सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन करके आगे की रणनीति तय करेगा निर्मोही अखाड़ा
अखाड़ा के सेवादारी के दावे को किसी भी पक्षकार ने चुनौती नहीं दी है ऐसे में उसका सेवादारी का दावा किस आधार पर खारिज हुआ इसका भी वह अध्ययन करेगा।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने के लिए संघर्ष करने वाला और रामलला की सेवादारी (शैबियत अधिकार) का दावा करने वाला निर्मोही अखाड़ा वैसे तो मंदिर बनने की राह साफ होने से खुश है। इसके अलावा मंदिर निर्माण और प्रबंधन के लिए बनने वाले ट्रस्ट में शामिल किये जाने के कोर्ट के आदेश का भी आभारी है लेकिन उसका मुकदमा खारिज होने और सेवादारी का दावा ठुकराये जाने के पहलू पर वह फैसले का अध्ययन करके आगे की रणनीति तय करेगा।
निर्मोही अखाड़ा राम जन्मभूमि विवाद में एक प्रमुख पक्षकार था
निर्मोही अखाड़ा राम जन्मभूमि विवाद में एक प्रमुख पक्षकार था। सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को दिये फैसले में अखाड़ा का मुकदमा कानून में तय समय के भीतर दाखिल न किये जाने के आधार पर खारिज कर दिया था। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा की सेवादारी (शैबियत अधिकार) का दावा भी ठुकरा दिया था। हालांकि कोर्ट ने विवादित स्थल पर निर्मोही अखाड़ा की ऐतिहासिक मौजूदगी और उसकी भूमिका को देखते हुए संविधान मे प्राप्त विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सरकार को निर्देश दिया है कि वह गठित किये जाने वाले ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा को उचित स्थान दे। बता दें कि अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को न्याय के हित में कोई भी आदेश जारी करने का अधिकार और शक्ति प्रदान करता है। इसी के तहत कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा को ट्रस्ट में शामिल करने का आदेश दिया है।
फैसले का बारीकी से अध्ययन करेंगे निर्मोही अखाड़ा के सरपंच आचार्या
निर्मोही अखाड़ा के सरपंच राजा रामचंद्रा आचार्या का कहना है कि अपने हितों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए वह सभी जरूरी कदम उठाने पर विचार करेंगे, लेकिन उसके पहले फैसले का बारीकी से अध्ययन करना जरूरी है। उनका कहना है कि जन्मभूमि पर उनका दावा अंदर के अहाते पर था बाहर के चबूतरे और अहाते पर निर्मोही अखाड़ा के अधिकार को तो हाईकोर्ट और जिला अदालत ने भी माना था। इसके अलावा मुसलिम पक्षकारों ने भी चबूतरे पर उनका कब्जा और शैबियत का अधिकार माना है। वह कहते हैं कि शैबियत अधिकार की व्याख्या सात जजों की संविधान पीठ ने पहले जो की है उसे उनकी ओर से इस मुकदमें की सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने रखा भी गया था अब देखना होगा कि कोर्ट ने किस आधार पर उनके दावे को समझे बगैर खारिज किया है। वह कहते हैं कि यह सिर्फ अयोध्या की बात नहीं है, जिस तरह से अखाड़ों ने भारतीय संस्कृति की रक्षा की है उसके आधार वह ये बात कहने का हक रखते हैं। मंदिर निर्माण के लिए वह लोग 1885 से मुकदमा लड़ते चले आये है ऐसे में मंदिर निर्माण का रास्ता साफ होने से वह खुश हैं।
निर्मोही अखाड़ा को ट्रस्ट में शामिल करने के लिए कोर्ट का फैसला उचित
निर्मोही अखाड़ा के प्रवक्ता कार्तिक चोपड़ा कहते हैं कि इस मुकदमें की रोजाना सुनवाई करके फैसला सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के शुक्रगुजार हैं। उनका कहना है कि अखाड़ा को नये गठित किये जाने वाले ट्रस्ट में शामिल करने के कोर्ट के फैसले के भी आभारी है लेकिन उन्हें अभी इस बात का पता नहीं है कि केन्द्र उसे ट्रस्ट में क्या भूमिका देगा। इसके अलावा अखाड़ा सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसका मुकदमा समय भीतर दाखिल न किये जाने के आधार पर खारिज करने तथा उसका सेवादारी का दावा ठुकराने के पहलू पर फैसले का अध्ययन कर रहा है। इन दोनों पहलुओं पर फैसले का अध्ययन करने के बाद ही आगे की रणनीति तय करेगा।
फैसला बहुत बड़ा है उसे पढ़ने और समझने में वक्त लगेगा
चौपड़ा का कहना है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 1961 में मुकदमा दाखिल किया था और कोर्ट ने उसका मुकदमा तय समय के भीतर माना है जबकि निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में मुकदमा दाखिल किया था तब भी उसका मुकदमा तय समय के बाद दाखिल मानकर खारिज किया गया है। फैसला बहुत बड़ा है उसे पढ़ने और समझने में वक्त लगेगा। निर्मोही अखाड़ा फैसले का अध्ययन कर रहा है। चौपड़ा का यह भी कहना है कि जब कोर्ट मान रहा है कि अखाड़ा लंबे समय से वहां मौजूद रहा है। इसके अलावा अखाड़ा के सेवादारी के दावे को किसी भी पक्षकार ने चुनौती नहीं दी है ऐसे में उसका सेवादारी का दावा किस आधार पर खारिज हुआ इसका भी वह अध्ययन करेगा।