Move to Jagran APP

सिद्धू को शायद याद नहीं कि विकेट तो बीवियों की तरह होती हैं, न जाने कब-किधर घूम जाएं

इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने और वहां पर पाक सेना प्रमुख से गले मिलने के बाद विवादों में आए नवजोत सिद्धू आजकल सियासत की पिच पर अटपटी बल्लेबाजी कर रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 08 Dec 2018 09:30 AM (IST)Updated: Sat, 08 Dec 2018 09:38 AM (IST)
सिद्धू को शायद याद नहीं कि विकेट तो बीवियों की तरह होती हैं, न जाने कब-किधर घूम जाएं
सिद्धू को शायद याद नहीं कि विकेट तो बीवियों की तरह होती हैं, न जाने कब-किधर घूम जाएं

[भवदीप कांग]। हालिया संपन्न विधानसभा चुनावों में नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस पार्टी के स्टार प्रचारक बनकर उभरे। उन्होंने भाजपा पर तंज कसते हुए और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिमिक्री करते हुए जनता का मनोरंजन करने में कसर नहीं छोड़ी। लेकिन जहां यह सरदार अपनी चुटीली बातों से जनता को गुदगुदा रहा था, वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह की त्यौरियां चढ़ रही थीं। क्योंकि सिद्धू की कॉमेडी के पीछे कहीं गहरा राजनीतिक एजेंडा है। क्रिकेटर से कमेंटेटर, टीवी कलाकार और राजनेता बने नवजोत सिद्धू एक महत्वाकांक्षी सरदार हैं और वह अपने लिए कोई ज्यादा बड़ी भूमिका तैयार करना चाहते हैं। इस लिहाज से उन्होंने कांग्रेस के प्रथम परिवार और खासकर प्रियंका वाड्रा के साथ मजबूत संबंध बनाए हैं।

loksabha election banner

संभवत: उनकी उच्च पद पाने की लालसा ने उन्हें उनके ‘दिलदार यार’ इमरान खान के शपथ-ग्रहण समारोह में शिरकत करने हेतु पाकिस्तान जाने के लिए प्रेरित किया था जहां उन्होंने पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को झप्पी देते हुए विवाद खड़ा कर दिया। शायद वह मोदी की नकल कर रहे थे जो अमूमन सभी राष्ट्राध्यक्षों से गले मिलते हैं। लेकिन सिद्धू-बाजवा के इस गले-मिलन का उल्टा प्रभाव हुआ और उन पर फूलों की जगह पत्थर बरसने शुरू हो गए। पंजाब के मुख्यमंत्री (जो कई सालों तक भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं) ने इस पर नाखुशी जताते हुए मीडिया से कहा- उनके (सिद्धू के) द्वारा पाकिस्तानी सेना प्रमुख के प्रति यूं प्रेम दर्शाना गलत था, वह भी ऐसे समय में जब आए दिन हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं।

वहां से लौटने के कुछ हफ्ते बाद सिद्धू विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिले तो उन्होंने भी उनसे इस बात के लिए नाराजगी जताई कि उनके कमर बाजवा से गले मिलने पर गलत संदेश गया है। इस पर सिद्धू ने स्पष्टीकरण दिया कि यह झप्पी तो दरअसल उनकी खुशी का इजहार थी, चूंकि बाजवा ने उनसे कहा कि पाकिस्तान सिख श्रद्धालुओं के लिए डेरा बाबा नानक और करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के बीच एक वीजा- मुक्त गलियारा खोलने पर विचार कर रहा है। (वैसे यह विचार सबसे पहले वाजपेयी जी ने दिया था, अमृतसर-लाहौर बस के बाद) सिद्धू यहीं नहीं रुके। उन्होंने यह भी कहा कि वह दक्षिण भारत के बनिस्पत पाकिस्तान के साथ ज्यादा साम्य देखते हैं। उनके इस वक्तव्य की निंदा की गई, लेकिन सिद्धू पर कोई असर नहीं हुआ। यहां तक कि वह करतारपुर गलियारे के शिलान्यास कार्यक्रम में शिरकत करने दोबारा पाकिस्तान चले गए।

सिद्धू की इस हरकत से केंद्रीय मंत्री हरसिमरत बादल और हरदीप सिंह पुरी तो अपसेट हुए ही, कैप्टन अमरिंदर सिंह भी नाखुश थे। विदेश मामलों के विशेषज्ञों की राय में सिद्धू की मौजूदगी के चलते पाकिस्तानी पक्ष ने करतारपुर कॉरिडोर का पूरा श्रेय लूट लिया। पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में बढ़त बना ली, जो भारत के लिए अच्छा नहीं हुआ। पंजाब के मुख्यमंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि उन्होंने शिलान्यास समारोह में शामिल होने का आमंत्रण इसलिए ठुकरा दिया, क्योंकि पाक सेना हमारे सैनिकों पर आए दिन हमला कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सिद्धू को भी उन्होंने वहां न जाने की सलाह दी थी, लेकिन वह नहीं माने। इस पर सिद्धू ने यह कहते हुए कैप्टन अमरिंदर का विकेट उखाड़ने की कोशिश की थी कि उनके असली कैप्टन तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हैं, जिन्होंने उन्हें पाकिस्तान जाने के लिए कहा था। लेकिन उनकी यह बात नो-बॉल साबित हुई। राहुल ने कैप्टन और सिद्धू की इस तनातनी के बीच में पड़ने से इन्कार कर दिया। लिहाजा सिद्धू को अपनी इस बात से पलटना पड़ा कि राहुल गांधी ने उनसे पाकिस्तान जाने के लिए कहा था और स्वीकारा कि वह इमरान खान के व्यक्तिगत बुलावे पर वहां गए थे।

