तीन तलाक अध्यादेश पर संसद में मुखर विरोध से बचेगा विपक्ष
संसद के शीत सत्र में एनडीए भाजपा तीन तलाक अध्यादेश को सियासी अस्त्र न बना ले, इसको लेकर विपक्षी दल पूरी तरह सतर्क हो गए हैं।
नई दिल्ली, संजय मिश्र। संसद के शीत सत्र में एनडीए भाजपा तीन तलाक अध्यादेश को सियासी अस्त्र न बना ले इसको लेकर विपक्षी दल पूरी तरह सतर्क हो गए हैं। भाजपा की ऐसी कोशिश कामयाब न हो इसको लेकर विपक्षी दल तीन तलाक अध्यादेश में कुछ संशोधन के सुझाव तो देंगे मगर सरकार इस पर राजी नहीं हुई तो वे मुखर विरोध से बचेंगे।
संसद के शीत सत्र में भाजपा सरकार को घेरने से लेकर उसके सियासी दांव थामने की रणनीति पर विपक्षी दलों के नेताओं की अनौपचारिक बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया है। विपक्षी खेमे के सूत्रों ने बताया कि इस सिलसिले में अयोध्या राम मंदिर प्रकरण, रोजगार-किसानों, जम्मू-कश्मीर के घटनाक्रम के अलावा तीन तलाक अध्यादेश से जुड़े मामलों पर संसद में संयुक्त रणनीति तय करने पर आम राय है। वामदलों के नेताओं ने इस बारे में कांग्रेस के संसदीय रणनीतिकारों से तीन तलाक पर पार्टी के नजरिये की भी टोह ली है।
विपक्षी नेता अपने अंदरूनी संवाद में यह मान रहे कि तीन तलाक अध्यादेश का सीधे विरोध करना लोकसभा चुनाव के मद्देनजर घातक फैसला होगा। इसीलिए वाजिब यही होगा कि मुस्लिम समुदाय की कुछ चिंताओं का निराकरण करने के लिए सरकार को इसमें कुछ संशोधनों के लिए राजी किया जाए। हालांकि कांग्रेस सूत्रों ने तीन तलाक अध्यादेश को लेकर पार्टी की रणनीति के संदर्भ में कहा कि बेशक विपक्ष के दूसरे दलों से जारी बातचीत के बाद ही अंतिम रुख तय होगा।
मगर जहां तक पार्टी के नजरिये का सवाल है तो अध्यादेश में सरकार ने कांग्रेस के कुछ सुझाव मान लिए हैं जिन्हें पूर्व में संसद में लाए गए बिल में शामिल करने के लिए वह राजी नहीं थी। कांग्रेस के इस रुख का संकेत साफ है कि तीन तलाक अध्यादेश पर वह पार्टी अब सियासी जोखिम लेने के मूड में नहीं है। वैसे भी कांग्रेस तीन तलाक के खिलाफ कानून का सैद्धांतिक रुप से समर्थन करती रही है।
विपक्षी दलों की चिंता इस बात को लेकर है कि संसद में तीन तलाक अध्यादेश पर उनके सुझावों या संशोधनों को भाजपा अल्पंसख्यक तुष्टीकरण से जोड़ 2019 के लिए मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। जैसा कि विपक्ष खेमे के एक गैर कांग्रेसी नेता ने कहा कि राम मंदिर मुद्दा हो या तीन तलाक दोनों भाजपा के अगले चुनाव के धु्रवीकरण का खुला एजेंडा हैं।
ऐसे में विपक्षी दलों के लिए यह चुनौती तो रहेगी ही कि वे ध्रुवीकरण की भाजपा की सियासत को संयम की रणनीति से निपटें क्योंकि मुखर होने से सत्ताधारी दल की फेंकी गई गुगली में फंसने का खतरा तो होगा ही।
मालूम हो कि सरकार तीन तलाक बिल मानसून सत्र में नहीं ला पायी मगर सत्र खत्म होने के बाद सितंबर के तीसरे सप्ताह में सरकार ने अध्यादेश लाकर तीन तलाक को गैरकानूनी बना दिया। शीत सत्र में अब सरकार इस अध्यादेश को विधेयक के रुप में पारित कराने के लिए लाएगी।