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भारत और नॉर्वे के सम्बन्धों में व्यापार और निवेश का काफी अहम योगदानः पीएम मोदी

पीएम मोदी और नार्वे के समकक्ष एर्ना सोलबर्ग के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता हुई।

By TaniskEdited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 11:06 AM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 01:51 PM (IST)
भारत और नॉर्वे के सम्बन्धों में व्यापार और निवेश का काफी अहम योगदानः पीएम मोदी

नई दिल्ली, एएनआइ। पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता से पहले हैदराबाद हाउस में अपने नार्वे के समकक्ष एर्ना सोलबर्ग का भारत में गर्मजोशी से स्वागत किया। दोनों नेताओं के बीच यहां वार्ता हुई।

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वार्ता के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि पिछले वर्ष स्टॉकहोम में जब मैं प्रधानमंत्री सोल्बर्ग से मिला था, तो मैंने उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया था। मुझे प्रसन्नता है कि आज मुझे भारत में उनका स्वागत करने का अवसर मिला। प्रधानमंत्री सोल्बर्ग ने Sustainable Development Goals को पाने की दिशा में वैश्विक प्रयासों को काफी प्रोत्साहन दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और नॉर्वे के सम्बन्धो में व्यापार और निवेश का काफी अहम महत्व है। 

इससे पहले भारत के अपने तीन दिवसीय दौरे के दूसरे दिन नार्वे की प्रधानमंत्री इरना सोलबर्ग राष्ट्रपति भवन पहुंची। वहां इनका औपचारिक स्वागत किया गया। सोलबर्ग ने कहा 'मैं भारत में आने के लेकर काफी उत्साहित हूं। उम्मीद है कि हमारी महासागरों,सतत विकास और द्विपक्षीय मुद्दों पर भारत के साथ अच्छी साझेदारी होगी। ' दोनों ने आखिरी बार अप्रैल 2018 में भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन में मुलाकात की थी। भारत और नॉर्वे के बीच काफी अच्छे संबंध हैं।

वे इस दौरान भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से आयोजित कूटनीति महाकुंभ रायसीना डायलॉग को भी संबोधित करेंगीं।बता दें कि सोमवार को उन्होंने भारत व पाकिस्तान के रिश्ते और कश्मीर को लेकर बयान काफी अहम बयान दिया था। उन्होंने मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर कहा था कि भारत और पाकिस्तान को बातचीत का फैसला अपने स्तर पर ही करना है। लेकिन क्षेत्र में शांति की संभावना बनती है तो वह या कोई और देश मध्यस्थता कर सकता है। 

कश्मीर मुद्दे को लेकर उन्होंने कहा,‘मैं नहीं समझती कि किसी भी हिंसा ग्रस्त क्षेत्र में सैन्य कार्रवाई से स्थाई शांति स्थापित की जा सकती है। मैं सिर्फ कश्मीर की बात नहीं कर रही। हमारे सामने सीरिया का उदाहरण है जहां सैन्य कार्रवाई के बावजूद समस्या का समाधान नहीं निकल पाया है। मेरा मानना है कि हर दो पड़ोसी देशों के बीच शांति होनी चाहिए ताकि वह स्वास्थ्य व शिक्षा जैसे मुद्दों पर ज्यादा धन खर्च कर सकें न कि सैन्य तैयारियों पर।’सोल्बर्ग ने यह भी कहा था कि, ‘नार्वे की नीति स्पष्ट है कि जब कोई मदद मांगता है तभी दी जाती है। हम अपनी तरफ से थोपने की कोशिश नहीं करते।’


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