सांसदों, विधायकों पर 4000 से ज्यादा आपराधिक मामले हैं लंबित
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ एक जनहित याचिका पर वर्तमान और पूर्व विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों से संबंधित मुद्दों पर मंगलवार को विचार करेगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राजनीति का अपराधीकरण एक विकट समस्या बन गई है। सुप्रीम कोर्ट में पेश रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में 2324 सांसदों और विधायकों के खिलाफ अदालतों में आपराधिक मामले लंबित हैं। अगर इसमें पूर्व सांसदों और विधायकों के मामले भी शामिल कर लिये जाएं तो संख्या 4122 हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने माननीयों के अपराधों का ब्योरा देने वाली इस रिपोर्ट को रिकार्ड पर लेते हुए फिलहाल बिहार और केरल उच्च न्यायालयों को पूर्व और वर्तमान सांसदों विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमें जल्द निपटाने के उपाय करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने दोनों राज्यों के उच्च न्यायालयों से कहा है कि ऐसे मामलों के जल्द निपटारे के लिए जितने जरूरत हों उतनी सत्र व मजिस्ट्रेट अदालतों को ऐसे केसों की सुनवाई सौंपी जाए। ये आदेश मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, संजय किशन कौल और केएम जोसेफ की पीठ ने वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिये। इस मामले में कोर्ट ने वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया को न्यायमित्र नियुक्त किया है। मंगलवार को विभिन्न उच्च न्यायालयों से मिले आंकड़ों के आधार पर न्यायमित्र विजय हंसारिया ने देश भर में पूर्व और वर्तमान सांसदों विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों की तैयार की गई रिपोर्ट कोर्ट में पेश की। रिपोर्ट में हंसारिया ने मामलों के जल्द निपटारे के लिए कुछ सुझाव भी दिये थे।
रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व और वर्तमान सांसद विधायकों के खिलाफ कुल 4122 आपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें 2324 वर्तमान सांसद और विधायक हैं जबकि 1675 पूर्व सांसद विधायक हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुल 4122 मामलों में से 1991 मामलों में अभी चार्ज फ्रेम नहीं हुए हैं। 430 मामले ऐसे हैं जिसमें उम्रकैद की सजा के आरोप हैं। जल्द निपटारे के बारे में दिये गये सुझावों में हंसारिया ने कहा कि कोर्ट के आदेश पर गठित 12 विशेष अदालतों में सभी मुकदमों को सुने जाने के बजाए प्रत्येक जिले में एक विशेष सत्र और विशेष मजिस्ट्रेट कोर्ट इनके लिए होनी चाहिए ताकि मुकदमों का निपटारा जल्दी हो।
मुकदमों की प्राथमिकता तय करके रोजाना सुनवाई की जाए। सबसे पहले वर्तमान सांसदों विधायकों के खिलाफ उम्रकैद और मृत्युदंड की सजा वाले आरोपों के मुकदमों को निपटाया जाए। इसके बाद पांच वर्ष या उससे अधिक सजा के मामले सुने जाए और फिर अन्य निपटाए जाएं। इसके बाद यही क्रम पूर्व सांसदों विधायकों के लंबित मुकदमों मे अपनाया जाए। इस बारे में संबंधित उच्च न्यायायलयों को मासिक रिपोर्ट दी जाए।कोर्ट ने न्यायमित्र की इस रिपोर्ट को रिकार्ड पर लेते हुए सुझाव मे कुछ बदलाव के साथ बिहार और केरल उच्च न्यायालयों को आदेश जारी किये। कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक जिले में सत्र और मजिस्ट्रेट अदालत को ऐसे मामले सौंपने के बजाए उच्च न्यायालय ऐसे मामलों के जल्द निपटारे के लिए जितने उचित समझें उतने सत्र और मजिस्ट्रेट अदालतों को केस सौंपे।
कोर्ट ने आदेश दिया है कि वर्तमान और पूर्व सांसदों विधायकों के खिलाफ लंबित उम्रकैद और मृत्युदंड की सजा के आरोपित मुकदमों को प्राथमिकता पर सुना जाए। इसमें पहले वर्तमान और फिर पूर्व का भेद न किया जाए। बिहार और केरल में जो केस विशेष अदालतों को सौंपे गये हैं वे पुन: संबंधित अदालतों को भेजे जाएं। दोनों राज्यों की संबंधित अदालतों को आदेश दिया है कि वह उच्च न्यायालयों को रिपोर्ट देकर बताएंगी कि उनके यहां लंबित कितने मामलों में चार्जशीट नहीं दाखिल हुई है, कितने में चार्ज नहीं फ्रेम हुए हैं उसके क्या कारण हैं साथ ही ट्रायल की क्या स्थिति है। यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट भी भेजी जाएगी।इसके अलावा कोर्ट ने दिल्ली व देश के अन्य राज्यों में ऐसे मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए गठित विशेष अदालतों को फिलहाल पूर्ववत काम करते रहने को कहा है। मामले पर कोर्ट 14 दिसंबर को फिर सुनवाई करेगा।