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Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट में जन्मस्थान को देवता मानने का मुस्लिम पक्ष ने किया विरोध

जस्टिस बोबडे ने मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील राजीव धवन से पूछा कि देवता क्या होता है। धवन ने कहा कि देवता या तो मूर्ति स्वरूप में होता है या फिर स्वयंप्रकट होते हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 10:23 PM (IST)Updated: Tue, 17 Sep 2019 06:56 AM (IST)
Ayodhya Case: सुप्रीम कोर्ट में जन्मस्थान को देवता मानने का मुस्लिम पक्ष ने किया विरोध

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सोमवार को मुस्लिम पक्ष ने जन्मस्थान को देवता मानते हुए न्यायिक पक्षकार बनाने का विरोध किया। राजीव धवन ने कहा कि अगर ऐसा मान लिया जाता है तो बाकी सभी पक्षों और धार्मिक विश्वास रखने वालों के अधिकार खतम हो जाएंगे। यहां तक कि कोर्ट भी कुछ नहीं कर सकता। कहा जन्मस्थान को न्यायिक पक्षकार नही माना जा सकता। बहस मंगलवार को भी जारी रहेगी।

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राजीव धवन मुस्लिम पक्ष की ओर से मामले में बहस कर रहे हैं। सुनवाई के दौरान जब जस्टिस एसए बोबडे ने धवन से सवाल किया कि रामलला के मुकदमें में पक्षकार नंबर एक (रामलला विराजमान) और पक्षकार नंबर दो (जन्मस्थान) की कानूनी हैसियत क्या है।

इसके जवाब में धवन ने कहा कि पक्षकार नंबर एक मूर्ति है जो कि देवता हैं। देवता का संपत्ति पर मालिकाना हक हो सकता है। देवता सेवादार या निकट मित्र के जरिए अपने मालिकाना हक का दावा कर सकता है। देवता पर मुकदमा करने की कानून में तय समयसीमा और प्रतिकूल कब्जे का सिद्धांत लागू होगा, लेकिन पक्षकार नंबर दो यानी राम जन्मस्थान एक क्षेत्र है जिसे विश्वास के आधार पर देवता कहा गया है। इसे देवता मानने का परिणाम होगा कि उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। इसके बाद न उस पर कोई मालिकाना हक दावा कर सकता है और न ही उस पर प्रतिकूल कब्जे या समयसीमा का नियम लागू होगा।

ऐसे में क्या होगा कि बाबर आया, लेकिन वह उस जगह पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता। मस्जिद पर मालिकाना हक नहीं हो सकता। औरंगजेब आया, लेकिन उसका वहां दावा नहीं हो सकता क्योंकि वह जन्मभूमि है।

धवन ने कहा कि रामलला की ओर से दाखिल की गई पूरी अपील मे देवता और जन्मस्थान दो अलग कानूनी व्यक्ति बनाए गए हैं। जन्मभूमि को देवता और न्यायिक व्यक्ति इसलिए बनाया गया है ताकि बाकी लोगों और अन्य धर्मावलंबियों के अधिकार उस पर समाप्त हो जाएं। कोर्ट का भी अधिकार न रहे।

धवन ने कहा कि हिन्दुओं का पूरा मामला आस्था और विश्वास पर आधारित है। उन्होंने रामलला की ओर से देवकी नंदन अग्रवाल के निकट मित्र बन कर मुकदमा दाखिल किये जाने का विरोध करते हुए कहा कि ये मुकदमा स्वीकार्ययोग्य नहीं है क्योंकि मामले मे पहले से ही सेवादार (निर्मोही) अखाड़ा का मुकदमा लंबित है। जबतक सेवादार देवता के खिलाफ कुछ न करे तबतक उसकी जगह किसी अन्य को निकटमित्र बनकर मुकदमा दाखिल करने का अधिकार नहीं है।

धवन ने कहा कि 1989 में रामलला की ओर से अलग से मुकदमा दाखिल करने का उद्देश्य वहां नया मंदिर बनवाना और कारसेवा शुरु करना था। अपील में रामजन्मभूमि न्यास को पक्ष बनाया गया है। वास्तव में सारा प्रबंधन न्यास को सौंपे जाने का उद्देश्य था जिस न्यास की स्थापना 1985 में हुई। उन्होंने कहा कि न्यास में मुख्य कर्ताधर्ता विश्वहिन्दू परिषद के लोग थे।

जस्टिस बोबडे ने धवन से पूछा कि देवता क्या होता है। धवन ने कहा कि देवता या तो मूर्ति स्वरूप में होता है या फिर स्वयंप्रकट होते हैं। जस्टिस बोबडे ने कहा कि आपका कहना है कि देवता का कोई आकार होना चाहिए हालांकि निश्चित आकार जरूरी नहीं है, लेकिन वह निराकार नहीं हो सकता।

धवन ने जवाब दिया कि ईश्वर निराकार हो सकता है, लेकिन देवता सृजित होता है और उसके बाद सकारात्मक रूप से उसकी प्राणप्रतिष्ठा और पवित्रता की गई हो। धवन ने कहा कि उन लोगों ने सिर्फ आस्था को आधार बनाया है। इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हिन्दुओं का विश्वास है कि वहां भगवान विष्णु अवतरित हुए थे।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि एक पक्ष देवता की मूर्ति है और दूसरा जन्मस्थान दोनों को मिला कर एक दिव्यता की बात कही गई है। दोनों को मिला कर देखा जा सकता है। धवन ने कहा नहीं जन्मस्थान को पक्षकार मानने के कानूनी परिणाम अलग होंगे।


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