लेकिन तब तक कांग्रेस की पंजाब इकाई का भी पारा चढ़ चुका था। कैप्टन के समर्थक सिद्धू के इस्तीफे की मांग उठाने लगे। यहां तक कि पंजाब में कैप्टन के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी रहे प्रताप सिंह बाजवा (जो पहले सिद्धू का समर्थन करते रहे हैं) ने भी दोनों से अपने मतभेद सुलझाने की अपील की। आखिरकार यदि सिद्धू गांधी परिवार के करीब हो रहे हैं और पार्टी के भीतर एक लोकप्रिय चेहरे के रूप में उभर रहे हैं तो वह बाजवा के लिए भी तो खतरा बन सकते हैं। यह कोई रहस्य नहीं कि कैप्टन शैरी पाजी को कांग्रेस में शामिल करने के प्रति उत्सुक नहीं थे और वह प्रियंका के कहने पर ही माने। सिद्धू वर्ष 2004 में भाजपा में शामिल हुए थे, लेकिन 2009 में वह बादल परिवार से उलझ पड़े और भाजपा को इसके लिए मनाते रहे कि अकाली दल के साथ गठबंधन तोड़ दें। उन्होंने अमृतसर लोकसभा सीट (जो उनका ही निर्वाचन क्षेत्र था) से अरुण जेटली के चुनाव लड़ने पर मदद करने से इन्कार कर दिया और जब कैप्टन से मुकाबले में जेटली हार गए तो सिद्धू खुश नजर आए। भाजपा-अकाली गठबंधन जारी रहा तो सिद्धू कांग्रेस में शामिल हो गए।

जाहिर है कि गांधी परिवार के मन में सिद्धू के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर है और वह कैप्टन अमरिंदर सिंह का कद घटाना चाहेगा। गांधी परिवार कैप्टन को लेकर तब से सशंकित है जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न बनाए जाने की सूरत में पंजाब में अपनी पार्टी बनाने की धमकी दी थी। यह अजीब है कि पुडळ्चेरी और मिजोरम जैसे छोटे राज्यों को छोड़ दें तो कैप्टन कांग्रेस के इकलौते मुख्यमंत्री हैं, लेकिन फिर भी उन्हें विधानसभा चुनावों के दौरान प्रचार के लिए नहीं कहा गया, जबकि सिद्धू ने 20 से ज्यादा चुनावी सभाओं को संबोधित किया। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारतीय राजनीति में हास्य-विनोद का तड़का भी चाहिए और सिद्धू किसी न्यूज कांफ्रेंस को स्टैंड-अप कॉमेडी शो में तब्दील कर सकते हैं। यह बात भले ही उन्हें एक प्रचारक के तौर पर लोकप्रिय बनाती हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें कद्दावर नेता भी मान लिया जाए। राजनीति की पिच पर खेलते वक्त शैरी पाजी को अपनी यह उक्ति याद रखनी चाहिए विकेट्स तो बीवियों की तरह होते हैं। आप कभी नहीं जान पाते कि वे किधर घूम जाएं।

करतारपुर कॉरिडोर की बेताबी
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर दोहराया है कि वह भारत के साथ शांति बहाल करना चाहते हैं और इसके लिए वह प्रधानमंत्री मोदी से बात करने के लिए तैयार भी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर मसले का फौजी हल मुमकिन नहीं है, पर कुछ असंभव भी नहीं है। पाकिस्तान द्वारा पहले से चले आ रहे आतंकी शह पर सफाई देते हुए इमरान खान ने दाऊद और हाफिज सईद को विरासत में मिला बताया और साफगोई से यह भी कहा कि इसके लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं। हाल ही में पाकिस्तान स्थित करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब को भारत के गुरदासपुर जिले में स्थित डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा से जोड़ने वाली बहुप्रतीक्षित गलियारे की आधारशिला रखी गई है। इमरान खान ने इसी दौरान ये बातें कहीं।

