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ईयू पर बिरला के कड़े रुख की सदन में हुई तारीफ, सांसद ने कहा- स्पीकर के हस्तक्षेप के बाद प्रस्ताव हुआ खारिज

तेलंगाना के खम्मन से सांसद राव ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के सख्त रुख के बाद ही यूरोपियन यूनियन ने सीएए पर चर्चा के प्रस्ताव को टाला था।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Tue, 04 Feb 2020 11:26 PM (IST)Updated: Tue, 04 Feb 2020 11:30 PM (IST)
ईयू पर बिरला के कड़े रुख की सदन में हुई तारीफ, सांसद ने कहा- स्पीकर के हस्तक्षेप के बाद प्रस्ताव हुआ खारिज
ईयू पर बिरला के कड़े रुख की सदन में हुई तारीफ, सांसद ने कहा- स्पीकर के हस्तक्षेप के बाद प्रस्ताव हुआ खारिज

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर यूरोपियन यूनियन के चर्चा कराने के प्रस्ताव पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के कड़े रुख की मंगलवार को सदन में जमकर तारीफ हुई। टीआरएस सासंद नागेश्वर राव ने इसका जिक्र किया और कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ने जिस तरीके से यूरोपियन यूनियन को सख्त संदेश दिया, उसकी तारीफ की जानी चाहिए।

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तेलंगाना के खम्मन से सांसद राव ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के सख्त रुख के बाद ही यूरोपियन यूनियन ने सीएए पर चर्चा के प्रस्ताव को टाला था। ओम बिरला ने कहा था कि भारत के दोनों सदनों से सीएए का कानून बना है। अगर कोई दूसरी संसद इस तरह किसी और देश की संसद के फैसले पर सवाल उठाएगी तो इसके घातक परिणाम हो सकते हैं।

पिछले दिनों यूरोपियन संघ ने अपने संसद में सीएए पर चर्चा का प्रस्ताव दिया था। हालांकि भारत ने इसे अपना घरेलू मामला बताते हुए यूनियन के इस रुख पर आपत्ति जताई थी। बाद में इस चर्चा से फ्रांस ने खुद को अलग भी कर लिया था।

यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया को लिखा था पत्र

बता दें कि अभी हाल ही में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रस्तावों को लेकर यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया सासोली को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा था कि एक विधान मंडल का दूसरे विधान मंडल पर फैसला देना अनुचित है। इस चलन का निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। पत्र में बिरला ने कहा था कि अंतर-संसदीय यूनियन का सदस्य होने के नाते हमें अन्य विधानमंडलों की संप्रभु प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए।

लोकसभा अध्यक्ष ने सीएए को समझाते हुए बताया था कि यह पड़ोसी देशों में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हुए लोगों को आसानी से नागरिकता देने के लिए है, न कि किसी की नागरिकता छीनने के लिए। इसे भारतीय संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद पारित किया गया है।


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