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जानें-1988 में क्यों ठप हो गई थी दिल्ली, कभी इंदिरा व अटल की भी 'यहां' गूंजी थी आवाज

बोट क्लब पर 1988 में एक बड़ी किसान रैली का आयोजन हुआ था, जिसके चलते दिल्ली ठप हो गई थी। 1993 में सरकार ने कड़ा फैसला लेते हुए यहां प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 30 Jul 2018 11:03 AM (IST)Updated: Mon, 30 Jul 2018 11:16 AM (IST)
जानें-1988 में क्यों ठप हो गई थी दिल्ली, कभी इंदिरा व अटल की भी 'यहां' गूंजी थी आवाज
जानें-1988 में क्यों ठप हो गई थी दिल्ली, कभी इंदिरा व अटल की भी 'यहां' गूंजी थी आवाज

नई दिल्ली। वर्षों बाद एक बार फिर बोट क्लब ‘आवाज दो, हम एक हैं’ और ‘साथियों साथ दो’ जैसे जोशीले नारों से गूंजेंगा। सुप्रीम कोर्ट ने राजधानी के बीचों-बीच स्थित बोट क्लब पर विरोध प्रदर्शन और धरना देने की अनुमति दे दी है। बोट क्लब ने आधी सदी के दौरान ना जाने कितनी रैलियों, धरना और प्रदर्शनों को देखा है।

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1988 में हुआ था जबरदस्त आंदोलन
केंद्र सरकार के खासमखास विभागों की इमारतों के बीच हरे-भरे बोट क्लब पर 1988 में एक बड़ी किसान रैली का आयोजन हुआ था। जिसकी वजह से पूरी दिल्ली ठप सी हो गई थी। आसपास के राज्यों से आए किसानों ने अपनी मांगों को लेकर यहां लंबा धरना दिया था। उस किसान आंदोलन की सरपरस्ती भारतीय किसना संघ के नेता महेंद्र सिह टिकैत कर रहे थे। तब इंडिया गेट, विजय चौक और बोट क्लब पर किसान ही किसान नजर आ रहे थे। ये किसान बसों, बैल गाड़ियों और ट्रेक्टरों में भरकर यहां आए थे। उनके इस विशाल आंदोलन के बाद ही सरकार यहां विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाने पर विचार करने लगी थी।

मंडल आयोग के प्रदर्शन का गवाह भी बना
90 के दशक के बाद की पीढ़ी को बोट क्लब पर मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किए जाने के बाद हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों की जानकारी शायद नहीं होगी। उन दिनों बोट क्लब पर मंडल कमीशन ‘डाउनडाउन’ और ‘वीपी सिंह हाय हाय’ के नारे खूब सुनाई देते थे। उसी दौरान देशबंधु कॉलेज के छात्र राजीव गोस्वामी ने एम्स के पास आत्मदाह करने की कोशिश की थी। वो इस क्रम में बुरी तरह से जल गए थे।

चुनावी रैलियां भी हुईं
आखिरकार 1993 में सरकार ने बोट क्लब पर सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी। उसका तर्क था कि ये राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास और संसद भवन के करीब है, इसलिए यहां विरोध प्रदर्शनों की अनुमति नहीं दी जा सकती। बोट क्लब का चप्पा-चप्पा बड़ी चुनावी रैलियों का भी गवाह है। इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक ने यहां अपने ओजस्वी भाषणों से जनता को लुभाने का प्रयास किया है।

...तब लाख लोगों ने भाग लिया था

महेंद्र सिंह टिकैत की रैली के बारे में दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त नीरज कुमार ने कहा था कि तब बोट क्लब पर किसानों की सुनामी सी आ गई थी। उन्हें नियंत्रण करना कठिन हो गया था। बोट क्लब पर ही 1991 में विश्व हिन्दू परिषद की भी विशाल रैली आयोजित की गई थी। उसमें भी लगभग तीन लाख लोगों ने भाग लिया था।

वहीं दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद रहे डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने भी कहा था कि बोट क्लब पर जिन दिनों बड़े विरोध प्रदर्शन होते थे, उन दिनों देश में सुरक्षा संबंधी मसले गंभीर नहीं हुए थे। बहरहाल, एक बार फिर बोट क्लब आंदोलनों का गवाह बनेगा, लेकिन अब पहले जैसे बड़े आंदोलन तो शायद ही दिखाई दें। क्योंकि अब देश में कोई बड़ा किसान आंदोलन नहीं चल रहा। अब मजदूर आंदोलन का दौर भी समाप्त हो चुका है।

-विवेक शुक्ला (लेखक व इतिहासकार)


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