करतारपुर कॉरिडोर की आधारशिला रखने के ऐतिहासिक अवसर पर भारत को अमन का पाठ पढ़ाने वाले इमरान ने कश्मीर का जिक्र किया जो दर्शाता है कि वह या तो आधा सच बोलते हैं या फिर पूरा सच बोल ही नहीं सकते। इस कॉरिडोर के पीछे उनकी स्पष्ट मंशा को समझना जरूरी है। इमरान की पहल पर शांति प्रक्रिया यदि भारत स्थापित करना भी चाहे तो आतंकी और वहां की सेना भारत के लिए मुसीबत बन सकती है, क्योंकि दशकों से देखा जा रहा है कि जब-जब ऐसा हुआ भारत के भीतर आतंकी हमले हुए हैं।

पाकिस्तान ने कॉरिडोर किस आधार पर खोला है इस बात की भी बारीकी से पड़ताल जरूरी है। संकेत यह है कि गलियारा बनाने का इरादा पाकिस्तानी सरकार का नहीं, बल्कि सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने दिया था। कार्यक्रम में पाकिस्तानी सेना प्रमुख की उपस्थिति इस बात को और पुख्ता करती है। इस कॉरिडोर को खोलने के पीछे जो इरादा जताया जा रहा है उसमें सब कुछ नेक हो ऐसा दिखता नहीं है। ऑपरेशन ऑल आउट के तहत कश्मीर घाटी में सैकड़ों की तादाद में आतंकी मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। सेना की चौकसी और जम्मू-कश्मीर पुलिस की सक्रियता पाक प्रायोजित आतंकियों को अब कोई अवसर नहीं दे रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सिखों के प्रति सहानुभूति की आड़ में खालिस्तान के पक्षधर को उकसाकर पंजाब में अशांति का माहौल पैदा करने का इरादा पाकिस्तान का हो।

कॉरिडोर खुलने से खालिस्तान समर्थक समूहों के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिख समुदाय का भरोसा पाकिस्तान जीत सकता है। इसी के माध्यम से भारतीय सिख युवाओं का भी भरोसा जीतने का काम पाक कर सकता है और समय और परिस्थिति को देख कर उन्हें उकसाकर भारत विरोधी गतिविधियों में प्रयोग कर सकता है। गुरुद्वारे के बहाने ऐसे युवाओं को उन्हें खालिस्तान का पाठ पढ़ाना आसान हो जाएगा जो पंजाब और भारत दोनों के लिए एक नई चुनौती हो सकता है। कुछ समय पहले जब भारतीय तीर्थयात्री पाकिस्तान के गुरुद्वारे में गए थे तब इस्लामाबाद स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास के सदस्यों को गुरुद्वारे में प्रवेश करने से रोका गया था और रोकने वाले सुऱक्षाकर्मी नहीं, बल्कि खालिस्तान समर्थक गोपाल सिंह चावला और उनके सहयोगी थे।

कॉरिडोर स्वागत योग्य है पर इसकी आड़ में खालिस्तानी आंदोलन को पुनर्जीवित करने वालों को यदि मौका मिलता है तो यह समस्या बड़ी हो जाएगी। अमेरिका के खालिस्तान समर्थक जिसे आंदोलन सिख फॉर जस्टिस के नाम से जाना जाता है, उन्होंने एक सर्कुलर जारी किया है जिसमें स्पष्ट है कि गुरुनानक देव जी के 550वीं जयंती के उपलक्ष्य में पाकिस्तान में करतारपुर साहिब सम्मेलन का 2019 में आयोजन किया जाएगा। बताया जा रहा है कि इसी सम्मेलन में इसकी भी योजना है कि मतदाता पंजीकरण भी किया जाएगा। साथ ही जनमत संग्रह पर भी जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि कॉरिडोर के पीछे सबकुछ सकारात्मक नहीं है, बल्कि कश्मीर से घटते आतंक को देखते हुए पाकिस्तान पंजाब में आतंक को पुनर्जीवित करने के लिए कहीं बेताब न हो इसे लेकर चिंता बढ़ जाती है।

करतारपुर साहिब पवित्र स्थलों में से एक है। गुरुनानक ने जीवन के आखिरी 18 साल यहीं बिताए थे। भारत की सीमा से तीन किमी भीतर रावी नदी के किनारे बसे इस गुरुद्वारे के भारत के सिख श्रद्धालु दूरबीन से दर्शन करते हैं। जब यह कॉरिडोर संचालित हो जाएगा तब श्रद्धालुओं की आवाजाही सुगम होगी और इसके लिए वीजा की जरूरत नहीं होगी। इस कॉरिडोर के लिए भारत सरकार फंड देगी।

इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने और वहां पर पाक सेना प्रमुख से गले मिलने के बाद विवादों में आए नवजोत सिद्धू आजकल सियासत की पिच पर अटपटी बल्लेबाजी कर रहे हैं। करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास कार्यक्रम में शिरकत करने से लेकर विधानसभा चुनावों में विवादित बयानों से भी उनकी अजीब हरकतें सामने आई हैं। भाजपा से कांग्रेस में आए सिद्धू शायद पार्टी में कोई बड़ी और खास भूमिका तैयार करना चाहते है।
[वरिष्ठ पत्रकार] 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.