द राजनीति करने की लालसा या यूं कहें कि नीति का ही फल है कि आज सिर्फ नेहरू ही कांग्रेस के प्रतीक पुरुष बनकर रह गए हैं। ये राजनीतिक स्थिति जहां भाजपा की राह आसान बना रही है वहीं कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी करेगी।
नीति, नेता और नीयत की कमी न पड़ जाए भारी
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को कुछ ही वक्त बाद चुनावी रण में उतरना है। अभी तक भी कांग्रेस उलझन की स्थिति में नजर आ रही है। जैसा कि विपक्षी लगातार कहते हैं कि कांग्रेस के पास अब न कोई नेता है, न कोई नीति और न ही नीयत है। विपक्ष के इस आरोप में कुछ हद तक सच्चाई नजर आ सकती है। जैसे कि कांग्रेस की छवि और नीति आजादी के आंदोलन से ही सेक्युलर या यूं कहें कि सबका साथ, सबका विकास की होती थी लेकिन आज ये नारा भाजपा लगा रही है और इसे सही साबित करने की दिशा में काम भी कर रही है जबकि कांग्रेस इसके उलट भाजपा की राह पर चलती दिख रही है। कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं और लगता है कि कांग्रेस अपनी सेक्युलर छवि को तोड़ने का प्रयास कर रही है। इस तरह उसकी नीति अब अलग नजर आती है और ये पहल कांग्रेस की नीयत पर सवाल खड़े कर सकती है। ऐसे में जरूरत है कांग्रेस को नेता के रूप में ऐसे आदमी की जो कांग्रेस को जनता के मन में पुनर्जीवित कर सके।