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अटल बिहारी का अंतिम सफर बना यादगार, 'लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?'

देशवासियों ने जितना प्यार और सम्मान अटल बिहारी वाजपेयी को बतौर प्रधानमंत्री व राजनेता के रूप में दिया, उतना ही सम्मान उनकी कविताओं को भी मिला।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 18 Aug 2018 11:26 AM (IST)Updated: Sat, 18 Aug 2018 12:03 PM (IST)
अटल बिहारी का अंतिम सफर बना यादगार, 'लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?'
अटल बिहारी का अंतिम सफर बना यादगार, 'लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?'

नई दिल्ली (संतोष कुमार सिंह)। राजनीति में बुलंदियों को छूने वाले करिश्माई राजनेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ओजस्वी वक्ता के साथ ही कलम के भी जादूगर थे। अपने दैहिक रूप से हम सभी से जुदा होने के बाद भी उनकी कालजयी कविताएं हमें प्रेरित करती रहेंगी। उनके निधन के बाद और अंतिम यात्रा के समय सोशल मीडिया और दिल्ली की सड़कें भी कुछ ऐसा ही बयां कर रही थीं। उनके चाहने वाले सोशल मीडिया में उनकी अमर पंक्तियों को शेयर कर रहे हैं। लोग इसे गुनगुना रहे हैं और इस जननायक को श्रद्धांजलि देने के लिए शुक्रवार को दिल्ली की सड़कों को उनकी कविताओं से सजा भी दिया गया। जगह-जगह जननायक की मुस्कुराती हुई तस्वीर के साथ उनकी कविताओं की पंक्तियां यह बता रही थीं कि उनका कवि मन किस तरह जनता के दिलों पर राज करता है और करता रहेगा।

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देशवासियों ने जितना प्यार और सम्मान उन्हें प्रधानमंत्री व राजनेता के रूप में दिया, उतना ही सम्मान उनकी कविताओं को भी मिला। उनकी कविताएं महज चंद पंक्तियां नहीं, बल्कि जीवन दर्शन हैं और जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया प्रस्तुत करती हैं। ये पंक्तियां समाज के ताने-बाने को सहेजते हुए हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देतीं हैं और घोर निराशा में भी आशा की किरणों भरने वाली हैं। इसलिए ये हमारे अंतर्मन को छूती हैं और प्रत्येक पीढ़ी को प्रेरित करती हैं।

जिस तरह से वाजपेयी के भाषणों के वीडियो शेयर किए जा रहे हैं, उसी तरह सी उनकी कविताएं भी लोग एक-दूसरे को भेज रहे हैं। देशवासियों ने जितना प्यार और सम्मान उन्हें प्रधानमंत्री व राजनेता के रूप में दिया, उतना ही सम्मान उनकी कविताओं को भी मिला। उनकी कविताएं महज चंद पंक्तियां नहीं, बल्कि जीवन दर्शन हैं और जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया प्रस्तुत करती हैं। ये पंक्तियां समाज के ताने-बाने को सहेजते हुए हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देतीं हैं और घोर निराशा में भी आशा की किरणों भरने वाली हैं। इसलिए ये हमारे अंतर्मन को छूती हैं और प्रत्येक पीढ़ी को प्रेरित करती हैं।

राजधानी की सड़कों खासकर पंडित दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, बहादुर शाह जफर मार्ग, दरियागंज व अंत्येष्टि स्थल राष्ट्रीय स्मृति पर जगह-जगह उनकी कविताओं ने होर्डिंग व बैनर का रूप ले लिया। दरियागंज स्थित गोलचा सिनेमा, जहां कभी वाजपेयी अन्य नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ सिनेमा देखा करते थे।

आज उसकी दीवार पर उनकी कविता की पंक्तियां- ‘छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता है, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता है’ लोगों को अटल की तरह बड़े हृदय वाला बनने को प्रेरित कर रही थीं। इसी तरह से ‘सूर्य तो फिर से उगेगा, धूप तो फिर भी खिलेगी..’, ‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा..’, ‘काल के कलाप पर लिखता-मिटाता हूं..’ जैसी कविताएं लोगों को प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखने और संघर्ष की राह पर आगे बढ़ने की सीख दे रही थीं।

वहीं, उनकी कविता  ‘ठन गई मौत से ठन गई, जूझने का मेरा इरादा न था। मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था। रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई। यूं लगा जिंदगी से बड़ी। मौत की उमर क्या है।  दो पल भी नहीं। मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं। लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?’ उनके निधन से शोक संतप्त व रुआंसे देशवासियों को दिलासा दे रही थी कि उनका जननायक कहीं दूर नहीं गया है, वह उनके बीच है और हमेशा उनके बीच जीवित रहेगा।


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