ओबीसी की पिछड़ी जातियों का पता लगाने के लिए अब होगा घर-घर सर्वे
आयोग ने सरकार को अपनी प्रारम्भिक रिपोर्ट भी दे दी है, लेकिन सरकार ने सटीक जानकारी जुटाने का सुझाव दिया।
अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। आरक्षण के बाद भी ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की पिछड़ी रह गई जातियों का पता लगाने और उनके उप-वर्गीकरण की सरकार की योजना फिलहाल कुछ समय के लिए लटक सकती है। इसे लेकर काम कर रहे जस्टिस रोहिणी आयोग ने अब इसकी सटीक जानकारी जुटाने के लिए घर- घर जाकर सर्वे कराने की योजना बनाई है। साथ ही इसके लिए सरकार से 20 करोड़ रुपए से ज्यादा की वित्तीय मदद की मांग भी की है।
जस्टिस रोहिणी आयोग ने इस संबंध में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को प्रस्ताव दिया है। जिसमें कहा कि देश भर में ओबीसी की 26 सौ से ज्यादा जातियां है, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में रहती है। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि सभी के जीवन स्तर अलग-अलग है। ऐसे में सटीक जानकारी जुटाने के लिए सभी राज्यों में निचले स्तर पर जाकर ब्यौरा जुटाना जरूरी होगा। इसके तहत देश भर के दस लाख से ज्यादा घरों में इसको लेकर सर्वे होगा। इनमें परगना और तहसील स्तर पर जाकर ओबीसी परिवारों के जीवन स्तर से जुड़ी जानकारी जुटाई जाएगी। इनमें शैक्षणिक और रोजगार की स्थिति पर सबसे ज्यादा फोकस होगा। फिलहाल यह सर्वे वर्ष 2011 की जनसंख्या के आंकड़ों का आधार ही होगा।
हालांकि सरकार का इस पूरी कवायद के पीछे मकसद ओबीसी की पिछड़ी जातियों को भी विकास की दौड़ में आगे बढ़ाने है।
मौजूदा समय में ओबीसी आरक्षण का लाभ ओबीसी की कुछ ही जातियों तक सिमटा हुआ है। सरकार की कोशिश है कि वह इससे वंचित वर्ग को भी उप-वर्गीकरण के लिए उनका लाभ दिलाए। सरकार की इस पहल को राजनीतिक नजरिए से भी देखा जा रहा है।
आयोग ने ओबीसी की पिछड़ी जातियां का पता लगाने के लिए सरकार को सर्वे का यह प्रस्ताव उस समय दिया है, जब वह इस पूरी कवायद पर पहले ही साल भर से ज्यादा का समय दे चुकी है।
जस्टिस जी. रोहिणी की अध्यक्षता में अक्टूबर 2017 में गठित आयोग ने हालांकि इसे लेकर सरकार को अपनी प्रारम्भिक रिपोर्ट भी दे दी है, लेकिन सरकार ने आयोग को इस मामले में और सटीक जानकारी जुटाने का सुझाव दिया था। माना जा रहा है कि आयोग ने इसके बाद ही घर-घर जाकर सर्वे कराने की योजना बनाई है।